1934 में उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में जन्मे केदारनाथ सिंह अपनी कविताओं में जनपदीय उपस्थिति के लिए जाने जाते हैं। श्री सिंह कविता में आधुनिकता के साथ-साथ गीतात्मकता, प्रकृति तथा मनुष्य के बहुआयामी संबंधों को बड़ी सहजता के साथ प्रस्तुत करने के लिए चर्चित हैं। केदारनाथ सिंह की कविता ने न केवल हिन्दी अपितु भारतीय भाषा के कविता के बिंब-विधान, मुहावरे और भाषा को गहरे तक प्रभावित किया।
श्री सिंह उन कवियों में समादृत हैं जिन्होंने हिन्दी कविता को सादगी से विन्यस्त करते हुए आन्तरिक लय को नई दीप्ति प्रदान की। केदार जी ने अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के एक सशक्त कवि के रुप में ख्याति प्राप्त की थी।
श्री सिंह के प्रकाशित कविता-संग्रह हैं- 'अभी बिल्कुल अभी', 'जमीन पक रही है', 'यहां से देखो', 'बाघ', 'अकाल में सारस', 'उत्तरकबीर और अन्य कविताएं', 'तालस्ताय और साइकिल' और हाल ही में प्रकाशित 'सृष्टि पर पहरा' आदि। अन्य प्रमुख किताबें हैं- 'मेरे समय के शब्द', 'कल्पना और छायावाद', 'हिन्दी कविता में बिम्ब विधान', 'कब्रिस्तान में पंचायत' और 'ताना बाना'।
श्री सिंह साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989) के साथ-साथ मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, कुमार आशान पुरस्कार (केरल), दिनकर पुरस्कार, जीवनभारती सम्मान (ओडि़सा) और व्यास सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित हैं।