गाँधी की किताब का असर

अपराधी बन गया इंसान

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महात्मा गाँधी की प्रसिद्ध किताब 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' ने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ही नहीं बल्कि कई लोगों पर असर किया है। मुंबई में ऐसा ही एक गुनहगार है जिसने गाँधीजी की यह किताब पढ़ी और किताब ने उसका जीवन बदल डाला। उसने सत्य के रास्ते पर चलना शुरू किया। यह गाँधीजी के विचारों का ही प्रभाव है कि मुंबई का लक्ष्मण गोरे गुनाह की काली दुनिया छोड़ कर गाँधीजी के विचारों के प्रचार में लग गया है।

घाटकोपर इलाके में रहने वाले लक्ष्मण ने बचपन में गुस्से में आकर एक व्यक्ति पर उस्तरा चला दिया था। इस गुनाह के लिए उसे बाल सुधार आश्रम में रखने के बजाय सेंट्रल जेल भेजा गया। वहाँ उसकी घाघ गुंडों से दोस्ती हुई। जेल से छूटने पर उसने दोस्तों के साथ मिलकर अपराध की दुनिया में कदम रख दिया। लोगों को धमकाना, फिरौती लेना, महिलाओं की इज्जत लूटना, हत्या करना उसका पेशा हो गया। थोड़े समय में ही उसने अपराध की दुनिया में अपनी जगह बना ली। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। इस बार जेल में उसे महात्मा गाँधी की किताब 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' पढ़ने को मिली। इस किताब को पढ़ने के बाद उसकी जिंदगी ही बदल गई।

लक्ष्मण ने बताया, 'किताब पढ़ने के बाद मुझे लगा कि इतनी सच्चाई से जीवन की बातें करना आसान नहीं है। हाथ में चाकू या रिवॉल्वर लेकर लोगों को डराने धमकाने वाले हम अंदर से खोखले रहते हैं। सच बोलने के लिए जो हिम्मत चाहिए वह हममें से किसी में नहीं होती। सत्य के प्रयोग पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मुझे भी सत्य का प्रयोग करना चाहिए।

जब अदालत में जज ने मुझसे मेरे गुनाहों के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें स्वीकार किया। जज ने मुझसे पूछा कि जानते हो इसका असर क्या होगा? मैंने कहा, हाँ सात साल की कड़ी सजा। मुझे साढ़े चार साल की सजा हुई। मैंने जेल में गाँधीजी के विचारों का प्रचार किया और जेल से बाहर आने के बाद मैं मुंबई सर्वोदय मंडल से जुड़ा। मैंने खादी पहनना और गाँधीजी के विचारों का प्रचार करना शुरू किया।

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