सुरों से सजा सिनेमाई इतिहास

द हमिंग एज ऑफ हिन्दी फिल्म म्यूजिक

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आज हम शायद ही इस बात की कल्पना भी कर पाएँ कि हिन्दी फिल्में बिना गीत-संगीत के कैसी रही होंगी? आज तो फिल्म के रिलीज होने के भी पहले उनका संगीत बिक जाता है और करोड़ों लोगों के कानों-आँखों तक पहुँच जाता है।

कल्पना कीजिए उस दौर की, जब 'बेजुबान' फिल्में लोगों का मन बहलाती थीं। धीरे-धीरे बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ और संगीत ने फिल्मों में जगह बनाना आरंभ कर दी। तब संगीतकार से लेकर गायक-गायिका तक अधिकांशतः शास्त्रीय संगीत में दक्ष हुआ करते थे।

हारमोनियम, तबले और तानपुरे जैसे वाद्यों की प्रमुखता हुआ करती थी और मजेदार बात यह भी कि चूँकि आउटडोर शूटिंग्स के लिए बहुत ज्यादा संसाधन और व्यवस्थाएँ नहीं हुआ करती थीं, लिहाजा गाने वालों और बजाने वालों को भी हीरो-हीरोइन के आस-पास कभी पेड़ों तो कभी झाड़ियों की शरण लेकर फिल्मों को संगीतमय बनाने के काम करना पड़ते थे।

यही नहीं, अगर आप सोचते हैं कि द्विअर्थी या अश्लीलता की सीमा में आने वाले गीत आज के युग की देन हैं तो उस युग के इन गानों की पंक्तियों पर जरा गौर फरमाएँ-

' तेरा गाल है दिलबर कि शिमले का चुकंदर है' (किसकी प्यारी-1937) तथा 'मेरे जोबन की देखो बहार...' (शरीफ डाकू-1938) आदि। इसके अतिरिक्त 'हरिशचंद्र' जैसी फिल्म में- 'इस लोटे में इस सोटे से तुम घोंट-घोंट के पी लो' तथा 'नीति विजय' फिल्म में- 'एक पैसा कोई देगा गर मुझे, सौ गालियाँ सुना दूँगा...' टाइप के अजीबो-गरीब गाने भी फिल्मों में शामिल किए गए।

हिन्दी सिनेमाई संगीत से जुड़ी ऐसी ही कई रोचक जानकारियों को सूत्रबद्ध किया है लेखक दिलीप गुप्ते ने अपनी पुस्तक 'द हमिंग एज ऑफ हिन्दी फिल्म म्यूजिक' (1931-1940) में। पुस्तक में इस बात का भी जिक्र है कि किस तरह उस दौर में भी ठंडे माहौल में थिएटर तक भीड़ खींचने के लिए फ्री टिकट्स से लेकर फ्री गेहूँ पीसने की सुविधा, लकी ड्रॉ व ओवलटीन के पैकेट बाँटने तक आदि जैसी योजनाएँ लागू की जाती थीं।

पुस्तक में हिन्दी सिनेमा में संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले गोविंदराव टेम्बे, केशवराव भोले,मास्टर कृष्णराव, रायचंद्र बोराल, पंकज मलिक, सरस्वती देवी, खेमचंद तथा अनिल बिस्वास जैसे नामों से जुड़ी जानकारी के अतिरिक्त केएल सहगल, सुरेंद्रनाथ, केसी दे, कानन बाला, शांता आप्टे, देविका रानी, खुर्शीद तथा राजकुमारी जैसे गायकों, आदि का भी विस्तार से वर्णन किया गया है।

कुल मिलाकर पुस्तक उस दौर के हिन्दी सिनेमाई संगीत को अलग रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती है।

द हमिंग एज ऑफ हिन्दी फिल्म म्यूजिक
लेखक : दिलीप गुप्ते
प्रकाशक : एसडीपी बुक्स, ए-22, इंद्रपुरी कॉलोनी, न्यू आगरा, 282005
मूल्य : 175 रुपए

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