हिन्दी दिवस पर लघुकथा : मातृभाषा या मात्र एक भाषा

ज्योति जैन
उस साहित्यिक आयोजन में सभागृह के बाहर की लॉबी में कुर्सी और मेज लिए आगंतुकों के नाम ,पते और हस्ताक्षर नोट करवाने के लिए एक व्यक्ति बैठा था। सभी के हाल में दाखिल होने से पहले वह सबसे इस बारे में आग्रह कर रहा था। अपेक्षा ने भी अपनी बारी आने पर अपनी जानकारी रजिस्टर में लिख दी। 
 
कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने पन्ने पर नजर डाली...सारे अंग्रेजी नामों के बीच अपेक्षा का नाम हिन्दी में चमक रहा था। 
फिर उसने नए जमाने की युवती अपेक्षा की ओर देखा...अनकहे सवाल को पढ़कर अपेक्षा ने इतना ही कहा- मुझे हिन्दी आती है..! 
 
अपना वाक्य पूरा करते हुए अपेक्षा गर्व के साथ हाल में दाखिल हो गई। 
 
मंच पर बड़े-बड़े अक्षरों में कार्यक्रम का विषय लिखा था अपनी मातृभाषा हिन्दी को कैसे बचाएं। उसका मन कह रहा था कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है या मात्र एक भाषा....!

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