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पत्रकारिता के हर आयाम पर विमर्श करती है डॉ अर्पण जैन की किताब ‘पत्रकारिता और अपेक्षाएं’

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, मंगलवार, 14 जून 2022 (16:20 IST)
प्रिंट पत्रकारिता, इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया और डिजिटल मीडिया। यह नया दौर पत्रकारिता के इन्‍हीं तीन तरह के माध्‍यमों के ईर्दगिर्द है। सबसे पहले प्रिंट यानी अखबारों की दुनिया अपने ऊरोज पर रही, फिर टीवी माध्‍यम ने अपनी गहरी जगह बनाई और अब नए मीडिया के तौर पर वेब पत्रकारिता या डिजिटल जर्नलिज्‍म का अपनी जड़ें जमा रहा है।

लेकिन वर्तमान में पत्रकारिता को लेकर कोई गंभीर विमर्श या चिंता कहीं नजर नहीं आते हैं। ऐसे दौर में जब पत्रकारिता को लेकर कोई चर्चा नहीं करना चाहता, अगर कोई पत्रकारिता के सभी आयामों को लेकर विमर्श करे और इसके बारे में पाठ दर पाठ विचार कर एक दस्‍तावेज तैयार करे तो यह सुखद खबर हो सकती है। ऐसे दस्‍तावेज देखकर निश्‍चित तौर पर यह लगता है कि अभी वो दिन नहीं आए हैं, जब पत्रकारिता के बारे में कोई सुनना भी पसंद नहीं करता।

डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ एक ऐसा ही नाम है, जिन्‍होंने पत्रकारिता और पत्रकारिता से अपेक्षाओं को लेकर सुध ली है। इस विषय पर उन्‍होंने एक किताब लिखी है, शीर्षक है ‘पत्रकारिता और अपेक्षाएं’ 

डॉ अर्पण जैन अपनी इस किताब में पत्रकारिता के तीनों माध्‍यमों के साथ ही मोबाइल पत्रकारिता से लेकर उसकी भाषा, चरित्र, पत्रकारों की जिम्‍मेदारी, उनकी लक्ष्‍मण रेखा और खबरों के अस्‍तित्‍व और पत्रकारिता जगत के संकट तक की बातें करते हैं। वे सभी के बारे में बेहद बारीकी से विश्‍लेषण कर अपनी बात रखते हैं।

किताब में पत्रकारिता के स्‍वर्णिम काल से लेकर आधुनिक मीडिया की भूमिका और अखबारों व टीवी में काम कर रहे संपादकों से हिंदी भाषा के लिए अपेक्षा पर भी प्रकाश डालते हैं। डॉ अर्पण पत्रकारिता में खबरों, आलेखों और अन्‍य कंटेंट की भाषा को लेकर बेहद चिंतित हैं, दरअसल, वे मातृभाषा उन्‍नयन संसथान के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष भी हैं, शायद यही वजह है कि उनकी पुस्‍तक के हर पाठ में भाषा के प्रति उनकी चिंता मुखर हो जाती है। इसीलिए किताब के माध्‍यम से वे मातृभाषा उन्‍न्‍यन संस्‍थान के उदेश्‍यों पर भी प्रकाश डालते हैं।

लेखक किताब में अतीत की पत्रकारिता का जिक्र करते हैं तो भविष्‍य की पत्रकारिता को भी उम्‍मीदभरी निगाह से देखते हैं और खबरों से लेकर रिपोर्टर और संपादकों तक से इसके अस्‍तित्‍व पर मंडरा रहे संकट के लिए अपनी जिम्‍मेदारी और सीमाओं पर बहस करने और रोशनी डालने की बात लिखते हैं। असल खबर और उस पर सत्‍ता के प्रभाव, बदलती हुई खबरें और नए कंटेंट का भी जिक्र किताब में हैं।

कुल मिलाकर पूरी किताब पत्रकारिता के भविष्‍य को लेकर चिंता व्‍यक्‍त करती है और इसी चिंता के भीतर कहीं उसके समाधान पर मंद मंद रोशनी भी बिखेरती है। 50 पन्‍नों की यह छोटी सी किताब पत्रकारिता विषय पर गहरी चर्चा करती है। मूल्‍य सिर्फ 70 रुपए हैं और संस्‍मय प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। किताब संक्षिप्‍त जरूर है, लेकिन पत्रकारिता के वरिष्‍ठों से लेकर नए पत्रकार और तीनों माध्‍यमों में काम कर रहे पत्रकारों को इसे एक बार जरूर पढ़ना चाहिए।
पुस्‍तक : पत्रकारिता और अपेक्षाएं
लेखक : डॉ अर्पण जैन
प्रकाशक : संस्‍मय प्रकाशन
कीमत : 70 रुपए 

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