'बलराम हलवाई' से 'बुकर' तक

अरविन्द अडिगा बुकर से सम्मानित

स्मृति आदित्य
NDND
भारतीय लेखनी की इस सुनहरी दस्तक को सलाम। 'अरविंद अडिगा' , कल तक एक पत्रकार के रूप में पहचाना जाने वाला यह नाम आज भारतीय साहित्यप्रेमियों के लिए उम्मीद के विशाल द्वार खोल रहा है। अरविंद अडिगा वर्ष 2008 का बुकर पुरस्कार (साहित्य) पाने वाले भारतीय मूल के उपन्यासकार हैं।

बात सिर्फ इतनी ही होती तो शायद अरविंद की चर्चा मीडिया में इतनी नहीं होती। दरअसल इस एक उपलब्धि के पीछे और भी उपलब्‍धियों के सितारे झिलमिला रहे हैं।

पहली तो यह कि पुरस्कृत कृति 'द व्हाइट टाइगर' अरविंद का पहला उपन्यास है और पहली कृति पर पुरस्कार जीतने वाले वे तीसरे लेखक हैं।इसके पहले 2003 में डीबीसी पियरे को और भारतीय लेखिका अरुंधती रॉय को 1997 में यह उपलब्धि मिली थी।

दूसरी बात सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार जीतने वाले वे दूसरे लेखक हैं ।

1974 में चेन्नई में जन्मे अरविंद का बचपन मंगलौर में बीता। कनाडा हाईस्कूल और सेंट एलोसिस कॉलेज की शिक्षा के उपरांत परिवार के साथ अरविंद सिडनी(ऑस्ट्रेलिया आ गए। यहाँ उन्होंने जेआरए हाईस्कूल (जेम्स रूस एग्रीकल्चरल हाईस्कूल) में पढ़ाई जारी रखी। कोलंबिया यूनिवर्सिटी और ऑक्सफोर्ड से अँग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया।

अरविंद एक लेखक के रूप में किसी एक छवि में बँधना नहीं चाहते। उनके अनुसार- उपन्यास 'द व्हाइट टाइगर' का पहला ड्राफ्ट 2005 में तैयार हो गया था। बीच में इसे मैंने छोड़ दिया था। क्योंकि मैं पूरी तरह से खुद को समझ नहीं पा रहा था कि मैं किस दिशा में जा रहा हूँ। लंबे समय के बाद जब मैं भारत लौटा तो इस उपन्यास के कथानक ने मेरे भीतर फिर हलचल मचा दी।

  यकीनन 'बलराम' की पीड़ा इतनी सघनता से व्यक्त हुई होगी कि अरविंद आयरलैंड के सेबेस्टियन बैरी को पीछे छोड़कर यह बाजी जीत गए। बलराम से बुकर तक का यह सफर अरविंद के साथ-साथ भारतीय जनमानस के भी हर्ष का कारण है ...      
मैंने पहला ड्राफ्‍ट खोला और पूरा उपन्यास फिर लिखने में जुट गया। अथक मेहनत के बाद जनवरी 2007 में मैंने पाया कि मेरे हाथ में मेरा पहला उपन्यास है।

दरअसल ,बलराम हलवाई कोई एक शख्स नहीं है। यह उन सारे आम आदमी का प्रति‍निधि है जिनसे मैं भारत की यात्रा के दौरान मिला था। भारत आने पर मैंने अपना बहुत सारा समय रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और झुग्गी बस्तियों की ज़िंदगी को समझने में गुजारा।

  पुरस्कृत कृति 'द व्हाइट टाइगर' अरविंद का पहला उपन्यास है और पहली कृति पर पुरस्कार जीतने वाले वे तीसरे लेखक हैं।इसके पहले 2003 में डीबीसी पियरे को और भारतीय लेखिका अरुंधती रॉय को 1997 में यह उपलब्धि मिली थी ....      
भारत में सामान्य जीवन के नीचे बहुत सारी आवाजें दमित हैं लेकिन किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया। बलराम एक ऐसा चरित्र है जिसे आप तब ही समझ पाएँगे जब अपने घरों की दीवारों और नालियों को सुनने की आपकी क्षमता बढ़ेगी।

वास्तव में यह एक ऐसा उपन्यास है जिसका केंद्रीय पात्र बलराम आगे बढ़ने के लिए किसी भी रास्ते को गलत नहीं मानता। पिता की मौत के बाद वह अपनी और गाँव की गरीबी से मुक्ति पाने के लिए बेचैन हो उठता है। यही बेचैनी उसे दिल्ली, बैंगलुरू की यात्रा पर ले जाती है। जहाँ वह शीर्ष तक पहुँचने के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है।

अरविंद अडिगा का यह उपन्यास अटलांटिक प्रकाशन से आया है। 22 अप्रैल 2008 को प्रकाशित इस उपन्यास के 288 पेज हैं। बलराम हलवाई के माध्यम से भारत के आम आदमी की आवाज को वैश्विक मंच प्रदान करने के लिए अरविंद बधाई के हकदार हैं।

यकीनन 'बलराम' की पीड़ा इतनी सघनता से व्यक्त हुई होगी कि अरविंद आयरलैंड के सेबेस्टियन बैरी को पीछे छोड़कर यह बाजी जीत गए। बलराम से बुकर तक का यह सफर अरविंद के साथ-साथ भारतीय जनमानस के भी हर्ष का कारण है।
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