भारत में नाग परिवार की भाषाएँ

राजकमल प्रकाशन

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पुस्तक के बारे में
युवा भाषा वैज्ञानिक राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने अपनी पहली पुस्तक भाषा का समाजशास्त्र में अन्य भाषाओं के साथ-साथ ऑस्ट्रो-एशियाटिक समूह की एक भारतीय भाषा भुंडारी को भी अपने विश्लेषण का आधार बनाया था। अब इस पुस्तक में उन्होंने नाग परिवार की भाषाओं की विस्तृत विवेचना की है। इसके माध्यम से पूर्वोत्तर की संस्कृति पर भी प्रकाश डाला है। भाषा विज्ञान के अध्येता इस क्षेत्र में डॉ. रामविलास शर्मा के कार्य को आगे बढ़ाने के इस सार्थक प्रयत्न का निश्चित रूप से स्वागत करेंगे।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
भारत के पूर्वी अंचल तथा हिमालय की उपत्यकाओं में या कहे उसके पाद प्रदेश में नाग परिवार की अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। ये भाषाएँ तिब्बत और बर्मा की भाषाओं से मिलती है। इस भाषा परिवार का वैज्ञानिक नाम साइनो टिबटन या चीनी तिब्बती भाषा परिवार है। इस एकाक्षर परिवार भी कहते हैं। कारण कि इसके मूल शब्द प्राय: एकाक्षर होते हैं। इस परिवार की प्रधान भाषा चीनी है। यद्यपि भारतीय नाग भाषाओं का नजदीकी संबंध तिब्बती और बर्मी भाषाओं से है।
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चीनी-तिब्बती परिवार की भाषाएँ जिन्हें भारत के संदर्भ में हम सुविधा के ख्याल से नाग भाषाएँ कहते हैं, यहाँ अलग-अलग रूप में भौगोलिक आधार पर विभाजित हैं। यदि इस परिवार की भाषाओं और बोलियों का राज्यवार ब्योरा देना हो तो हम यों कहेंगे कि ये भाषाएँ कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, नेपाल, सिक्किम, पशिचम बंगाल, भूटान, अरूणाचल प्रदेश, आसाम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम में बोली जाती है। सिक्किम भारत का भाग हो गया है जबकि नेपाल और भूटान आज भी स्वतंत्र हैं।
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नाग भाषाओं की लिंग व्यवस्था आर्य प्रभाव से अछूती नहीं है। आर्य भाषा असमिया के लगे-‍लिपटे इलाकों में बोली जाने वाली नाग परिवार की भाषा बोड़ो से इसकी पुष्टि होती है। इस भाषा में बहुत से आकारान्त पुर्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग रूप इकारान्त/ईकारान्त होते हैं। यथा - बुन्दा-सूअर, बुन्दी- सुअरी। आर्य परिवार के शब्द मयना(मैना) और गाइ(गाय) तो इस भाषा में सीधे-सीधे स्त्रीलिंग हैं।

समीक्षकीय टिप्पणी
भारत में दुनिया के सबसे चार प्रमुख भाषा परिवारों की भाषाएँ बोली जाती है। सामान्यत: उत्तर भारत में बोली जाने वाली भारोपीय परिवार की भाषाओं को आर्य भाषा समूह, दक्षिण की भाषाओं को द्रविड़ भाषा समूह, ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार की भाषाओं को भुंडारी भाषा समूह तथा पूर्वोत्तर में रहने वाले तिब्बती-बर्मी, नृजातीय भाषाओं को नाग भाषा समूह के रूप में जाना जाता है। इस पुस्तक में भाषा विज्ञानी राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने भारत में बोली जाने वाली नाग परिवार की भाषाओं पर वैज्ञा‍निक दृष्टि डाली है।

पुस्तक: भारत में नाग परिवार की भाषाएँ : शोध
लेखक : राजेन्द्र प्रसाद सिंह
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 124
मूल्य: 150 रुपए

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