जड़त्व एक रूप लिए होता है

कवि कमलेश का गद्यांश और प्रेरित कलाकृति

रवींद्र व्यास
Ravindra VyasWD
कला या काव्य इसलिए हैं ताकि दैनंदिन जीवन की हर घटना. हर स्थिति, हर यथार्थ की काव्यात्मकता और कलात्मकता का प्रत्यक्ष हो जाए। यह निखिल चराचर एक समय अनुभव का विषय बन जाए। ज्ञान के विभाजन में कलाओं को अनेक प्रकारों में विभक्त कर उसे स्वतः स्फूर्त सृजन से अलग कर देना यह कला शिक्षण या आलोचना की विडबंना है।

अगर वर्षों तक गुरु किसी की सेवा में रह कर ही संगीत सीखा जा सकता है तो तात्पर्य यही है कि उसे उसको दार्शनिक , धार्मिक, सामाजिक परिस्थिति में रहते हुए, निष्ठापूर्वक किसी इष्ट की पूजा के रूप में ही सीखा जा सकता है। प्रतिक्षण गायन-वादन के जरिये अपनी आत्मा को विकसित करते हुए ही संगीत अनुभव का विषय बनता है।

यही बात ज्ञान के हर क्षेत्र के विषय में है। यही बात जगत के ज्ञान के विषय में सही है। तभी अगोचर वन का गोचर वृक्षों में, पशुओं को पदचाप में, पक्षियों को कलरव में पूर्वजों को पद चिह्नों में प्रत्यक्ष होता है। कलाकृति के माध्यम से ही हमें गोचर जगत की मूर्तता पुनः उपलब्ध होती है। जो कुछ भी इस सृष्टि में भासमान है वह हमारे लिए सहज होता है, जो कुछ भी दुर्बोध है वह ज्ञेय बनता है।

जड़ और चेतन के एकत्व का और उनके भेदत्व का ज्ञान होता है। वृक्षों का जड़त्व ही उनके गोचर होने का कारण है। उनमें वर्ण, भार, छाया और आयतन-दृष्टिगोचर होने वाले सभी अवयव या हमारी इंद्रियों का विषय बनने वाले उसके अंगों का स्रोत उसके जड़त्व में ही है लेकिन साथ ही चित्तरूप होने के कारण ही वृक्ष हमारी चेतना के भी अंग हैं। इसलिए जड़त्व हमेशा एक रूप लिए होता है।

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