बसंती : जीवन का सजीव चित्रांकन

राजकमल प्रकाशन

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पुस्तक के बारे में
भीष्म साहनी का सशक्त उपन्यास है बसंती। यह उपन्यास महानगरीय परिवेश में टूटती-बसती झुग्गियों में पलती-बढ़ती और बड़ी होती एक ऐसी लड़की की कहानी है जो वक्त के थपेड़ों को झेलते हुए, मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार होते हुए भी टूटती नहीं बल्कि अपनी उद्दाम जिजीविषा के बूते अपने जीवन की निरंतरता बरकरार रखती है।

पुस्तक के चुनिंदा अं श
दीनू ने उसे बाँहों में भर लिया। बसंती के लिए यह अनुभव अनूठा था। एक ओर वह दीनू की बाँहों में सिमटती जा रही थी, दूसरी ओर खिंचती भी जा रही थी। तरह-तरह के घरों में चौका-बर्तन करते हुए उसे तरह-तरह के अनुभव हो चुके थे। बहुत निकट निकट खड़े आदमी की धौंकनी की तरह चलती साँस वह कई बार अपनी गर्दन पर महसूस चुकी थीं।

आदमी की गंध से वह परिचित थी। जब उसके मन में घिन सी उठती थी। और वह किसी ना किसी बहाने वहाँ से भाग खड़ी होती थी। लेकिन यहाँ दीनू की बाँहों में उतरते जाना उसे अच्छा लग रहा था। जैसे कोई आदमी किसी गहरे सागर में डूब रहा हो। गहरा और गहरा और छटपटाने के बजाय उसे डूबने में ही सुख मिलने लगे। और वह उसमें डूबता चला जाए।
***
बसंती जिस भविष्य की कल्पना करने लगी थी उसमें दीनू का स्थान उसने ठीक ढंग से नहीं आँका था। वह भूल गई थी कि दीनू दो बीवियों का मालिक है, घर में उसी की चलेगी। बसंती समझे बैठी थी कि चूँकि उसकी गोद में बेटा है या इसलिए कि वह काम कर सकती है और कमा सकती है, घर में उसकी चलेगी। वह भूल गई थी कि इस घर का धुरा दीनू था वह नहीं थी।
***
दिन बीतने लगे। बसंती की भीगी-भीगी ममता जो एक बार फूटी तो फिर थम नहीं पाई। उसी से उसका सारा द्वेष, सारी घृणा, सारी ईर्ष्या बह गई। उसके मन में फिर से स्थिरता आ गई। वह फिर से चहकने-बोलने लगी। यों भी बसंती भावनाओं के झूले पर झूलने वाला जीव थी। अंदर से ज्वार उठता तो वह नाचने लगती। प्रियजनों से लिपटने लगती। हँसने-बोलने लगती। उसका स्वभाव ही ऐसा था।
***
समीक्षकीय टिप्पणी
यह उपन्यास महानगरीय जीवन क‍ी खोखली चमक-दमक और ठोस अंधेरी खाइयों के बीच भटकती बसंती जैसी एक पूरी पीढ़ी का शायद पहली बार प्रभावी चरित्रांकन प्रस्तुत करता है। मेहनत-मजदूरी करने के लिए महानगर में आए ग्रामीण परिवार की कठिनाइयों और जीवन जीने की जद्दोजहद का सजीव चित्रांकन है बसंती।

उपन्यास : बसंती
लेखक : भीष्म साहनी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 184
मूल्य : 150रु.

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