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हिंदीनेस्ट कथा-कहन कार्यशाला : प्रकृति के बीच कहानी पर केन्द्रित एक सुंदर समग्र आयोजन

साहित्य, कला और संस्कृति की नई डगर : हिंदीनेस्ट कथा-कहन कार्यशाला

हमें फॉलो करें हिंदीनेस्ट कथा-कहन कार्यशाला  : प्रकृति के बीच कहानी पर केन्द्रित एक सुंदर समग्र आयोजन
कहानी, भाषा  और शैली....इन तीन शब्दों के आसपास गुंथा गया एक अलहदा सा आयोजन आज साहित्य की दुनिया में चर्चा का विषय बना है। कारण सिर्फ इतना कि सुंदरता, सहजता और सार्थकता के शुभ उद्देश्य के साथ जानीमानी कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने एक ऐसी आकर्षक परिपाटी का आरंभ किया है जिसकी जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। कहानी के भाव पक्ष, कला पक्ष, शिल्प और कथ्य को लेकर पुराने और नए कथाकारों के बीच जो रेखा बन रही थी। इस अनूठे आयोजन के माध्यम से वह रेखा धुंधली हुई और दोनों पक्षों ने एकदूजे का हाथ थामा...और कहानी कैसे लिखी जाए से लेकर आज उसकी बदलती प्रस्तुति के माध्यम तक विविध सत्रों और विषयों के साथ इसे इस तरह संजोया गया कि यह वर्कशॉप हमेशा के लिए प्रतिभागियों के स्मृति पटल पर दर्ज हो गई। 
अपने दूसरे ही वर्ष हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला ने साहित्य का यह अनूठा मुकाम हासिल किया। 
साहित्य की सुपरिचित हस्ताक्षर वरिष्ठ कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला साहित्य,संस्कृति और कला के गढ़ जयपुर में आयोजित की गई। 
 
साहित्य की विभिन्न विधाओं पर बेबाकी से अपनी राय रखने वाले देश भर के दिग्गज साहित्यकार बतौर स्पीकर्स कथा कहन कार्यशाला में शामिल हुए। साहित्य के सामाजिक सरोकारों से जुड़ी लोकप्रिय कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ इन दिनों अपने दो उपन्यासों को लेकर चर्चित हैं। उनके उपन्यास मल्लिका पर फिल्म बन रही है और दूसरा ताजातरीन उपन्यास सोफिया प्रेम और धर्म की जदोजहद को लेकर है। इससे पहले उनके उपन्यास स्वप्नपाश को केके बिड़ला फाउन्डेशन के बिहारी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। पंच कन्या से लेकर होना अतिथि कैलाश का तक उनकी हर कृति ने अपने अनूठेपन के कारण पाठकों का भरपूर प्यार पाया है। 
 
15-16-17 अप्रैल 2022 को तीन दिवसीय हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला न सिर्फ अपने कंटेट को लेकर खास थी बल्कि हरीभरी प्रकृति के बीच बसे कानोता कैम्प रिसॉर्ट की सुरम्य छांव में आयोजित होने के कारण भी विशिष्ट हो गई। 15 सत्र,25 स्पीकर्स,35 प्रतिभागियों की भागीदारी के साथ यह कार्यशाला सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। कार्यशाला का भव्य उद्घाटन राजस्थान के विख्यात साहित्यकारों की उपस्थिति में श्री नन्द भारद्वाज ने किया। 
 
देश भर से विख्यात साहित्यकारों ने इसमें शिरकत की। जानीमानी कथाकार मृदुला गर्ग से लेकर राकेश तिवारी,डॉ.सत्यनारायण,जया जादवानी,नवीन चौधरी,देवेंद्रराज अंकुर,डॉ विनय कुमार,अनुसिंह चौधरी,अजन्ता देव तक 25 स्पीकर थे।
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'कठगुलाब', 'उसके हिस्से की धुप', 'चितकोबरा' जैसे उपन्यासों और समाज और समाज के माध्यम से व्यक्ति को परखती अपनी कहानियों से खासी चर्चित रहीं वरिष्ठ कथाकार उपन्यासकार मृदुला गर्ग बतौर स्पीकर शामिल हुईं। 
 
प्रथम सत्र 'कथ्य' में आंतरिक तार्किकता विषय पर बोलते हुए उपन्यासकार मृदुला गर्ग ने कहा- ऐसी कोई चीज नहीं है जो लिखी न जा चुकी हो,एक ही वाकये को हर व्यक्ति अपनी नज़र और नजरिये से देखता है। मैं समझती हूं कि पाठक और आलोचक में कोई फर्क नहीं होता। सिवा इसके कि आलोचक स्वयं को ज्ञानी मानता है और पाठक ज्ञान की तलाश में होता है। हर रचनाकार क़े अंदर एक पाठक आलोचक सम्पादक होता है। सबसे पहले आप रचनाकार होते हैं, ज़ब रचना को दुबारा पढ़ते हैं तब पाठक, तीसरी बार आलोचक की भूमिका में होते हैं और उसके बाद सम्पादक का दायित्व भी आपको ही निर्वहन करना होता है।  
 
ज़ब ये पूछा जाता है कि आप किस विषय पर लिखते हैं तो मेरा मानना ये है कि हम विषय पर नहीं विचार पर लिखते हैं। विचार पर लिखना शुरू करते हुए वह विषय में ढल जाता है। 
 
अगले सत्र में कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ से संवाद करते हुए लेखक राकेश तिवारी ने अपने अनुभव साझा किए। चर्चित दिलचस्प यात्रा वृत्तांतों के जरिए अपनी पहचान बना लेने वाले लेखक राकेश तिवारी ने कहा कि ''साइकिल पर काठमांडू का चक्कर लगाया और किताब लिखी पहियों क़े इर्द-गिर्द। पिताजी ने कहा ज़ब तक घूमक्कड़ शास्त्र नहीं पढ़ी तो क्या पढ़ा,एक बार घूमने का चस्का लगा तो लम्बी यात्रा क़े मंसूबे बंधने लगे। दिल्ली से कलकत्ता नाव चलाने की योजना बनाई। चलने क़े लिए निकले तो नाव चलाने जितना पानी ही नहीं मिला यमुना में। मीठी व्यंजना, लोकभाषा के रोचक प्रयोग और स्वयं को 'भू-सुंधवा' कहने वाले पुरावेत्ता और 'सफर एक डोंगी में डगमग', 'पहियों के इर्दगिर्द', पहलू में आए ओर छोर' के रचनाकार राकेश तिवारी ने अपने दिलचस्प अंदाज से सत्र को जीवंत बना दिया। 
 
'यायावर की डायरी' के चर्चित लेखक डॉ. सत्यनारायण ने माधव राठौड़ और रेडियो के वरिष्ठ आरजे युनुस खान के साथ रोचक सारगर्भित चर्चा करते हुए कथेतर गद्य और लोक से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। सत्र स्टोरी कोच अनवरत संवाद में मनीषा कुलश्रेष्ठ, कुश वैष्णव और उषा दशोरा ने अपने संवादों क़े जरिए कहानी क़े आरम्भ, द्वंद्व, शिल्प, अंत आदि पर चर्चा की। 
 
कुश वैष्णव ने बताया कि कहानी का शीर्षक इतना रोचक हो कि पढ़ने की जिज्ञासा जगाए और पहली लाइन ऐसी हो कि पाठक रुक न सके, बहता चला जाए। कहानी क़े पहले या दूसरे पैराग्राफ में कहानी किसलिए और किस बारे में कही जा रही है, आ जाना चाहिए। आयोजन की परिकल्पनाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने बताया कि कहानी में द्वंद्व कितना महत्वपूर्ण है। अगर द्वंद्व सही समय पर आ जाता है तो कहानी की रोचकता बनी रहती है। 
 
अंत क़े बारे में बात करते हुए उषा दशोरा ने बताया कि अंत सिर्फ वही नहीं होना चाहिए जो कहानी पढ़ते समय पाठक क़े दिमाग में आया हो। अंत कालीमिर्च क़े उस आफ्टर टेस्ट की तरह है जो कहानी खत्म होने पर भी पाठक की जुबान पर बना रहे। 
 
सत्र 'लेखन से प्रकाशन तक' में हिंदी युग्म के शैलेश भारतवासी ने कहा कि अगर आप लेखक हैं तो आपको यूनिकोड टाइपिंग आनी ही चाहिए। लेखक को अपने अधिकारों क़े प्रति जागरूक रहना बहुत जरूरी है। बिंज के सम्पादक अनुराग वत्स ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि बिंज वो धारावाहिक उपन्यास है जैसे पहले धर्मयुग में आया करते थे। उन्होंने बताया कि हर एपिसोड का अंत ऐसा हो कि आगे पढ़ने की ललक बनी रहे। डिजिटल माध्यम पर लेखन किस तरह क्रंची और क्रिस्पी हो इस पर भी उन्होंने प्रकाश डाला।  
 
सामयिक प्रकाशन के महेश भारद्वाज़ ने कहा कि ऑडियो क़े बावजूद प्रिंट में छपने का आकर्षण लेखक में है,जिसका एक बड़ा कारण है कि अवार्ड्स और सम्मान इसी माध्यम में संभव है। साहित्य की सुपरिचित हस्ताक्षर वरिष्ठ कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा आयोजित हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला कानोता केम्प रिसोर्ट जयपुर में तीन दिवस प्रतिभागियों के लिए अविस्मरणीय रहे। 
 
युवाओं को सीखने, अपने भीतर की रचनात्मकता को धारदार बनाने, भाषा संस्कार के साथ संवाद का माध्यम बनी इस कार्यशाला में 15 सत्र हुए जिनमें 25 स्पीकर्स और 35 प्रतिभागियों की बढ़-चढ़कर भागीदारी रही।
 हिंदी कहानी और रंगमंच, ऑडियो कहानी,रचना प्रक्रिया और मनोजगत,पटकथा लेखन,कथेतर की कथा, सूफियाना सबक और रचनाशीलता को जानने का फन, सार्थक चर्चाओं से प्रतिभागियों को सीखने का सुअवसर मिला। प्रतिभागियों के लिए बहुत-सी लेखन आधारित रोचक गतिविधियां भी शामिल की गई। 
 
वरिष्ठ कवि-कथाकार अजन्ता देव ने कहा-भाषा कहानी गढ़ने का वो औजार है जिससे कहानी तराशी जाती है।
 वरिष्ठ चित्रकार,लेखक अखिलेश ने कहा-आत्मकथा की भाषा वैसी हो जैसा आपका जीवन हो, जो आपका माध्यम हो उसे भी याद रखा जाना चाहिए। कहानी की बड़े पर्दे तक यात्रा सत्र में प्रसिद्ध लेखक चरण सिंह पथिक ने दो बहनें पर बनी फिल्म पटाखा के बारे में बताया कि यह गांव की पृष्ठभूमि पर बुनी कथा है। विषय ऑफ द रिकॉर्ड का संचालन प्रसिद्ध कथाकार उमा ने किया। वरिष्ठ कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ, जया जादवानी, लक्ष्मी शर्मा, तसनीम की बोल्ड स्त्री लेखन पर सार्थक बातचीत हुई। 
 
हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला की मुख्य आयोजक विख्यात वरिष्ठ कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने इसके मूल विचार को साझा करते हुए बताया कि कथा-साहित्य के इस संक्रमण काल में चुनौतियों पर, उसके तत्वों, ग्लोबल ट्रेंड्स, लोक के आलोक,साहित्यिक कहानी की विविध माध्यमों में उपस्थिति पर नए सिरे से संवाद हुआ। सेमिनार के आलेखात्मक वक्तव्यों से कुछ अलग..नए मायनों के साथ विश्लेषणात्मक तथ्यों के साथ कथा लेखन के नए-पुराने पक्ष सामने आए।
 
 लेखक नवीन चौधरी,जिनका छात्र राजनीति पर आधारित पहला उपन्यास 'जनता स्टोर' दैनिक जागरण नेल्सन की टॉप 10 हिंदी बेस्टसेलर लिस्ट में रहा, उम्दा सत्र 'कथा से पटकथा तक' में लेखक कुश वैष्णव से रूबरू हुए। 
 
स्त्री विमर्श के महत्वपूर्ण पक्ष और विस्मृत हो चुके आयामों को बेबाकी से अपने उपन्यासों और कहानियों में रेखांकित करती साहित्यकार जया जादवानी ने कहानी लिखने के विचार के अनेक पहलू समझते हुए प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया।
 
 जाने माने वरिष्ठ नाट्य निर्देशक और प्रशिक्षक देवेंद्र राज अंकुर ने सत्र 'हिंदी कहानी का रंगमंच' में मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी मास्टरनी का रंगमंचीय रूपांतरण कर समां बांध दिया।
 
 रिश्तों और जीवन की समकालीन जद्दोजहद को समझाती अनूठी किताब 'मम्मा की डायरी' और 'नीला स्कार्फ' की लेखिका, अनुवादक और फिल्ममेकर अनु सिंह चौधरी सत्र 'कथा से पटकथा तक' में प्रतिभागियों से रूबरू हुईं।
 
रोक सकता है हमें जिंदान-ए-बला क्या मज़रूह / हम तो आवाज हैं दीवारों से छन जाते हैं

मज़रूह क़े शेर को जीते विविध भारती क़े उद्घोषक यूनुस खान और रेडियो सखी ममता सिंह ने सत्र 'कहानियों का ऑडियो और ऑडियो की कहानी' में बताया कि शब्दों को बरतना और कहानी के भावों के अनुसार आवाज़ का उतार चढ़ाव कितना जरूरी है। पॉडकास्ट की दुनिया पर भी बात हुई।
 
 सफलता के आयाम रचते हुए तीन दिवसीय हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला कला की रचना प्रक्रिया के साथ तकनीक को आत्मसात करते हुए नवागत और दिग्गज साहित्यकारों के सानिध्य में संपन्न हुई। विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में सहजतापूर्वक कथा-कहन कार्यशाला के सभी महत्वपूर्ण सत्र हुए। 
 
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए ग्रुप कैप्टन एके कुलश्रेष्ठ, संयोजक हिंदीनेस्ट.कॉम ने बताया कि नए कलेवर के साथ यह अगले वर्ष फरवरी में आयोजित होगी। लोकप्रिय कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपने प्रदेश राजस्थान के प्रति अपनी स्नेहिल भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा-राजस्थान केंद्र रहा है मेरी कथा यात्रा में। मैं जब दूर थी तो बेहद नॉस्टैल्जिक रहती थी, तब बहुत आया राजस्थान मेरी कहानियों - उपन्यासों में। बेहद याद आते थे किले, बावड़ियां, कठपुतलियां, लोककलाकार....गवरी का खेल। मुझे पता था यहीं लौटना है, कहन की गंभीर परंपरा वाले अपने राज्य में। जर्मनी प्रवास में मन में उपजी थी 'स्टोरी राइटिंग वर्कशॉप'... और दिल से चाही गई बात आखिरकार पूरी हुई। वर्कशॉप की परिकल्पना यहां जयपुर में आकर 'कथाकहन' के रूप में साकार हुई। 
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