समुद्र की संन्‍यासिनी

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- नुपू र दीक्षि त

नवनीता देवसेन का किशोर उपन्‍यास ‘समुद्र की संन्‍यासिन ी ’ बालसाहित्‍य की एक बेहतरीन कृति है। बचपन के बाद और जवानी से पहले की इस अवस्‍था में किशोर कैसा और किस स्‍तर का साहित्‍य पढ़ते हैं, इससे उनके आने वाले जीवन की दशा और दिशा तय होती है। इस लिहाज से सोचने पर नवनीता देवसेन की यह कृति और भी महत्‍वपूर्ण हो जाती है।

यह उपन्‍यास मूलत: बांग्‍ला में लिखा गया है। चँद्रकिरण राठी ने इसका हिंदी में अनुवाद किया और वत्‍सल प्रकाशन, बीकानेर ने इसे प्रकाशित किया ।

उपन्‍यास की नायिका तेरह वर्षीय लड़की सारा एक प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्‍कार हासिल करती है। पुरस्‍कार स्‍वरूप उसे फ्राँस घूमने के लिए दो हवाई टिकट मिलते हैं। अपने छोटे मामा की मदद से सारा ने यह पुरस्‍कार जीता था, इसलिए सारा के साथ उसके छोटे मामा फ्राँस की यात्रा पर जाते हैं। सारा के हवाई-जहाज में चढ़ते ही उपन्‍यास की रोचकता भी बढ़ती जाती है। फ्राँस पहुँचने के बाद सारा के साथ-साथ पाठक भी फ्राँस की यात्रा करने लगते हैं। पेरिस की गलियाँ, अर्क ऑफ त्रयम्‍फ, एफिल टॉवर, हर स्‍थान का सजीव चित्रण एक किशोर बालिका के नजरिए से किया गया है। घूमने-फिरने का मजा ले रही सारा से एक चूक हो जाती है।

घूमते-घूमते उसे चर्च के तल में बनी एक कब्रगाह दिखाई देती है और वह जिज्ञासावश वहाँ अकेली चली जाती है। इस गलति की सजा उसे मिलती है। उसी जगह से उसका अपहरण हो जाता है। तीन जिप्‍सी (फ्राँस के आदिवासी) अपहरण कर उसे ले जाते हैं। इसके बाद उपन्‍यास में एक रोचक मोड़ आ जाता है। सारा का अपहरण होने के बाद उपन्‍यास हाथ से छूटता ही नहीं है। हर वक्‍त यह जिज्ञासा बनी रहती है कि अब सारा का क्‍या होगा। प्रारंभ में किसी यात्रा वृतांत की तरह प्रतीत होने वाले उपन्‍यास में इस घटनाक्रम के बाद कई नाटकीय मोड़ आते हैं। अंतत: सारा अपने मामा के पास पहुँच जाती है ।

इस उपन्‍यास को पढ़कर फ्राँस की यात्रा करने जैसा आनंद मिलता है। केवल आनंद ही नहीं, बल्कि साथ में फ्राँस के बारे में अनेक महत्‍वपूर्ण जानकारियाँ भी प्राप्‍त होती है। उपन्‍यास के प्रारंभ से लेकर अंत तक बच्‍चे अपने दम पर विदेश यात्रा करने के ख्‍याल से रोमांचित और प्रेरित होते हैं।
बच्‍चों को यह जानकर खुशी होगी कि इस उपन्‍यास की लेखिका नवनीता देवसेन ने स्‍वयं भी मात्र बारह वर्ष की आयु में यूरोप की यात्रा की थी।

पुस्‍तक : समुद्र की संन्‍यासिनी
प्रकाशक : वत्‍सल प्रकाशनए बीकानेर
मूल्‍य : 24 रु.

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