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पुस्तक-अंश : इतना तो मैं समझ गया हूं...

हमें फॉलो करें पुस्तक-अंश : इतना तो मैं समझ गया हूं...
दीपक रमोला के प्रथम काव्य संग्रह में संकलित कविताएं उनके जीवन की स्वानुभूत अभिव्यक्तियां हैं जिनमें उनका हृदय धड़कता है। इन्हें किसी एक मनोभूमि में नहीं समेटा जा सकता। ये अनेक अनुभवों की परछाईं हैं, जैसे समुद्र के किनारे फैले शंखों में छिपे नाद। इनकी अभिव्यक्ति उम्र के पड़ाव से कहीं आगे विचरती है।
 
नवयुवा मन में चुभन है, जो ज़िंदगी के आस-पास से लिए प्रसंगों को मुखरित कर देती है। कविता 'ज़िंदगी चोंच मारती है' इसी का परिणाम है। दीपक की पैनी निगाहों में ज़िंदगी एक आसान कसीदाकारी नहीं जिसमें सहज, सरल तरतीब से चलने वाले सूई-धागे की नफ़ासत उभरे। इनके लिए हर लम्हा एक चुनौती है जिसे स्वीकारना ही है कि अंजाम न जाने क्या निकले।
 
इनकी रचनाओं को पढ़कर समझना आसान है कि कहीं ये संवेदनशील कवि हैं, कहीं ग़ज़लकार और कहीं किसी कहानी की पकड़ी कड़ी को ख़ूबसूरती से गीतों में ढालते गीतकार। कवि हृदय सामयिक घटनाओं से उलझता है और परिणामत: सृजन होता है 'इजाज़त' और 'एक बुरा सपना'।
 
इनकी पर्वतीय उपत्यका में हुई परवरिश ने इन्हें प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा दी है। वहीं अंदर तक भीगा हुआ तृप्त मन है, जो आज की ज़िंदगी की आपाधापी से अनछुआ है। अगर प्यार है तो इंतज़ार में अधिक रस है, मिलन में विकर्षण। ज़िंदगी में मेहनत है, उपलब्धियां हैं, पर गहन तनहाई है। जहां कवि ख़ुद ही से रू-ब-रू है रिश्ते, नाते, मीत सभी बेमानी हैं।
 
'कितने रिश्तों की क्लास में
नाकामयाब होकर तुम
आए हो इस रिश्ते को आजमाने की ख़ातिर...'
 
उर्दू का प्रभाव कविताओं को सौम्य बनाता है। अनेक रचनाओं में की गई स्वयं से गुफ़्तगू उनके जीवन के पहलुओं को उजागर करती है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी दीपक कविता, गीत, ग़ज़ल, कहानी सहज ही लिख लेते हैं। इनके भाव और शब्दों में माधुर्य भरा है। 'कच्ची-पक्की नज़्म' में आम की कैरी से कवि की नज़्म की तुलना नई उपमा और नए प्रतीकों से भरी है-
 
'गिर जाती है जैसे
एक सयाने पत्थर की चोट से
आम के बग़ीचों में कैरी
हश्र है नज़्मों का कुछ वैसा ही
ज़िंदगी में मेरी...'
 
दीपक की कविताओं में रुमानियत उनकी कहानियों से छिटककर बिखरी पड़ी है। सच्ची जीवनगाथाएं हैं जिन्हें बड़ी शिद्दत से जीवन शिक्षा के रूप में उन्होंने यहां-वहां से सहेजा है। ये किसी दूसरे विकल मन को शांत करने के लिए जीवन की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुजरी प्रेरणास्रोत हैं।
 
इनके फ़िल्मी गीतों में बहुत-सी संभावनाएं अंतरनिहित हैं- 'मांझी : द माउंटेन मैन, डियर डैड' और सुप्रसिद्ध वजीर के गीत 'अतरंगी यारी' में इन्हीं की कलम की फनकारी दिखाई देती है। अनबूझ परिस्थितियों की छुअन से उभरी कविताओं का संकलन है- 'इतना तो मैं समझ गया हूं...।'
 
लेखक के बारे में : 
 
दीपक रमोला प्रोजेक्ट फ्युएल के प्रवर्तक हैं। FUEL का अर्थ है- Forward the Understanding of Every Life Lesson। इनकी संस्था संसारभर के हर उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों से जीवन की शिक्षा एकत्रित करती है। दीपक ने यह प्रोजेक्ट 17 वर्ष की आयु से आरंभ किया था। दीपक मुंबई विश्वविद्यालय से मास मीडिया में स्वर्ण पदक विजेता होने के साथ-साथ यूनाइटेड नेशंस में वक्ता, टेड वक्ता, शिक्षाविद, लेखक, अभिनेता और गीतकार हैं। दीपक ने जून 2017 में 'वाइज वॉल' प्रोजेक्ट चलाया जिसमें देशभर के तक़रीबन 10 कलाकारों और 100 स्वयंसेवकों द्वारा उत्तराखंड के पलायन से प्रभावित गांवों को पुनर्जीवित करने का उल्लेखनीय अभियान चलाया।
 
कविता संग्रह • इतना तो मैं समझ गया हूं... 
पृष्ठ संख्या-​ 164 
मूल्य- 199/- 

साभार- वाणी प्रकाशन 

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