मुन्नी मोबाइल : अपराध जगत का सच

बदलते जीवन मूल्यों की पड़ताल

Webdunia
अर्पण कुमार
ND
प्रदीप सौरभ के 'मुन्नी मोबाइल' उपन्यास में समकालीन सामाजिक राजनीतिक यथार्थ की कई परतों को उनके वास्तविक रूपों में उद्घाटित किया गया है और साथ ही, परस्पर भिन्न पृष्ठभूमियों वाली कई सांस्कृतिक इकाइयों के संघर्षपूर्ण जीवन को एक वृहत्तर स्पेस में बनता बिगड़ता दिखाया गया है। इस उपन्यास में प्रदीप मुन्नी मोबाइल की कहानी के माध्यम से वर्गीय, सांप्रदायिक, क्षेत्रीय अस्मिताओं की पड़ताल करते हैं।

आनंद भारती उपन्यास का एक मुख्य पात्र है जो एक पत्रकार है और जिसकी पैनी, खोजी और निर्भीक कलम देश, समाज के घटित को शब्दबद्ध करती चली जा रही है। उपन्यास के केंद्र में 'मुन्नी मोबाइल' की कथा है। मुन्नी मोबाइल, जिसके लिए उपन्यासकार शुरू में ही कह देता है, 'जो पढ़ी नहीं है लेकिन कढ़ी फुल-फुल है,'जो आनंद भारती के यहाँ झाडू-पोंछा करती है और जिसे वह किसी तरह हस्ताक्षर करना सिखलाता है। मुन्नी मोबाइल, जिसका असली नाम बिंदू यादव है, वह बिहार के बक्सर जिले से आकर दिल्ली के समीपवर्ती उपनगर के एक गाँव में रहती है।

पहले झुग्गी-झोंपड़ी में और फिर जमीन खरीदकर और मकान बनाकर। छह-छह बच्चों को अपने मजदूर पति की छोटी कमाई में किसी तरह पालती-पोसती मुन्नी कभी स्वेटर बुनकर कुछ कमाई कर लेती है तो कभी चोरी छिपे और नाजायज तरीके से गर्भपात करानेवाली झोला-छाप महिला डॉक्टर के यहाँ हाथ बटाती है, उसके लिए केस लाती है और बदले में कमीशन लेती है। घोर व्यावहारिक और निरंतर नई प्रकृति के काम पकड़ लेने वाली मुन्नी अव्वल दर्जे की दुस्साहसी है और आनंद भारती से प्राप्त मोबाइल पर घरेलू बाइयों का अघोषित ब्यूरो भी चलाने लगती है।

क्रमशः ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ती और भटकती, हर तरह के दाँव-पेच में वह माहिर होने लगती है और प्रभुतासंपन्न स्थानीय ठेकेदारों, रंगदारों, पुलिस थानों से लड़ती-झगड़ती, तरह-तरह की सांघातिक स्थितियों को सहती, उनकी काट सोचती कई बसों की मालकिन बन जाती है और चौधराइन की संज्ञा पाती है। स्थानीय पुलिस को अपने पक्ष में रखने के लिए वह जब-तब पत्रकार आनंद भारती के रसूख को भी भुनाती है और अंततः एक सेक्स-रैकेट की सरगना बनती है जहाँ पेशेगत स्पर्धा के तहत उसकी हत्या कर दी जाती है।

जटिल अपराध जगत की कार्य प्रणालियों को भी समझती है जहाँ मसाज पार्लर, ब्यूटी पार्लर, कॉल सेंटर आदि की आड़ में जिस्मफरोशी एवं दूसरे गैर-कानूनी धंधों का लंबा-चौड़ा तंत्र फैला है, जिसके संरक्षण और गिरफ्त में एक से बढ़कर एक नामचीन लोग हैं। यह एक आयरनी ही कही जाएगी और अपनी अपरिहार्यता में यह आयरनी कुछ ज्यादा ही तल्ख और त्रासद होकर उभरती है, जब 'मुन्नी मोबाइल' की पढ़ी-लिखी और सबसे तेजतर्रार बेटी रेखा आखिर में रेखा चितकबरी बनकर अपनी कंप्यूटर कुशलता का इस्तेमाल उसी सेक्स रैकेट को अपेक्षाकृत अधिक फुलप्रूफ तरीके से जारी रखने और उसका विस्तार करने में इस्तेमाल करती है।

उपन्यास के ये पात्र जिस उपभोगपरस्त ग्लैमर और विलासिता के मारक, आकर्षक, अर्थप्रधान देशकाल में जी रहे हैं, वहाँ रास्तों, फैसलों के सही गलत, नैतिक-अनैतिक होने पर सोचने की फुर्सत, किसी को नहीं है। बस आगे दौड़ते चले जाना ही यहाँ जीवन की एकमात्र मंशा है ।

पत्रकारिता की खुरदरी वास्तविकता और उसकी रिपोर्टिंग की तात्कालिक प्रकृति एवं साहित्य की सृजन-संभव कल्पना एवं उसकी दीर्घकालिक परिव्याप्ति को एकमेव करने की प्रदीप का लेखकीय कौशल प्रभावित करता है। सुधीश पचौरी की टिप्पणी समीचीन है 'पत्रकारिता और कहानी कला को मिक्स करके अमेरिका में जो कथाप्रयोग टॉम वुल्फ ने किए हैं, प्रदीप ने यहाँ किए हैं।' समकालीन यथार्थ की चकाचौंध एवं विद्रूपता को यहाँ एक साथ परोसकर न सिर्फ कथा के अंतर्द्वंद्व को गहरा एवं वस्तुनिष्ठ किया गया है बल्कि निरंतर बदलते एवं पुनर्परिभाषित होते जीवन-मूल्यों की भी ठीक-ठीक पड़ताल की गई है।

पुस्तक : मुन्नी मोबाइल
लेखक : प्रदीप सौरभ
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
मूल्य : 250 रुपए

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