• व्याकरण :
मनुष्य मौखिक एवं लिखित भाषा में अपने विचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है किन्तु इससे भाषा का कोई निश्चित एवं शुद्ध स्वरूप स्थिर नहीं हो सकता। भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं।
• परिभाषा
व्याकरण वह शास्त्र है जिसके द्वारा किसी भी भाषा के शब्दों और वाक्यों के शुद्ध स्वरूपों एवं शुद्ध प्रयोगों का विशद ज्ञान कराया जाता है।
• भाषा और व्याकरण का संबंध
कोई भी मनुष्य शुद्ध भाषा का पूर्ण ज्ञान व्याकरण के बिना प्राप्त नहीं कर सकता। अतः भाषा और व्याकरण का घनिष्ठ संबंध है ं । व्याकरण भाषा में उच्चारण, शब्द-प्रयोग, वाक्य-गठन तथा अर्थों के प्रयोग के रूप को निश्चित करता है।
• व्याकरण के विभाग- व्याकरण के चार अंग निर्धारित किए गए है ं-
1. वर्ण-विचार - इसमें वर्णों के आकार, भेद, उच्चारण, और उनके मिलाने की विधि बताई जाती है।
2. शब्द-विचार - इसमें शब्दो ं के भेद, रूप, व्युत्पति आदि का वर्णन किया जाता है।
3. पद-विचार - इ समें पद तथा उसके भेदों का वर्णन किया जाता है।
4. वाक्य-विचार - इसमें वाक्यों के भेद, वाक्य बनाने और अलग करने की विधि तथा विराम-चिह्नों का वर्णन किया जाता है।
• लिपि :
किसी भी भाषा के लिखने की विधि को ‘लिपि’ कहते हैं। हिन्दी और संस्कृत भाषा की लिपि का नाम देवनागरी है। अंग्रेजी भाषा की लिपि ‘रोमन’, उर्दू भाषा की लिपि फारसी, और पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी है।
देवनागरी लिपि की निम्न विशेषताएँ हैं-
( i) यह बाएँ से दाएँ लिखी जाती है।
( ii) प्रत्येक वर्ण की आकृति समान होती है। जैसे- क, य, अ, द आदि।
( iii) उच्चारण के अनुरूप लिखी जाती है अर्थात् जैसे बोली जाती है, वैसी लिखी जाती है।
• साहित्य :
ज्ञान-राशि का संचित कोश ही साहित्य है। साहित्य ही किसी भी देश, जाति और वर्ग को जीवंत रखने का- उसके अतीत रूपों को दर्शाने का एकमात्र साक्ष्य होता है। यह मानव की अनुभूति के विभिन्न पक्षों को स्पष्ट करता है और पाठकों एवं श्रोताओं के हृदय में एक अलौकिक अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति उत्पन्न करता है।