पटना पुस्तक मेले में ‘कविता-कुंभ’

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कविता के महाकुंभ वाणी प्रकाशन में कविताएं हमेशा आम आदमी की आवाज के साथ खड़ी होती हैं। हम जिस मुश्किल समय में हैं, कविताएं ही हमें अंधेरों से निकाल कर उजालों की ओर ले जाती हैं। वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने इन शब्दों से इस काव्य महाकुंभ का आगाज किया। मंच पर सुसज्जित वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा, निवेदिता झा, उपेंद्र कुमार सरचिज और मदन कश्यप ने अपनी रचनाओं को पढ़ने से पहले युवाओं को अपनी रचनाएं सुनाने का आग्रह किया।

देश के भविष्य की ज्योति माने जाने वाले युवाओं में सबसे पहले पटना की युवा कवयित्री आस्था ने अपनी रचनाएं 'नीली रोशनाई' और 'वे जो अब नहीं हैं' सुनाई। शशांक समेत 5 युवा कवियों ने अपने दिल से निकली आवाजों को श्रोताओं के सामने रखा और खूब वाह वाही लूटी।

युवाओं के कविता पाठ के बाद वरिष्ठ कवियों ने अपनी कविताओं से मुखातिब कराया। निवेदिता झा ने अपनी नई प्रेम कविता को युवाओं को समर्पित किया। "प्रेम आहिस्ते उतरो, जैसे उतरती हैं नदियां, जैसे धीमे-धीमे बहती है हवा"। बिहार के गौरव आलोक धन्वा ने अपनी प्रसिद्द कविताओं में से 4 कविताएं पढ़ी, उपेंद्र कुमार ने 5 कविताएं और मदन कश्यप ने 4 कविताएं पढ़ी। इस मौके पर वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक ने धर्मवीर भारती की 'मुनादी' कविता के अंश पढ़े, और लीलाधर मंडलोई के कविता संग्रह 'भीजै दास कबीर' से खूब रचना पाठ किया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कविताएं किसी भी संस्कृति को अपना स्वर सेती है, तहजीब संजोती है और जीवन की राह दिखाती है। पटना ऐसा पाठकों का गढ़ है जहां आज भी कविता को प्राथमिकता दी जाती है। सभी कहते हैं कि कविता के पाठक नहीं हैं, लेकिन वाणी प्रकाशन में कविताओं का हमेशा स्वागत है।

कार्यक्रम के समापन में वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल ने कहा कि किताबें हम सभी को जोड़ती हैं। अदिति ने पटना पुस्तक मेले का आभार व्यक्त किया कि उन्होंने 2 दशक से भी ज़्यादा समय से बिहार के पाठकों को उनके लेखकों से जोड़ा।

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