पहला पड़ाव : दिलचस्प कथाफलक

राजकमल प्रकाशन प्रस्तुति

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पुस्तक के बारे में :
श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास 'पहला पड़ाव' मजदूरों, मि‍स्त्रियों, ठेकेदारों, इंजीनियरों और शिक्षित बरोजगारों के जीवन पर केन्द्रित हैं। श्रीलाल शुक्ल ने इन पात्रों को एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए एक दिलचस्प कथाफलक की रचना की है। श्रीलाल शुक्ल की कलम, जिस निस्संग व्यंग्यात्मकता से समकालीन सामाजिक यथार्थ को परत-दर-परत उघाड़ती रही है, 'पहला पड़ाव' उसे और अधिक ऊँचाई देता है।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
' लड़की के बाप पहले मेरे बाप जैसे ही मामूली खेतिहर थे। अचानक उनके बड़े लड़के की दोस्ती कृषि विभाग से हो गई। तब जो गेहूँ हमारे घर से सरकारी खरीद में मिट्टी मोल बिकता था वही उसके घर से उन्नतिशील बीज बनकर दुगुनी- तिगुनी कीमत पर उसी सरकार में लगा। उसके मुनाफे से उन्नतिशील बीज के साथ ही उसने शीशम,पाकड़, नीम आदि की कम खर्च बालानशीं नर्सरी लगाई और उसकी पौध को दो-तीन साल विकास खंड को वन महोत्सव के लिए थोक ढंग से बेचा।'
***
' दरअसल, इंदिरा जी ने देश के लिए कई बड़े काम किए हैं। हिन्दुस्तानी का स्वभाव ही ऐसा है कि अपने बाप का भी अहसान नहीं मानता, इंदिरा जी का ना माने तो कोई नई बात नहीं। इन हाईकोर्ट के जजों को सही सबक उन्होंने ही
सिखाया था। तुम कहाँ हो? पंजाब हाई कोर्ट में? तो जाओ सीधे आसाम।और बंगाल के हो तो जाओ कर्नाटक।तभी कायदे से इंसाफ हो सकता है। यहाँ क्या है? एक टुच्चे तख्त पर दरी बिछाए बैठे रहते थे और हलफनामों की पाँच-पाँच रुपए में तस्दीक करते थे। यही उनकी वकालत थी। किस्मत ने पलटा खाया, उसी रेले में हाईकोर्ट के जज बना दिए गए।'
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' तुम्हारा दिमाग तो सही है? उन्हें भ्रष्ट अधिकारी कहने का किसी को क्या हक है? कुछ साबित भी हुआ है? सीधे-सीधे क्यूँ नहीं समझते कि एक काबिल आदमी ने सरकारी नौकरी छोड़कर अब राजनीति में प्रवेश किया है। पार्टी में उनकी कितनी साख है,इसका सुबूत तो इस उपचुनाव में मिल ही गया। सरकार में उनकी कितनी साख है यह भी कल साबित हो जाएगा। अखबार नहीं पढ़ा क्या?
***
समीक्षकीय टिप्पणी
श्रीलाल शुक्ल की यह कथाकृति बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में ईंट-पत्थर होते जा रहे आदमी की त्रासदी को अत्यंत मानवीय और यथार्थवादी फलक पर उकेरती है। उपन्यास के प्राय: सभी पात्रों को लेखक ने अपनी गहरी सहानुभूति और मनोवैज्ञानिक सहजता प्रदान की है। उनके माध्यम से विभिन्न सामाजिक, आर्थिक अंतर्विरोधों, उन्हें प्रभावित-परिचालित करती हुई शक्तियों और मनुष्य स्वभाव की दुर्बलताओं को अत्यंत कलात्मक ढंग से उजागर किया है।

उपन्यास : पहला पड़ाव
लेखक : श्रीलाल शुक्ल
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 244
मूल्य : 250 रु.

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