तैंतीबाई : सहज कहानी-संग्रह

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- अरुंधति‍ अमड़ेक र

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जो रि‍श्ता एक माँ का अपनी संतान से होता है लगभग वही रि‍श्ता हर इंसान का उसकी मि‍ट्टी से होता है, उसकी मातृभूमि‍ से होता है और ये रि‍श्ता उस इंसान की हर बात में, उसके हर ख्याल में यहाँ तक कि‍ उसके व्‍यवहार में भी झलकता है। चि‍त्रकार का उसके चि‍त्रों में, कवि‍ का उसकी कवि‍ताओं में, कथाकार का उसकी कहानि‍यों में।

चंद्रकांताजी के कहानी संग्रह "तैंतीबाई" की कहानि‍यों में उनका अपनी मि‍ट्टी से गहरा जुड़ाव स्‍पष्ट दि‍खाई देता है, इतना ही नहीं वे अपनी कहानि‍यों में एक ख़ामोश अबिंबि‍त कि‍रदार की तरह नज़र आती हैं। मतलब हर कहानी में एक चंद्रकांता अदृश्‍य रूप से वि‍द्यमान है।

पहली सात कहानि‍यों का आधार लगभग समान है, ऐसा लगता है मानो लेखि‍का को हर कहानी में कुछ छूटा हुआ सा लगा और हर अगली कहानी में वे उसे पूरा करने की कोशि‍श में लगी रहीं। यह बात ‍‍दीगर है कि‍ उनकी कोशि‍श कहाँ तक क़ामयाब रही, वैसे यादें कभी पूरी नहीं हो पातीं। सातों कहानि‍यों में अपनेपन से बि‍छड़े और वि‍स्‍थापन में जकड़े कश्मीरी पंडि‍तों की व्‍यथा है।

ऐसी व्‍यथा जो अपने पुरखों की ज़मीन, अपनी मि‍ट्टी की ख़ुशबू और बचपन की यादों के वि‍छोह से शुरू होकर शरणार्थी केम्‍पो की घुटनभरी रातों, राशन की लाइनों की रेलमपेल से गुज़रते हुए सब कुछ ठीक होने की संभावना और अपनी जड़ों की ओर वापस लौटने की अधमरी आस पर ख़त्‍म हो जाती है।

सातों कहानि‍याँ इस बात का सबूत देती हैं कि‍ आतंक का कोई मज़हब नहीं होता, वह एक बवंडर है जो हर कि‍सी को अपने घेरे में ले लेता है।

' पायथन' कहानी में एक असहाय पि‍ता स्‍वयं को तोड़कर अपना एक हि‍स्‍सा अपनी मि‍ट्टी में दफ़न कर बि‍न माँ की अपनी बेटी को दहशतगर्दी की हवा से बचाकर महानगरों की धुआँ उड़ाती ज़िंदगि‍यों के बीच ले आता है, जहाँ सि‍यासी सरहदों को लाँघने वाले आतंकी तो बेशक़ नहीं थे लेकि‍न इंसान को आदमी और आदमी को जानवर बनाने वाली हदों को पार करने वालों की कमी नहीं थी।

शरणागत दीनार्त के लसपंडि‍त की अपने घर को न छोड़ने की ज़ि‍द बताती है कि‍ उस वक़्त जो लोग अपनी ज़मीन नहीं छोड़ पाए वे ज़िंदा नहीं रहे और जो छोड़ पाए वे चलती-फि‍रती लाशें बन गए। दोनों ही सूरतों में ज़िंदगी कहीं बाकी नहीं रही।

ईमान, सच्‍चाई और रहमदि‍ली कि‍सी कौम की जागीर नहीं होते, जि‍नमें ये होते हैं वे हर कि‍सी के लि‍ए होते हैं। चाहे वह क़ि‍स्‍साखोर गाशकौल हो या गुलाबी आँखों वाली नुसरत, अपने बचपन के दोस्‍त से मि‍लने को बेक़ल सन्‍नाउल्‍ला हो या वर्षों के रि‍श्ते और यादों की क़द्र करने वाला अमदा। इन सबके बीच है आँखों को नम कर देने वाली मास्‍टर रतनलाल और फ़ज़ल रहमान की दोस्‍ती।

बाक़ी आठ कहानि‍यों में वही स्‍त्रि‍यों की पीड़ा है, हर रि‍श्‍ते में समाज के नंगेपन से जूझता हुआ एक कि‍रदार है। कहानियाँ पठनीय और सरस बन पड़ी है।

पुस्‍तक - तैंतीबाई (कहानी संग्रह)
लेखक - चंद्रकांता
क़ीमत - 150 रू.
प्रकाशक - पेंगुइन बुक्‍स इंडि‍या

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