वास्तविकता का ठोस धरातल -'स्वप्न-घर'

डॉ. मनोहर भंडारी
जाने-माने कथाकार अरुण प्रकाश की कहानियों का संग्रह है-'स्वप्न-घर'। अरुण प्रकाश वर्तमान में 'समकालीन भारतीय साहित्य' के संपादक के रुप में कार्यरत हैं। पेंगुइन बुक्स द्वारा प्रकाशित इस कहानी संग्रह में कुल 15 कहानियाँ हैं, जो यथार्थ के धरातल पर गढ़ी गई हैं।

कथाकार ने बड़ी ही बारीकी से जीवन के हर पहुलओं को उभारने की कोशिश की है। कहानियों को पढ़ने के बाद ऐसा आभास होता है कि वास्तविकता की जिस धरती पर इन कहानियों की रचना की गई है उसके पीछे अनुभवों का एक विशाल सागर है। जिसमें गोते लगाकर अरुण प्रकाश ने मोतियों की तरह यह संग्रह निकाला है।

ज्यादातर कहानियों में आंचलिक परिवेश की सुखद अनुभूति होती है। जैसे 'भैया एक्सप्रेस' कहानी में जब एक बिहारी लड़का संसार की सच्चाइयों से रू-ब-रू होता है और उसकी जो मनोदशा होती है, उसके प्रस्तुतीकरण में कहीं भी बनावटीपन नहीं लगता। पंजाब में दंगों और कर्फ्यू का जो दौर चला था उसका बिल्कुल सटीक वर्णन किया गया है।

आदिवासी क्षेत्र में आदिवासियों की वास्तविक दशा क्या है उसकी एक झलक 'बेला एक्का लौट रही है' में मिलती है। किस तरह गैर आदिवासी लोगों द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार और उनके हकों का दमन किया जाता है उसकी एक सच्ची तस्वीर इस कहानी में पेश की गई है।

बिहार में बाढ़ के दौरान लोगों की जिंदगी कितनी नारकीय हो जाती है उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। वातानुकूलित कमरों में बैठकर योजनाएँ बनाई जाती हैं और वह हर साल बाढ़ के पानी में यूँ ही बह जाता है। स्थिति फिर भी जस की तस बनी हुई है। 'जल-प्रांतर' कहानी के माध्यम से लेखक ने बाढ़ और उससे जुड़े अंधविश्वासों का बड़ा ही मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया है।

मंझोले शहरों में आज भी लड़कियों को अपना भविष्य सँवारने की न तो इजाजत मिली और न ही अजादी। कुछ गिने-चुने उदाहरणों को छोड़कर इन शहरों की दशा आज भी वही है। उसी समाज में जब नर्मदा अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश करती है तो उसे न केवल समाज बल्कि अपने परिवार तक का विरोध सहना पड़ता है और लेखक ने 'अथ मिस टपना कथा' में उसी सामाजिक परिवेश का खाका प्रस्तुत किया है।

झुग्गी बस्तियों की जिंदगी भी कितने रंग होते हैं इस पर हमारा ध्यान शायद ही कभी जाता हो लेकिन लेखक ने उस दुनिया की सच्चाई पर पड़ी परतों को बड़ी ही खूबसूरती से खोला है। उनके सपने, उनके सुख-दुःख की दुनिया भी काफी रोमांचक होती है। 'मंझधार किनारे' में रंजो और असलम की एक अपनी ही दुनिया है, जिसकी अपनी परेशानियाँ और उसे सुलझाने के अपने तरीके हैं।

इन्हीं सच्चाइयों से रू-ब-रू कराती इस संग्रह की उनकी अन्य कहानियों में 'आखिरी रात का दुःख', 'तुम्हारा सपना नहीं', 'स्वप्न-घर', 'अच्छी लड़की', 'बहुत अच्छी लड़की', 'योगदान', 'शंख के बाहर','विषम राग' और 'गज पुराण' कहानियों का अपना अलग ही सौंदर्य है। भाषा सहज है कुछ आंचलिक शब्दों का प्रयोग इसे और सहज बनाता है। कुल मिलाकर संग्रह निजी संग्रह में स्थान देने योग्य है।

पुस्तक : 'स्वप्न-घर'
लेखक : अरुण प्रकाश
मूल्य : 175 रु .
मुद्रक : डी यूनीक प्रिंटर्स, नई दिल्ली
प्रकाशन : पेंगुइन बुक्स।

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