रेडियो और मेरा मीडिया सफर

WD
रेडियो का मेरे जीवन में बहुत ही महत्व है। संभवतः इसलिए हर बार रेडियो डे पर बरबस ही मेरे जहन में बहुत-सी पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं।  वह दिन भी याद है जब IIMC (भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली) से 2005-06 में पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद अपने दूसरे साथियों की तरह मैं भी नर्वस थी,  क्योंकि दिल्ली जैसी जगह पर अच्छे अखबारों में जगह पाना पहले भी टेढ़ी खीर थी। नौकरी की सख्त दरकार थी, क्योंकि माता-पिता ने अपनी जमा पूंजी मेरी पढ़ाई में लगा थी और अब मुझ पर मेरे भाई-बहन की पढ़ाई की नैतिक जवाबदारी थी। 

 
तभी एक दिन मेरी मुलाकात सोनिका बक्शी से हुई, जो मुझे ई 24 न्यूज चैनल के निजी संस्थान आईसोम्स में लेकर आईं। राजीव शुक्ला का चैनल ई 24 दस शहरों में रेडियो धमाल के नाम से एफएम रेडियो भी लांच करने वाला था। उसके लिए मुझे ISOMES में आरजेईंग की ट्रेनिंग दी गई। इस तरह रेडियो धमाल से मेरे मीडिया सफर की शुरुआत हुई। विभिन्न एफएम रेडियो में काम करते हुए हरियाणा हिसार, जबलपुर, इंदौर, रायपुर, भोपाल जैसे शहरों में काम करने का मौका मिला। रेडियो धमाल जबलपुर की लव की डॉक्टर, माय एफएम भोपाल की भावना, माय एफएम इंदौर के "लव दिल से" की आरजे फि‍जा, रेडियो रंगीला रायपुर की जीनत बी मेरे कुछ ऐसे किरदार हैं जो हमेशा ही मेरे दिल के करीब रहे। चलिए अब अपनी बात तो बहुत हुई अब बात उस रेडियो की जिसके बहाने इस रेडियो के सफर का जि‍क्र हुआ। 
 
दरअसल रेडियो का इतिहास वायरलेस टेक्नोलॉजी का भी इतिहास है। यहीं से वायरलेस तकनीकी के विकास की भी शुरुआत होती है। रेडियो के विकास में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल, एडवर्ड ह्यूगहेस, हर्ट्ज़, निकोला टेस्ला व मारकोनी आदि का बहुत बड़ा योगदान है। द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रोपेगंडा में रेडियो का जमकर इस्तेमाल किया गया। 
 
रेडियो का पहला सफल प्रसारण 1920 में अमेरिका में हुआ और भारत में पहला रेडियो प्रसारण 1923 में रेडियो क्लब ऑफ बॉम्बे से हुआ। 1927 में कई रेडियो क्लब्स ने मिलकर इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी बनाई जिसको लगातार घाटे में जाने की वजह से 1930 में सरकार ने अधिग्रहित कर इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस नाम दिया। आगे चलकर इसका नाम ऑल इंडिया रेडियो पड़ा और 1956 में इसे आकाशवाणी नाम दिया गया। 
 
आकाशवाणी की पहुंच देश की 99 प्रतिशत आबादी तक है और यह विश्व का सबसे बड़ा रेडियो नेटवर्क है। 146 बोलियों सहित 23 भाषाओं में आकाशवाणी के  विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। वर्तमान में आकाशवाणी के 419  टेलीविजन भारत में छा गया। प्राइवेट एफएम रेडियो को हम रेडियो का पुनर्जागरण काल कह सकते हैं, क्योंकि एक बार फिर लोग तेजी से रेडियो से जुड़ने लगे।
 
इतने बड़े रेडियो नेटवर्क के होने के बावजूद भी आकाशवाणी को आज प्राइवेट एफएम से कड़ी चुनौती मिल रही है। आज का युवा आकाशवाणी के बजाए प्राइवेट एफएम सुनना पसंद करता है। मैट्रो सिटीज से शुरू होने वाले प्राइवेट एफएम चैनल्स धीरे-धीरे छोटे शहरों में भी अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। 
एफएम की लोकप्रियता का मुख्य कारण एफएम के आरजे और उसकी रेडियो प्रोग्रामिंग है जो हर उम्र और हर वर्ग के लोगों को चुम्बक की तरह अपनी ओर खींचती है। प्राइवेट एफएम के आरजे आज अपने-अपने शहरों के सेलिब्रिटी बन चुके हैं। यही वजह है कि आज देश के तमाम युवा आरजे बनने का सपना पालते हैं। 
 
आर.जे. भावना 
सम्प्रति - प्रोफेसर मास कम्युनिकेशन, प्रेस्टीज इंस्टीट्यूट, इंदौर 
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