हास्य तात्कालिक अट्टहास तक सीमित रहता है

Webdunia
- ओम ठाकु र
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' आँखों देखा हा ल' कवि हरीशकुमार सिंह क ी, हास्य-व्यंग्य विषयक अट्ठावन कविताएँ हैं। संकलन में कवि ने दैनिक जीवन में घटने वाली छोटी-बड़ी बसों से लेकर दूरदर्श न, राजनीत ि, धर् म, शिक्ष ा, पुलिस सभी को अपना विषय बनाया है। 'हास् य' और 'व्यंग् य' शब्दों का प्रयोग आमतौर पर एक साथ होता ह ै, फिर भी दोनों में प्रभावगत अंतर है। व्यंग्य जहाँ कचोट पैदा कर दूर तक चलता ह ै, वहीं हास्य तात्कालिक अट्टहास और आनंद तक सीमित रहता है। हास्य की खूबी है कि वह उदास और चुप बैठे व्यक्ति तक को हँसने-खिलखिलाने के लिए मजबूर कर देता है। हास्य-व्यंग्य मे ं, बात के सा थ, बात को प्रकट करने वाली भाषा-शैली की अहमियत होती है। हास्य-व्यंग्य को शैली का करिश्मा कहा जा सकता है।

हरीश कुमार सिंह की सभी कविताओं का लहजा लगभग एक-सा है। एक कविता से दूसरी पर जाते हुए पाठक को ऐसा नहीं लगता कि वह कुछ अलग और विशिष्ट पढ़ रहा है। फिर भी विषय वैविध्य पर्यात ह ै, जो कवि के जागरूक होने का प्रमाण है। नेता और आमजन में अंतर बताते हुए हरीश कुमार 'तुम बीवी संग टीवी देख ो' कविता में कहते हैं- 'बंद कचहरी खुल जाए/ इन्हें जमानत मिल जाए/ जेल नहीं और न ही हथकड़ी/ इनको तो सब माफ है/ दुखियारी जनता को तो/ मिलता नहीं इंसाफ है/ कानून के जाल ने कर दिया कबाड़ा देखो ।' इस कविता मेंशुद्ध रूप से व्यवस्था के प्रति शिकायत ह ै, हास्य-व्यंग्य तो कदापि नहीं। इसी प्रकार 'कथनी-करन ी, कविता में 'सुधारने में लगे देश को/ खुद कोई नहीं सुधर रहा है/ जैसे कहे कोई नेता/ देश बेईमान हो रहा है/...जैसे कहे कोई मास्टर/ देश का मजदूर आलसी हो रहा है ।' इसमें भी शिकायत का स्वर ही मुखर है।

संग्रह में कहीं-कहीं हास्य-व्यंग्य की झलक मिलती अवश्य है जैसे 'शिक्षक और छात् र' कविता में यह प्रश्नोत्तर- 'प्रश्न पूछा- कि भारतीय रेलों/ और भारतीय महिलाओं के बारे में बताओ/ छात्र बोला/ कि सर/ भारतीय रेलें जब लेट होती हैं/ तो/ मेकअप करती हैं/ और भारतीय महिलाएँ मेकअप के कारण/ हमेशा लेट हो जाती हैं ।'

कविता की सपाटबयानी में आँखों देखी घटना या बात ही सामने आती ह ै, घटना और बात के पीछे जो विद्रूप है वह बाहर ही छूट जाता है। एक बात यह भी कि चुटकुले और कविता में अंतर करना जरूरी है। फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने इर्दगिर्द को देखन े, पहचाननेवाली नजर हरीश कुमार के पास है और वे निरंतर सक्रिय रहकर हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति शिद्दत के साथ दर्ज कर सकते हैं।

पुस्तक : आँखों देखा हाल
कवि : डॉ. हरीश कुमार सिंह
प्रकाशक : हिन्दी साहित्य निकेत न, बिजनौर (उ.प्र.)
मूल्य : रु. 150 /-

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