प्रथमेश व्यास
मान लीजिए की एक मुसाफिर मीलों का सफर तय करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़े जा रहा है। उसे उतना ही सफर और तय करना है लेकिन, वो कुछ पल ठहरकर आराम करना चाहता है। उसे एक पेड़ नजर आता है, जिसकी छांव तले बैठकर वो कुछ पलों के लिए अपनी सारी थकान भूल जाता है। पेड़ की घनी छांव उसके मन को सुकून तो पहुंचाती ही है, साथ ही साथ उसे आगे बढ़ने के लिए नई ऊर्जा भी प्रदान करती है।
एक व्यक्ति की जीवन रुपी राह में संगीत पेड़ की इसी घनी छांव की तरह है। जो कठिन से कठिन परिस्थियों में भी उसके जीवन में नई ऊर्जा, नई उमंग और नई मुस्कराहट भर देता है। दूसरे शब्दों में संगीत को 'मूड चेंजर' कहा जा सकता है। अगर हमारे हिंदी संगीत की बात की जाए, तो हमने हर मूड के लिए गाने बनाए हैं, जिन्हे सुनते ही हम कुछ पलों के लिए एक अलग दुनिया में चले जाते हैं। गानों के शब्द सुनकर हमे हमारी जिंदगी का कोई पुराना पन्ना याद आ जाता है या गाने का संगीत हमे थिरकने पर मजबूर कर देता है।
कभी-कभी तो हमे कोई गाना इतना पसंद आ जाता है कि हम दिनभर बेवजह उसे गुनगुनाया करते हैं। ये इसलिए होता है कि संगीत हमारी सृष्टि का एक अभिन्न अंग है। वैज्ञानिक दृष्टि से गौर किया जाए तो संगीत से 'डोपामिन' रिलीज होता है, जिससे हमारे स्वभाव में कई सकारात्मक बदलाव आते हैं।
दुनियाभर के संगीतज्ञों ने संगीत की कई परिभाषाएं दी है, लेकिन संगीत ऐसी चीज ही नहीं है जिसे परिभाषाओं में बांध कर देखा जा सके। विवध भारती से लेकर स्पॉटीफाय तक के सफर में संगीत ने कई बदलाव देखे हैं। लेकिन, आज भी तीन मिनट का गाना हमारा मूड बदलने के लिए काफी होता है। इतना ही नहीं, अब तो किसी व्यक्ति के पसंदीदा गानों की लिस्ट को देखकर ये बताया जा सकता है कि उसका स्वभाव कैसा होगा।
दो पल को इस दुनिया से संगीत को हटा दिया जाए, तो सब कुछ कितना नीरस सा प्रतीत होगा। मंदिर की घंटियां, पक्षियों की गुंजन, पत्तों की सरसाहट, बादलों का गड़गड़ाना, नदियों का कलरव, बच्चों की किलकारियां, ये सब क्या है - संगीत ही तो है।