हिन्दुस्तानी गलियों के चटखारे!

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खानपान के मामले में भारत जितनी विविधता और स्वाद शायद ही पूरे विश्व में कहीं मिले। तभी तो विदेशी भी हमारे व्यंजन चटखारे लेकर खाते हैं और विदेशों में भारतीय रेस्तराँ शान से चलाए जाते हैं। एक तरफ अगर बर्गर, नूडल्स, पित्ज़ा आदि जैसे विदेशी स्वादों का भारतीय जुबान ने स्वागत किया है तो हमने उन्हें भारतीय अंदाज में ढालकर विदेशियों को भी चकित किया है। उस पर भी ठेठ भारतीय "स्ट्रीट फूड" यानी गलियों में सजे मुँह में पानी लाते खोमचों का तो अंदाज ही निराला है। खैर... शायद ये भारतीय खान-पान का ही असर है कि एक विदेशी ने भारतीय गलियों के चटखारों पर पूरी किताब लिख डाली है।

तेल अवीव में जन्मे पुस्तक के लेखक, 'सैफी बर्गरसन' इसराइल में पले-बढ़े तथा एक फोटोग्रॉफर बनने की ललक लिए न्यूयॉर्क चले आए। फोटोग्रॉफी सीखने के बाद उन्होंने वापस इसराइल का रुख किया और तेल अवीव में खुद का स्टूडियो प्रारंभ कर डाला। सन 2002 में वे एक डॉक्यूमेंट्री फोटोग्रॉफर बनने की आस लिए भारत आए और फिर यहीं बस गए। वे नई दिल्ली में सपरिवार रहते हैं और डॉक्यूमेंट्रीज के काम से पूरे देश में भटकते रहते हैं।

इसी दौरान उन्होंने गलियों में बिकने वाले शानदार स्वादों को 'मुँह लगाया' । बस यहीं से मिली प्रेरणा इस पुस्तक की। ढेर सारे रंगीन चित्रों से सजी इस पुस्तक में भारतीय स्वाद जीवंत से हो उठते हैं। लेखक ने ठेठ गलियों के स्वाद के प्रति अपने प्रेम को पूरी शिद्दत के साथ कागज पर उतारा है। वे मुंबई के वड़ापाव से भी उतने ही चमत्कृत हैं, जितने नरीमन प्वॉइंट में मिलने वाले वेज सैंडविच, रायपुर के आलू चॉप, बनारस की कचोरी और मुंबई के ही नी ंबू पानी से।

अन्य बातों के साथ पुस्तक में करीब 46 विभिन्न व्यंजन विधियाँ भी हैं। अक्सर गलियों में, खोमचों और रेहड़ियों पर या फिर छोटे से किसी गुमनाम, लेकिन अच्छा खाना परोसने वाले रेस्तराँ में मिलने वाली चटखारेदार चीजें, बड़े रेस्तराँ तथा होटलों के नामों की चकाचौंध तथा शोर के पीछे दबी रह जाती हैं। ऐसे ही कुछ स्वादों को जीवित किया है सैफी ने।

आज भी आम आदमी की जुबान को यही छोटे रेस्तराँ तथा खोमचे राहत दे पाते हैं। आपको भारत की राजधानी से लेकर छोटे शहरों तक में ऐसे कई खाँटे स्वाद वाले 'ठिए' मिलेंगे, जिनकी चाट, पकौड़े, जलेबी, पोहे, बिरयानी, पानी-पताशे, कचोरी, समोसे, भेलपुरी, इडली-सांभर, वड़ा-पाव की होड़ फाइव स्टार होटल भी नहीं कर सकते।

इनमें से कई तो इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं। फिर चाहे वो पराठे वाली गली हो, पेठे वाला नुक्कड़, लस्सी वाला कोना या फिर चाट वाली गली। लोग बड़ी संख्या में यहाँ लाइन लगाए मिलेंगे। यही नहीं, फाइव स्टार और हाइजीन का ज्ञान बघारने वाले भी यहाँ अपनी स्वाद इंद्रियों को तृप्त करते नजर आ जाएँगे। यह पुस्तक भारत के उस स्वाद से परिचित करवाने का काम करती है, जिसे शायद चकाचौंध भरी तवज्जो न मिली हो, लेकिन उसके गुणग्राहक आज भी लाखों-करोड़ों हैं और यही उसके जिंदा होने का सबूत भी हैं ।

पुस्तक : स्ट्रीट फूड ऑफ इंडिया
लेखक : सैफी बर्गरसन
प्रकाशक : रोली बुक्स
मूल्य : 695 रुपए

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