जीवन में झाँकती कहानियाँ

कोई एक कोना : पुस्तक समीक्षा

Webdunia
कृष्ण कुमार भारती य
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' दो तरह की दुनिया है। एक बाहर की,दूसरी भीतर की। हम दोनों में साथ-साथ चलते हैं, विचरतें हैं। बाहर की दुनिया से साक्षात्कार एक सत्य है तो भीतर का विच र ण और उसका गड्डमड्ड होना भी एक बहुत बड़ा सत्य।'

विकेश निझावन की कहानियों में जीवन से जुड़े सभी पहलू चित्रित हुए हैं। उनकी कहानियों में जीवन के सतही चित्र न होकर गहरी संवेदनाएँ व्यक्त हुई हैं। उनका कहानी संग्रह 'कोई एक कोना' की लगभग सभी कहानियाँ जीवन के अंतःकोनों में झाँकती प्रतीत होती हैं। इन कहानियों की झाँकने की क्षमता इतनी सधी हुई है कि देखे गए दृश्य धुँधले न होकर स्पष्ट व पारदर्शी हैं।

विकेश निझावन हरियाणा के सुप्रतिष्ठित कथाकार हैं। सन्‌ 1973 में 'सारिका' में प्रकाशित उनकी पहली कहानी 'जाने और लौट आने के बीच' से चर्चा में आए निझावन के अब तक आठ कहानी-संग्रह,चार कविता-संग्रह, एक उपन्यास व एक लघुकथा-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी-संग्रह 'अब दिन नहीं निकलेगा' तथा काव्य-संग्रह 'एक टुकड़ा आकाश' हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं।

संग्रह की शीर्षक कहानी 'कोई एक कोना' की नायिका समीरा मायके लौट आती है परंतु यहाँ उसे माँ व भाभी के व्यंग्य बाणों का शिकार होना पड़ता है। उसे जरा-जरा सी बात पर ताना दिया जाता है। यहाँ तक की उसका हँसना भी उन्हें नहीं सुहाता। अन्ततः छोटे भाई की नसीहत द्वन्द्व में फंसी समीरा को राह दिखाती है।

' डेली पेसेंजर' मध्यमवर्गीय दंपत्ति की कहानी है। कामकाजी पति प्राइवेट नौकरी के दबाव में चाहते हुए भी अपने घर-परिवार के लिए समय निकाल पाने में असमर्थ है। इस बार वह पत्नी को आश्वासन देकर जाता है कि वह शाम को घर जल्दी लौटेगा परंतु ऐसा हो नहीं पाता। एक तरफ मालिक का अपनी बीवी के साथ शॉपिंग के लिए जाना व दूसरी ओर पत्नी के अंतिम व्रत के बावजूद भी रमन समय से घर नहीं पहुँच पाता। कहानी मध्यमवर्गीय परिवारों की त्रासद स्थिति को रेखांकित करने में सफल रही है।

  संग्रह की सभी कहानियाँ पठनीयता के संदर्भ में सरस व रोचक है। लगभग सभी कहानियों में लेखक स्वयं उपस्थित है। कहीं वह मुख्य भूमिका में है तो कहीं वह नेपथ्य से उदघोषणा करता प्रतीत होता है।      
गुल्लक' कामकाजी दंपत्ति के बच्चों के अकेलेपन को रेखांकित करती है। कहानी में अपनी माँ को नौकरी पर जाने से रोकती शिप्रा को जब नायिका पैसे की जरूरत के बारे में बताती है तो वह अपनी गुल्लक तोड़कर सारे पैसे माँ को देती है और रुकने को कहती है। परंतु दंभी पति अर्थ के मोह में पत्नी को वापिस नौकरी पर जाने के लिए विवश कर देता है। कहानी अत्यंत मार्मिक बन पड़ी है।

संग्रह की सभी कहानियों का ताना-बाना पारिवारिक धरातल पर बुना गया है। उम्मीद', टूटने से जुड़ने तक' तथा गुल्लक' आदि कुछ ऐसी ही कहानियाँ हैं। खिड़कियाँ', बीज' 'बौने होने का अहसास' कहानी कई समस्याओं को स्वयं में समेटे है।

कहानी एक तरफ मानवीय रिश्तों की सौंधी महक से सराबोर है तो वहीं खून के रिश्तों की दरारों में भरी दुर्गंध भी व्याप्त है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली किस तरह युवाओं को केवल डिग्रीयाँ वितरित कर रही है और रोजगार के नाम पर ठेंगा दिखा रही है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली के दोषों को भी कहानी ईमानदारी से उघाड़ती है।

सुदूर भारतीय क्षेत्रों में रहने वाली आदिवासी जनजातियों में अलगाव, हिंसा व दहशत को भी कहानी अभिव्यक्त करती है। ÷निर्णय से पहले' में लेखक कुछ सपनों व आकांक्षाओं के साथ विदेश जाता है। वहाँ की सुन्दरता व भव्यता से अभिभूत लेखक को जब उसका मित्र जगन वहाँ की वास्तविकताओं से परिचित कराता है तो वह स्तब्ध रह जाता है।

कहानी पाश्चात्य जगत के खोखलेपन को उद्घाटित करती है, यहाँ संवेदनाएँ नहीं, पैसा महत्वपूर्ण है। यहाँ समर्पण व अपनेपन की कोई कीमत नहीं, स्वतंत्रता व उच्छृँखलता अनिवार्य है। पाश्चात्य जीवन शैली के कटु यथार्थ से परिचित कराती यह कहानी अत्यंत सुन्दर है।

संग्रह की सभी कहानियाँ पठनीयता के संदर्भ में सरस व रोचक है। लगभग सभी कहानियों में लेखक स्वयं उपस्थित है। कहीं वह मुख्य भूमिका में है तो कहीं वह नेपथ्य से उदघोषणा करता प्रतीत होता है। कहीं-कहीं वह अन्य पात्रों के मध्य संवाद का माध्यम भी बनता है। भाषा में कोई बनावट नहीं है।

यहाँ संवाद तथा घटनाएँ स्वाभाविक हैं। चरित्र सजीव व वास्तविक हैं। इन कहानियों में ऐसे परिवारों की त्रासद स्थितियाँ तथा जीवन मूल्यों का मार्मिक चित्रण है, जिसका भागीदार जितना स्वयं लेखक है, उतना ही पाठक भी बन जाता है।

पुस्तक : कोई एक कोना
लेखक : विकेश निझावन
प्रकाशक : पारुल प्रकाशन, त्रिनगर, दिल्ली-35,
पृष्ठ संख्या : 120,
मूल्य : 120 रुप ए
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