हँसने को जी करे

व्यंग्य की सीमा को छूता हास्य

Webdunia
अवनीश मिश्रा
ND
अखबारों की सुर्खियाँ बने बगैर हास्य हमारे जीवन से दबे पाँव गायब होता जा रहा है। भारत जैसे देश में जहाँ लगभग हर प्रदेश में हास्य के अपने चरित्र हैं, उनके किस्से हैं, हास्य को इस कदर देशबदर कर दिया जाना एक दर्दनाक सच्चाई के समान है। आज शहरी जीवन की आपाधापी में 'हास्य' हैंड शेक की तरह एक मुद्रा भर बनकर रह गया है। हँसी की भंगिमा है, हँसी गायब है। हँसना अगर जीवन के लिए जरूरी है तो यह जरूरत पूरी करती है पत्रकार-लेखक सत सोनी की किताब 'हंसने को जी करे'।

सोनी हिंदी के उन गिने-चुने लेखकों में से हैं जो हास्य विधा पर लगातार काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि उनके लिए हास्य महज लोगों को गुदगुदाने का जरिया नहीं बल्कि लोगों के साथ संवाद स्थापित करने का एक औजार भी है।

' हंसने को जी करे' में हास्य के कुछ टुकड़े, कुछ पीस संकलित हैं। इनमें ऐसे टुकड़े काफी हैं जो चेहरे पर अनायास ही एक सहज मुस्कान बिखेर देते हैं । वैसे बत्तीसी दिखाऊ हँसी पैदा करने वाले टुकड़े यहाँ कम है। दरअसल, गद्य में ऐसा संभव भी नहीं है। सजग लेखक का गद्य हास्य में जाने-अनजाने व्यंग्य की सीमा छूने लगता है।

ऐसा ही इस किताब में भी हुआ है। व्यवस्था में फैले विद्रूप की सोनी ने किताब में जमकर खबर ली है। मिसाल के तौर पर 'एक नेता मिल गया' में आज की राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग्य भी है और चुटीला हास्य भी। इसी तरह 'जीना यहाँ मरना यहाँ' में सरकारी दफ्तरों में मौत के नाम पर फैले गड़बड़-झाले को दिखाया गया है। 'मैंने एक लड़की को छेड़ा' कानूनी लेटलतीफी को और इस प्रक्रिया में समूची न्याय व्यवस्था के अप्रासंगिक हो जाने का किस्सा है।

सामान्य जीवन में छुपे हास्य को पकड़ पाने की विलक्षण क्षमता सोनी में है। इसे 'जो कुछ नहीं करते', 'हर कोई रीमिक्स है', 'हिमालय जाने की तैयारी', 'नाम में क्या रखा है' आदि में बखूबी देखा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि यहाँ विशुद्ध हास्य की कमी है। 'मकान के बाहर लिखा है','बाल की खाल' ,'दस साल बाद', 'मुर्गा बनाम उल्लू'आदि में निर्मल हास्य का सोता बहता हुआ देखा जा सकता है। 'एक लाख रुपए का लोन' बडे दिलचस्प तरीके से कही गई विशुद्ध हास्य रचना है। इसी तरह 'क्या आप सब पढ़ते हैं' में विज्ञापनों के जरिए किस तरह साधारण लोगों को बरगलाने का धंधा चलाया जा रहा है, दिखाया गया है।

सोनी पेशे से पत्रकार हैं। इस कारण उनके लिखे में एक सहजता दिखलाई देती है। शब्दों की कीमियागिरी से ज्यादा उनके यहाँ हास्य देखे-भोगे गए यथार्थ के प्रति जीवंत दृष्टि के कारण पैदा हुआ है। हास्य या लॉफ्टर को बाजारू माल बना दिए जाने के इस दौर में यह जरूरी लगता है कि लोगों तक सुरुचि पैदा करने वाले हास्य को पहुँचाया जाए। सत सोनी की किताब इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

पुस्तक : हँसने को जी करे
लेखक : सत सोनी
प्रकाशक : अरावली बुक्स इंटरनेशनल (प्रा.) लिमिटेड
मूल्य : 185 रुपए

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