सम्भाजी : बेदाग जीवन की कथा

पुस्तक समीक्षा

Webdunia
कुमार नरेन्द्र सिंह
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मराठी उपन्यासकार विश्वास पाटील का 'सम्भाज ी' उपन्यास यूँ तो ऐतिहासिक उपन्यासों की ही एक कड़ी है लेकिन इसे सिर्फ एक ऐतिहासिक उपन्यास कहना पर्याप्त नहीं लगता। लेखक ने हिंदवी राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी और उनकी मृत्यु के बाद की स्थितियों का ऐतिहासिक रूप से तो उल्लेख किया है, उसके साथ सामाजिक स्थितियों को भी बखूबी उकेरा है।

सेना में शामिल होने वाले जाति समूहों, उनकी संस्कृति एवं परंपराओं तथा उनकी विशेषताओं का भी गंभीर चित्रण किया है। सिर्फ यह एक पुस्तक पढ़कर ही कोई महाराष्ट्र के समाज का ज्ञान अर्जित कर सकता है। उस काल की सामाजिक प्रवृत्तियों, संरचना और प्रचलित विश्वासों एवं व्यवहारों का तो यह पुस्तक मानो एक दस्तावेज सा है।

परंतु इसके भी आगे लेखक ने वहाँ की भौगोलिक स्थितियों का जितना सजीव दृश्य प्रस्तुत किया है, वह अन्यत्र कम ही दिखाई देता है। पहाड़ों, जंगलों एवं पथरीली राहों पर लेखक अपने पाठकों को लेकर ऐसे चलता है, जैसे कोई घुमक्कड़ अँगुली पकड़कर उन्हें ले जा रहा हो। अभेद्य वनों से हमारा परिचय तो होता ही है, नाना प्रकार के वृक्षों, पहाड़ों, नदियों एवं पशु-पक्षियों से भी हमारा जीवंत साक्षात्कार होता है। जंगल में रहने वाली जनजातियों उनकी विशिष्ट दक्षताओं एवं अन्य प्रकार के उनके व्यवहारों का हृदयग्राही वृत्तांत उल्लेखनीय है।

राजघरानों की आपसी कटुता, घर में बैठे भेदियों एवं उछाल लेती महत्वाकांक्षाओं का ऐसा सजीव चित्रण विरले ही मिलता है। गद्दी के लिए कैसे कोई अपना देखते ही देखते पराया हो जाता है, कैसे सभी रिश्ते बेमानी हो जाते हैं और लालच में अंधा होकर साम्राज्य का निर्माण करने वाले ही कैसे उसकी नींव खोदने में जुट जाते हैं, इसका बड़ा ही यथार्थपरक अध्ययन किया गया है।

इस उपन्यास में शिवाजी के पुत्र सम्भाजी का संकल्पशील युद्धवीर व्यक्तित्व का वास्तविक चित्र उकेरने में विश्वास पाटील काफी हद तक सफल रहे हैं। सम्भाजी के चरित्र को बेदाग साबित करना ही इस पुस्तक का असली उद्देश्य प्रतीत होता है। वैसे यह बड़ा कठिन काम था क्योंकि नाटककारों, कथाकारों और कतिपय इतिहासकारों ने सम्भाजी को एक विकृत, लांछित, गुस्सैल और रसिक के रूप में ही प्रस्तुत किया है।

विश्वास पाटिल इन धारणाओं को अपने इस शोधपूर्ण ग्रंथ से ध्वस्त करने में बहुत हद तक सफल रहे हैं लेकिन यदा-कदा सम्भाजी के गुस्सैल और रसिक मिजाज होने की झलकी मिल ही जाती है। लेखक ने यह पुस्तक लिखने के लिए जितनी संदर्भ सामग्री का अवलोकन और अध्ययन किया है, वह चकित करने वाला है।

दुर्लभ सामग्री को जुटाकर और सम्भाजी के जीवन से जुड़ी जगहों का भ्रमण कर लेखक एक वास्तविक तस्वीर तैयार करने में कामयाब है। सम्भाजी के जुझारू व्यक्तित्व उनकी संग्राम शैली और उदारता को विश्वास पाटील ने जिस विश्वास से उकेरा है, वह उनकी कीर्ति में चार चाँद लगाने वाला है। उनकी पत्नी येशूबाई का चरित्र-चित्रण प्रेरणादायी बन पड़ा है।

बहरहाल, पुस्तक में ऐतिहासिकता के खयाल का अभाव खटकता है। निष्पक्ष रह पाने में लेखक सफल नहीं रह पाया है। पुस्तक पढ़ने पर साफ-साफ पता चल जाता है कि लेखक ने सम्भाजी को एक हिंदू छत्रपति सिद्ध करने की कोशिश की है। मुसलमान सैनिकों की वीरता को लेखक ने अनदेखा किया है। उनकी वीरता को लेखक ने धोखा करार देकर कम आँका है। बहरहाल यह निश्चित रूप से एक पठनीय पुस्तक है और पाठकों को पसंद आएगी।


पुस्तक : सम्भाजी
लेखक : विश्वास पाटील
प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ
मूल्य : 650 रुपए

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