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Book Review: अनि‍ता पाध्‍ये की 10 क्‍लासिक्‍स… सहेजकर रखने वाला फि‍ल्‍मी दस्‍तावेज

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नवीन रांगियाल

  • मंजुल पब्‍ल‍िशिंग ने हिंदी और अंग्रेजी में किया है ‘10 क्‍लासिक्‍स का प्रकाशन  
  • हिंदी सिनेमा की 10 क्‍लासिक्‍स फि‍ल्‍मों के बनने का खूबसूरत सफर है किताब में

सिनेमा पर और अभि‍नेताओं पर कई किताबें लिखी गईं हैं। लेकिन हाल ही में जो किताब प्रकाशि‍त हुई है वो संभवत: हिंदी सिनेमा के इति‍हास की 10 क्‍लासिक्‍स फि‍ल्‍मों पर अब तक की सबसे ज्‍यादा विस्‍तार से लिखी गई किताब है।

मंजुल पब्‍ल‍िशिंग हाउस से प्रकाशि‍त इस किताब की न सिर्फ मायानगरी मुंबई में बल्‍कि‍ सिनेमा के प्रशंसकों में भी बहुत चर्चा है।

सबसे पहले तो किताब में चर्चा करने के लिए जिन 10 फि‍ल्‍मों को चुना गया वे अपने आप में काफी अहम है। प्‍यासा, पाकीजा, मदर इंडि‍या, दो बीघा जमीन, दो आंखे बारह हाथ, गाइड, तीसरी कसम, मुगल ए आजम, आनंद और उमराव जान। इन फि‍ल्‍मों के बनने की कहानी पढ़ना अपने आप में बेहद दिलचस्‍प है।

पत्रकार और लेखक अनिता पाध्‍ये की लिखी इस किताब को बेहद ही खूबसूरत तरीके से मंजुल प्रकाशन ने दस्‍तावेज की शक्‍ल दी है। कलर फ़ोटोग्राफ्स, ग्लासी कागज और बहुत विस्तार से 10 हिंदी क्‍लासिक्‍स के बनने की कहानी दर्ज की गई है।

लेखक अनि‍ता पाध्‍ये की मेहनत इस किताब में साफ नजर आती है। कैसे इन दस फि‍ल्‍मों की पृष्‍ठभूमि तैयार हुई, कैसे इन फि‍ल्‍मों के गीत, डायरेक्‍शन, डायलॉग और स्‍क्रीन प्‍ले से लेकर अभि‍नेताओं और अभि‍नेत्र‍ियों का चयन हुआ। कैसे इन फि‍ल्‍मों से जुड़े लोगों ने इन्‍हें बनाने में तकरीबन अपना जीवन ही झोंक दिया। इन सब तकलीफों, अनुभवों और संघर्षों को बहुत अच्‍छे तरीके से किताब में दर्ज किया गया है।

इस किताब में लेखक ने ऐसे किस्‍से बताएं हैं, जो शायद ही पहले कहीं सुनने को मिले हों। मसलन, किस फि‍ल्‍म को बनाने में कितने साल लगे। जैसे प्‍यासा में पहले काम करने के लिए दि‍लीप कुमार का नाम सामने आ रहा था, लेकिन उन्‍होंने यह फि‍ल्‍म करने से मना कर दिया था। कैसे गाइड ऑस्‍कर की दौड़ में पीछे रह गई। इतना ही नहीं,   इस किताब में ऐसे किस्‍से भी हैं, जिसमें बताया गया कि कौन से गाने किस फि‍ल्‍म के लिए बनाए गए थे, लेकिन बाद में उन्‍हें किस फि‍ल्‍म में इस्‍तेमाल किया गया।

ऐसे तमाम किस्‍सों और फि‍ल्‍मों की निर्माण कथाओं से भरी यह किताब एक ऐसे सफर पर ले जाती है जो हिंदी सिनेमा के क्‍लासिक होने का अहसास कराती है।

किताब में जो सबसे दिलचस्‍प पहलू है वो यह कि इसमें 1950 से 1970 के बीच की फि‍ल्‍मों का चयन कर उनके बारे में लिखा गया है। इन फि‍ल्‍मों से जुड़े बि‍मल रॉय, विजय आनंद, गुरुदत्‍त, शैलेंद्र, वी शांताराम, ऋषि‍केश मुखर्जी, महबूब खान, कमाल अमरोही, के आसिफ और मुजफ्फर अली के फि‍ल्‍मों के प्रति जुनून, उनके संघर्ष और उनके पूरे फि‍ल्‍मी सफर और करियर के बारे में बेहद दिलचस्‍प तरीके से कहानियां बयान की गई हैं।

मंजुल से यह किताब हिंदी और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशि‍त की गई है। खास बात है किताब को हिंदी क्‍लासिक फि‍ल्‍मों का इतना अच्‍छा दस्‍तावेज बनाया गया है कि उसे हमेशा सहेज कर रखा जा सकता है।

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