अंजुरी भर आकाश : सौंधी सी कविताएं

Webdunia
आदित्य 
 
अंजुरी भर आकाश नाम की किताब सामने आते ही सबसे पहले निदा फाजली याद आए, सोचा 'बांहों भर आकाश' जैसी ही कोई बात होगी...लेकिन नई नवेली किताब सामने हो तो मन कैसे माने? वह भी जब उसका मुखपृष्ठ भी आकर्षक लग रहा हो और अनुवाद की जगह भावानुवाद करने वाले का नाम बाकायदा कवि की बराबरी से दिया गया हो।


तो आखिर किताब खोल ही ली...सच कहूं तो चंद्रशेखर गोखले जैसे कवि का नाम पहले मेरे सामने से नहीं गुजरा और अब, किताब की एक सैर के बाद इस बात के लिए हैरान हूं कि क्यूं नहीं गुजरा यह नाम पहले ही मेरे सामने से...कवि यदि भावानुवादक को कहे कि आपने तो मेरी कविताओं को गोद ही ले लिया है तो आप समझ सकते हैं कि लिखने वाले ने क्या कमाल किया होगा और फिर उसके भाव पकड़कर उन्हें भाषा बदलकर पाठकों के सामने रखने वाले किस कदर उन्हें चीन्हा होगा। 
 
दो लाईन या त्रिवेणी की तरह या कुछ कुछ जगहों पर अधिकतम चार लाइनों में बात पूरी कह कर सहजता से हट जाना कवि के लिए बेहद दुरुह काम होता होगा (या कम से कम मुझे ऐसा लगता है) और यही काम उन्होंने बखूबी किया है। जो उन्हें लंबे समय से पढ़ते आ रहे हैं वो उन्हें चांगों कहते हैं और उनकी कविता को चंगी कविता कहा जा सकता है। कमाल यह कि रातरानी से लेकर रात, गुलमोहर, नदी, सीली बारिश और गंध-सुगंध तक सब कुछ सहेजते हुए भी गोखले 'गुलजार' नहीं हो जाते। 
 
अपनी खुशबू, अपना कहन और अपना अंदाज अनछुआ सा बनाए रखना भी कमाल का कमाल है। अंजुरी भर आकाश में आधी अंजुरी भर तो पारिजात (हरसिंगार)किसी न किसी रुप में मौजूद है और हर इससे जुड़ी कविता में हरसिंगार की भीनी खुशबू ही नहीं उसका सिंदूरी सफेद बिछौना भी सामने नजर आता है। सबसे अच्छी बात जो मुझे किसी किताब में लग सकती है और इसमें भी लगी है तो यही कि जिंदगी से शिकवा शिकायतों का कोई पुलिंदा नहीं है। 
 
इन सौंधी सी कविताओं के बीच कहीं कहीं अचानक आपको विद्रोही कवि पाश भी झांकता नजर आ जाएगा जब गोखले कहते हैं कि कपूर का बेबाक जलना मुझे कभी रास नहीं आता, ऐसे जलने में एतराज नहीं अंत में कुछ हाथ नहीं आता। किताब की शुरुआत आकर्षक आवरण से होती है तभी से वह आपको आगोश में लेना शुरु कर देती है फिर पन्ने पलटते जाते हैं और आप भावानुवादक अशोक बिंदल, कवि चंद्रशेखर गोखले के अलावा यशवंत व्यास से भी रुबरु होते हैं तब तक इस बात की खातरी हो जाती है कि आपने पांच कम तीन सौ रुपए खर्च कर कहीं कोई गलती नहीं की है। 
 
एक बार कविताओं में रमने का सिलसिला शुरु कर दें तो फिर बाकी बातें न आप याद करते हैं और न वो याद आती हैं...हां वैसे इसमें यादों को लेकर भी काफी कुछ है। मराठी मूल की ये कविताएं यदि हिन्दी में इस कदर सहजता से आपके अंदर तक उतरती हैं तो इसके लिए अशोक बिंदल को भी बधाई बनती है और हर उस शख्स के लिए साधुवाद भी बनता है जिसने इन कविताओं को हिन्दी स्वरुप में सामने लाने की मेहनत की।
 
पुस्तक : अंजुरी भर आकाश
कवि : चंद्रशेखर गोखले
भावानुवादक : अशोक बिंदल
प्रकाशक : दिव्य प्रकाशन,  
1503, मेघदूत,
बैक रोड़,
लोखंडवाला, अंधेरी(पश्चिम) मुंबई, 400053, फोन : 022 22033051   
कीमत : 295 रुपए 
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