आकाश पक्षी : दिलचस्प उपन्यास

राजकमल प्रकाशन

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पुस्तक के बारे में
' आकाश पक्षी' एक निर्दोष और संवेदनशील लड़की की कहानी है। जो सामंतवाद के अवशेषों से घिरी हुई है। रजवारे छिन जाने के बाद भी पूर्व सामंतों क े कुंठाजनित अहंकार, हठधर्मिता और सर्वोच्चता का मिथ्या भाव उसकी सहज मानवीय इच्छाओं और आकांक्षाओं को बाधित करता है। गुजरे सामंतवाद की स्मृ्तियाँ और पनपते नए जीवन मूल्यों के बीच से निकला यह उपन्यास दिलचस्प है जिसे शुरु करने के बाद अंत तक पढ़ जाने की विवशता होती है।

पुस्तक के चुनींदा अंश
' मैं भी कहना चाहती थी कि बड़ी होकर देश के लिए मैं भी लड़ूँगी लेकिन यह बात शर्म और संकोच के मारे मेरे मुँह से नहीं निकली। इसका कारण यह भी था कि हमारे घर में नेहरूजी की हमेशा निंदा होती थी। लेकिन मेरा मन इसको स्वीकार नहीं करता था। मैंने तो अपनी किताबों में पढ़ा था कि हमारा देश एक जमाने में सोने की चिड़‍िया था, ले‍किन अंग्रेजों ने आकर इस देश को बर्बाद कर दिया। वे यहाँ का सारा सामान उठा कर ले गए। नेहरूजी ने अंग्रेजों को इस देश से भगाया फिर नेहरूजी अच्छे हुए कि बुरे? '
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' वह लिखते हैं कि प्रिवीपर्स या किसी जायदाद में मेरा कोई हक नहीं बैठता है। यह तो उनकी उदारता है कि वह मेरे पास कुछ पैसे भेजते रहे। शुरू में भी उन्होंने एक मुश्त रकम भेज दी थीं और अब भी कोई कारोबार शुरु करने के लिए वह कुछ रुपए दे सकते हैं। पर इससे अधिक उनसे कुछ भी नहीं हो सकता है। इसके अलावा अब वे एक पैसा भी नहीं भेज सकेंगे। राजा होने के नाते उनकी एक प्रतिष्ठा बनाए रखनी होती है। दिल्ली जैसे शहर का खर्चा बेहिसाब रहता है।
** *

' मैं अब भी कह सकती हूँ कि उच्चता की ऐसी भावना जिसमें खोखलापन हो, अत्यधिक घृणित वस्तु है। यह भावना अहंकार को जन्म देती है। ऐसा व्यक्ति सबको नीचा ही समझता है। वह सामान्य घटना या व्यवहार को अजीब ही घृणा से देखता है। किसी भी मानवीय भावना के अस्तित्व को नकारता रहता है। निश्चय ही बड़े सरकार को यह बात बहुत बुरी लगी थी कि हमने अपनी मजबूरी को दूसरे लोगों के सामने प्रकट किया था और उनसे मदद भी ली थी।'

समीक्षकीय टिप्पणी
भारतीय समाज से सामंतवाद के समाप्त होने के बावजूद अपने स्वर्णिम युगों का खुमार एक वर्ग विशेष में लंबे समय तक बचा रहा। आज भी जहाँ-तहाँ यह दिखाई पड़ जाता है। गुजरे जमाने की स्मृतियों के सहारे जीते हुए ये लोग नए समय के मूल्यों-मान्यताओं को जहाँ तक संभव हो नकारते हैं। उनकी शिकार होती है नई नस्लें जो जिंदगी और समाज को नए नजरिए से देखना, जानना और जीना चाहती है। परिवर्तन की बयार को भावना की कसौटी पर कसते इस उपन्यास का रंग-ढंग अन्य उपन्यासों से बिल्कुल जुदा है।

उपन्यास : आकाश पक्षी
लेखक : अमरकांत
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 220
मूल्य : 150 रुपए

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