लेखिका नयनतारा सहगल ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया

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ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी साहित्यकार ने विरोध स्वरूप अपना सम्मान वापिस लौटाया हो। बड़ी लंबी सूची है। नयनतारा सहगल ताजा नाम है इस सूची का। उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है।

लोकप्रिय लेखिका नयनतारा सहगल ने इसकी वजह स्पष्ट की है कि सत्तासीन नरेंद्र मोदी सरकार देश की सांस्कृतिक विविधता कायम नहीं रख पा रही है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि दिल्ली के पास स्थित दादरी में अखलाक नाम के एक शख्स की जिस तरह से मात्र अफवाह पर हत्या कर दी गई वह दुखी कर देने वाला है, और इसके अलावा लेखक एमएम कलबुर्गी, समाजसेवी नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पनसारे की हत्याओं को लेकर भी वे व्यथित हैं। इसलिए वे अपना सम्मान लौटा रही हैं।  
 
नयनतारा सहगल देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की भांजी हैं। 88 वर्षीया नयनतारा को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार वर्ष 1986 में उनके अंग्रेज़ी उपन्यास 'रिच लाइक अस' के लिए दिया गया था। सहगल अपने विचारों को बेखौफ और बेबाक रूप से रखती आई हैं। उनकी बेलाग राजनीतिक टिप्पणियां उन्हें एक खास स्थान दिलाती हैं। उन्होंने वर्ष 1975-77 के दौरान इंदिरा गांधी के सौजन्य से लगी इमरजेंसी के खिलाफ भी कठोर रुख अपनाया था।
 
नयनतारा सहगल ने अपने जारी बयान का शीर्षक 'अनमेकिंग ऑफ इंडिया' रखा है। सहगल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से घोर नाराज हैं। उन्होंने मीडिया से चर्चा के दौरान पीएम की खामोशी पर भी तीखे प्रहार किए। उनके अनुसार मोदी जी ने इनमें से किसी भी घटना की निंदा करने के लिए एक भी शब्द नहीं बोला जबकि पूरा देश चाह रहा है कि प्रधानमंत्री बयान दें। 
 
प्रधानमंत्री इस पर चुप क्यों हैं। इससे तो यही लगता है कि वह बुरे काम करने वाले ऐसे लोगों को नियंत्रण में नहीं रख सकते जो उनकी विचारधारा का समर्थन भी करते हैं। 
 
इस सारे मामले में दुख की बात यह है कि साहित्य अकादमी ने भी चुप्पी साधी हुई है। 
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