वैवाहिक रिश्‍तों की अनोखी बानगी : स्पाउस

Webdunia
- श्रुति अग्रवाल

' असल में तुम्हारी पीढ़ी को शादी करनी ही नहीं चाहिए। तुम लोगों को बिलकुल भी नहीं पता शादी में क्या देना है.....' माँ-बेटे के कुछ इस तरह के वार्तालाप से शुरू होता है, प्रसिद्ध लेखिका शोभा-डे का नया उपन्यास, 'स्पाउस।'

स्पाउस के जरिए एक तरफ शोभा डे ने अपने और अपने पति दिलीप के संबंधों को खूबसूरती से उकेरा है। वहीं अपनी स्त्रियोचित गलतियों को ईमानदारी से स्वीकारा है। पहली शादी टूटने की वजह को भी रेखांकित किया है। एक तरह से ये पूरी किताब शोभा के 'एक युवती से परिपक्व महिला के रूप में कायान्‍तरित होने की कहानी है। 'स्पाउस' के जरिए उन्होंने वैवाहिक जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों को अपने निराले अंदाज में समझाया है।

शोभा का मानना है कि वर्तमान विवाहों में विवाह वाली बात रही ही नहीं है। अधिकांश लोग 'बस निभाना है...इसलिए शादी का बंधन निभाते हैं। शोभा का मानना है, विवाह ऐसे लोगों के लिए बना ही नहीं है।'

विवाह को लेकर शोभा का नजरिया बताता है कि विवाह बेहद खूबसूरत रिश्ता है। यह एक ऐसी संस्था है, जिसमें कई लोग शामिल होते हैं। इसमें बंधने का अर्थ एक दूसरे में एकाकार हो जाना, एक दूसरे की पसंद-नापसंद को अपनाना और उसके व्यक्तित्व को पूरी तव्ज्जो देना है। जैसे ‘स्पाउस’ में एक जगह शोभा ने लिखा है, ‘डे ने एक बार कहा था, शलवार-कमीज रसहीन पोशाक है, ये तुम पर कोई असर नहीं छोड़ती। उस दिन के बाद से मैंने शलवार-कमीज नहीं पहनी।’

अपनी इस किताब में शोभा ने कई बार उपदेशक का चोला भी पहना है। विवाह में किन बातों का ध्यान रखें, क्या करें-क्या न करें, इस बारे में उन्होंन कई बातें समझाने की कोशिश की है। 'स्पाउस' पच्चीस अध्यायों में बँटा उपन्यास है। हर अध्याय के बाद शोभा अपने अनुभवों के अधार पर सलाह देती नजर आई हैं। जैसे प्रेम विवाह पर उन्होंने लिखा है- 'सब प्रेम-विवाह बॉलीवुड फिल्मों की तर्ज पर नहीं चलते। अपने सुनहरे ख्वाबों की दुनिया में जरूर रहें, पर अँधेरों को भी नजरंदाज न करें।'

शोभा को किस्सागोई में महारत हासिल है...उन्होंने अपनी किताब ‘स्पाउस’ में अपने परिचितों के जीवन का खूबसूरत खाका खींचा है। इस खाके में उनके वैवाहिक जीवन से जुड़े कई पहलुओं पर ध्यान दिया है। लेकिन पुस्तक पढ़ते-पढ़ते कहीं-न-कहीं इस खाके में कुछ कमी लगती है...कभी मध्यमवर्ग की दास्तानों की....कभी निम्नवर्ग के वैवाहिक जीवन को अनदेखा कर देने की...एक तरह से पूरी किताब उच्चवर्गीय वैवाहिक जीवन के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है।

इसके बाद भी किताब का अच्छा संपादन पाठक को बाँधे रखता है। ऐसे लोग जो शादी का सच जानना चाहते हैं, जिनके दिमाग में शादी क्यों, कैसे और किसलिए जैसे प्रश्न घुमड़ते रहते हैं, वे जो शादी के उतार-चढ़ाव से रू-ब-रू होना चाहते हैं....और वह भी जिन्हें शोभा डे का लेखन पसंद हो, ऐसे सभी लोगों के लिए यह किताब नायाब तोहफा साबित होगी।

किताब- 'स्पाउस'
लेखिका- शोभा डे प्रकाशक- पेंगुइन प्रकाशन
पृष्‍ठ संख्‍या- 272
मूल्य- 150 रुपए

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