उर्दू में गजल और हिन्दी में गीत यद्यपि सर्वाधिक पुरानी और लोकप्रिय काव्य विधाएँ है ं, लेकिन इनको इन्हीं की हैसियत में समझना और साधना पर्याप्त रचनात्मक क्षमता की माँग करता है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि हर छंदबद्ध कविता गीत नहीं होती और न हर 'द्विपंक्त ि' शेर और न कई 'द्विपंक्तिया ँ' गजल ।
गीत और गजल का एक विशिष्ट चरित् र, एक खास मिजाज होता ह ै, जिसे आत्मसात करना हर छंद-कवि के लिए संभव नहीं है। शिल्प की दृष्टि से मात्राएँ गिनकर आप गीत के चरण को तकनीकी तौर पर सही कह सकते हैं- भाव-भाषा-विचार की बात बादमें... लेकिन गजल का शिल्प इतना सरल और सीधा नहीं है ।
बह र, वज् न, काफिया और रदीफ के अलावा भी बहुत कुछ ह ै, जो सही अर्थों में आपके लिखे हुए को गजल बना सकता है और वह बहुत कुछ शायर का अपना होता है। लेकिन पहली पायदान पर बहर-वज्न की ही शर्त है ।
अगरये अरुज (पिंगल) के मुताबिक नहीं ह ै, तो शेर में मौजूद कितना ही गहरा भाव और कितना ही ऊँचा विचार बेमानी माना जाएगा।
सैकड़ों सालों के बाद आज भी काव्यानुशासन की दृष्टि से गजल से ज्यादा अनुशासित एवं कठिनतर शायद कोई विधा नहीं है। जबकि पिछले चार-पाँच दशकों की अधिसंख्य कविताओं में तो आसेतु हिमालय पूरा देश ही परम स्वतंत्र है।
' दर्द चमकता ह ै' पाकिस्तान के लोकप्रि य, जज्बाती और जेहनी तौर पर परिपक्व शायर मुजफ्फर वारसी की रचनाओं का एक प्रतिनिधि संकलन ह ै, जिसमें उनकी चुनिंदा गजलों को शामिल किया गया है। मुजफ्फर वारसी का अनुभववृत्त काफी व्यापक है। जीवन-जगत के लगभग सभी कान्तारों तक उनकी सूक्ष्म और बेधक दृष्टि पहुँची है।
मानव-मन के शायद ही कोई भाव हों जो उनके अशआर में साकार न हुए हों। गो कि वारसी ने उर्दू शायरी की अन्य विधाओं को भी बखूबी कलमबंद किया है। लेकिन उनकी अपनी शेरियत गजलों में ही पूरे सौंदर्य और प्रभावशीलता के साथ उजागर हुए हैं ।
वे पाकिस्तान के अलावा दीगर देशों में भी एक मशहू र, स्वीकृत और प्रतिष्ठित गजलगो माने जाते हैं।
समा ज, राजनीत ि, इंसानी शख्सियत के बाहरी-भीतरी पक् ष, यांत्रिकता और पूँजी के बढ़ते दबाव तले संवेदनहीन होता मानव- समुदा य, छीजते हुए मानव-मन के कोमल-कान्ता र, बढ़ती हुई अमीरी और गरीबी के बीच खाई और मानव-विरोधी राजतंत्र का कुरूप चेहरा वारसी की गजलों में पूरी कलात्मकता और प्रभाविष्णुता के साथ चित्रित है।
इस उम्मीद के साथ कि हिन्दी के गजल-प्रेमी पाठक पाकिस्तान के इस उम्दा शायर जनाब मुजफ्फर वारसी का तहेदिल से स्वागत करेंगे- अंत में उनके कुछ अशआर प्रस्तुत हैं :
मानव-मन के शायद ही कोई भाव हों जो मुजफ्फर वारसी के अशआर में साकार न हुए हों। गो कि वारसी ने उर्दू शायरी की अन्य विधाओं को भी बखूबी कलमबंद किया है। लेकिन उनकी अपनी शेरियत गजलों में ही पूरे सौंदर्य और प्रभावशीलता के साथ उजागर हुए हैं।
वतन की रेत जरा एड़ियाँ रगड़ने दे/ मुझे यकीं है कि पानी यहीं से निकलेगा।
मैंने देखा है मुहब्बत को बदन पहनाकर/ हाथ जोड़े हुए बैठी हो पुजारिन जैसे।
इंसाफ तो खैरात में कोई नहीं देता/ कानून भी मुजरिम को बचाने के लिए है।
साफगोई से अब आईना भी कतराता है/ अब तो पहचानता हूँ खुद को भी अंदाजे से ।
* पुस्तक : दर्द चमकता है * लेखक : मुजफ्फर वारसी * प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक् स, नई दिल्ली * मूल्य : रु. 75 /-