‘महाभोज’ की लेखिका मन्नू भंडारी को सोशल मीडि‍या ने दी श्रद्धाजंलि, लेखक-कवियों ने साझा की स्‍मृति

नवीन रांगियाल
'महाभोज' और 'आपका बंटी' जैसी कालजयी रचनाओं की लेखिका मन्नू भंडारी गत सोमवार को निधन हो गया। वे 90 साल की थीं और अपनी लेखन के लिए चर्च‍ित थीं। उनके निधन की खबर आते ही साहित्‍य जगत में शौक पसर गया। फेसबुक से लेकर ट्विटर तक लोगों ने उन्‍हें याद किया।

वे नयी कहानी आंदोलन की पुरोधाओं में थीं, जिनकी रचनायें कई दशकों से हमें अपने समय को समझने और संवारने में मदद करेगी।

मन्‍नू भंडारी को फेसबुक पर लगातार याद किया जा रहा है। कई लेखक, कवि और तमाम साहित्‍यकारों समेत पुस्तकों के प्रकाशन भी उन्‍हें याद कर रहे हैं। उन्‍हें श्रद्धाजंलि देने का तांता दूसरे दिन भी जारी रहा।

वरिष्‍ठ लेखि‍का, निर्मला भुराि‍‍या ने मन्‍नू भंडारी को कुछ इस तरह याद किया। उन्‍होंने लिखा,
आदरणीय मन्नू भंडारी जी का अवसान एक युग का अवसान है। यादों का एक सिलसिला सा है जो उन्हें कभी भूलने नहीं देगा। मन्नूजी से साक्षात परिचय तो पहली बार राजेंद्र यादव जी ने करवाया था, दिल्ली में नेशनल बुक ट्रस्ट की एक मीटिंग में। मैं स्वप्नचलित सी उन्हें देखती रह गई, इतनी सादा और इतनी प्यारी, यह वही हैं, जिन्होंने बचपन में आपका बंटी से मेरे दिलों-दिमाग पर कब्जा कर लिया था। सिंगल मां और उसके बच्चे की कहानी भावनात्मक रूप से मेरे बेहद बेहद करीब थी। धर्मयुग में धारावाहिक प्रकाशित हो रही आपका बंटी की हर किश्त का बेसब्री से इंतजार रहता था। और उस दिन उन्हें सामने पाकर मैं नतमस्तक थी। फिर बाद में तो उनसे कई बार मुलाकात हुई। दिल्ली में भी इंदौर में भी। हर बार उन्हें बेहद सहज एवं सरल पाया। मगर वे बेहद स्पष्टवादी भी थीं, मुंह पर कह देती थीं तुम्हारी फलां पत्रिका में छपी फलां कहानी मुझे इतनी अच्छी नहीं लगी। यही स्पष्टवादिता थी कि जब कभी वह तारीफ कर देती थीं तो उसका काफी महत्व होता था। मन्नू जी पर बन रही एक डॉक्यूमेंट्री में मैंने एंकरिंग की थी। मुझे अफसोस है कि उसके क्लिप्स अब उपलब्ध नहीं है। आदरणीय मन्नू जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

जानी मानी लेखि‍का मनीषा कुलश्रेष्‍ठ  ने अपनी प्र‍िय लेखि‍का मन्‍नू भंडारी को श्रद्धाजंलि देते हुए लिखा,
‘आज मन्नू जी की हर बात याद आ रही है, उनका मेरे प्रति मूक स्नेह, साहित्य सभाओं में उनकी सतत लौ जैसी गरिमामय उपस्थिति, साहित्याकाश पर छाया उनका और राजेंद्र यादव जी का दांपत्य, उनकी साड़ियां, उनके शॉल, उनकी सफेद-काली चोटी, उनके गुंथे जूड़े... उनका चश्मा और उसके पीछे से झांकती बड़ी और बौद्धिक आंखें। उनकी वह निश्छल मुस्कान जो हर क्षुद्र वार को निष्फल करती प्रतीत होती थी, मन्नू जी! आप हम सब में स्पंदित हैं... हम आपकी शाखाएं- प्रशाखाएं’

मनीषा कुलश्रेष्‍ठ ने मन्‍नू भंडारी की स्‍मृति में लिखा आलेख ‘यह विदा नहीं है मन्‍नू जी’ से यह अंश फेसबुक पर साझा किए हैं।

शि‍वना प्रकाशन ने लिखा, स्मृति शेष, मन्नू भंडारी जी को शिवना परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि

लेखिका गीताश्री ने उन्‍हें श्रद्धाजंलि देते हुए लिखा, बहुत देर तक दुख में डूबी रही। हिम्मत नहीं होती कि ऐसी खबर साझा करुं। रचना जी से बात हुईउनका दुख कितना गहरा। कितना बड़ा आघात। हमारे समय की बड़ी लेखिका मन्नू भंडारी का जाना एक युग का अवसान है। कुछ कह नहीं पा रही हूं, अभी तो बस नमन।

कवि-लेखक आशुतोष दुबे ने लि‍खा, प्रिय लेखिका मन्नू जी नहीं रहीं। नमन। आशुतोष जी ने अपने एक लेख के माध्‍यम से उनकी एक मधुर स्मृति साझा की है।

लेखिका अनुशक्‍ति सिंह ने कहा,  मन्‍नू भंडारी मेरे लिए किंवदन्ती थीं। किंवदन्तियां ख़त्म नहीं होती हैं। लोक में पैठती-चलती रहती हैं। नमन मन्नू जी

सत्‍यानंद निरुपम ने फेसबुक पर लिखा, मन्नू भंडारी जी, आप भुलाए नहीं भूलेंगी। जब-जब रजनीगंधा के फूल देखूंगा, आप बरबस याद आएंगी... आपकी कहानियों में मैं आपको महसूस करते रहूंगा।

कवि-लेखक पुनम सोनछात्रा ने फेसबुक पर मन्‍नू भंडारी को कुछ यूं याद किया, उन्‍होंने लिखा, ‘ऐसे पेड़ होते हैं न, जिनमें चांदी की पत्तियां होती हैं, सोने के फल और फलों के अंदर मोतियों के दाने निकलते हैं। ऐसे पेड़ हम नहीं उगा सकते’ -मन्नू भंडारी

अनुराग वत्‍स ने लिखा, कल मन्नू भंडारी का निधन हुआ। कल सबको यही सच है’ / ‘रजनीगंधाकी भी याद आई। कल ही विद्या सिन्हा का जन्मदिन था। क्या संयोग है धरती पर आने-जाने, होने-जीने का!

इसी तरह से अपनी प्र‍िय लेखि‍का को कई लेखक और कवियों समेत प्रकाशन संस्‍थाओं ने याद किया और उनके साथ अपनी स्‍मृ‍ति को सोशल मीडि‍या प्‍लेटफॉर्म पर बयां किया। उन्‍हें ट्‍विटर और इंस्‍टाग्राम पर भी कई साहित्‍यकारों ने श्रद्धाजंलि दी।

लेखन ने मन्‍नू हुईं सबकी प्र‍िय
अपने लेखन कार्यकाल में मन्‍नू भंडारी ने कहानियां और उपन्यास दोनों लिखे हैं। ‘मैं हार गई’ (1957), ‘एक प्लेट सैलाब’ (1962), ‘यही सच है’ (1966), ‘त्रिशंकु’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’ और ‘आंखों देखा झूठ’ उनके द्वारा लिखे गए कुछ महत्त्वपूर्ण कहानी संग्रह है। उन्होंने अपनी पहली कहानी ‘मैं हार गई’ अजमेर में ही लिखी थी जो काफी मशहूर हुई थी।

एमपी के मंदसौर में हुआ था जन्‍म
हिंदी की प्रसिद्ध कहानीकार और उपन्यासकार मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश में मंदसौर ज़िले के भानपुर गांव में हुआ था। मन्नू का बचपन का नाम ‘महेंद्र कुमारी’ था। उनके पिता सुख संपत राय उस दौर के जाने-माने लेखक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने स्त्री शिक्षा पर बल दिया। वह लड़कियों को रसोई में न भेजकर, उनकी शिक्षा को प्राथमिकता देने के समर्थक थे।

मन्नू के व्यक्तित्व निर्माण में उनके पिता का काफी योगदान रहा। उनकी माता का नाम अनूप कुंवरी था जो कि उदार, स्नेहिल, सहनशील और धार्मिक प्रवृति की महिला थी। इसके अलावा परिवार में मन्नू के चार-बहन भाई थे। बचपन से ही उन्हें, प्यार से ‘मन्नू’ पुकारा जाता था इसलिए उन्होंने लेखन में भी अपने नाम का चुनाव मन्नू को ही किया। लेखक राजेंद्र यादव से शादी के बाद भी महेंद्र कुमारी मन्नू भंडारी ही रही। मन्नू भंडारी ने अजमेर के ‘सावित्री गर्ल्स हाई स्कूल’ से शिक्षा प्राप्त की और कोलकाता से बीए की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने एमए तक शिक्षा ग्रहण की और वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया।

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