कुछ कम रोशन है रोशनी, कुछ कम गीली हैं बारिशें

संगत में इस बार फिल्म दोस्ताना का गीत और कलाकृति

रवींद्र व्यास
Ravindra VyasWD
जिंदगी में किसी के होने, न होने से बहुत फर्क पड़ता है। लगता है जैसे किसी का होना हमें कोई नया अर्थ दे रहा है। उसके होने से हमारा जीवन कुछ ज्यादा धड़कता हुआ लगता है। यदि कोई कवि अपनी प्रिया के लिए यह कहे कि तुम्हारे होने से ही फूल कुछ ज्यादा सुर्ख हैं, तुम्हारे होने से आसमान कुछ ज्यादा नीला है और तुम्हारे होने से ही यह समंदर कुछ ज्यादा गहरा है तो इस पर सहज ही भरोसा किया जाना चाहिए।

यह एक तरह भाव है और हो सकता है कुछ लोगों को यह वायवीय भी लगे। लेकिन जब इस अहसास के लम्हों से गुजरो तो महसूस होता है कि यह उतना भी वायवीय नहीं है जितना शायद समझा जा रहा हो। इसलिए अपनी प्रिया के लिए जब कोई यह कहे कि आम के पेड़ पर बैठी कोई कोयल की आवाज ज्यादा मीठी लग रही है तो यह किसी के होने का ही एक अलग अहसास है।

लेकिन जब कोई न हो तो उसका न होना भी कई-कई रूपों में प्रकट होता है, महसूस होता है। न होने का यह अहसास फिल्म दोस्ताना के एक सादे से गीत में है। इसे लिखा है विशाल ददलानी ने। गीत इन पंक्तियों से शुरू होता है-

कुछ कम रोशन है रोशनी
कुछ कम गीली हैं बारिशें
थम सा गया है ये वक्त ऐसे
तेरे लिए ही ठहरा हो जैस े

यह एक प्यारा अहसास है। सादे से लफ्जों में व्यक्त होता हुआ। बहुत साहित्यिक मूल्य इसका भले ही न हो लेकिन मन की बात को बहुत ही खूबसूरती से कहने का अंदाज तो है। किसी के न होने का अहसास रोशनी के कम रोशन होने में प्रकट हो रहा है, बारिश है तो सही लेकिन उसका अहसास कुछ कम गीला है।

जिंदगी में किसी के न होने का यह अहसास आसपास कुछ इस तरह घटित हो रहा है कि कुछ कमी महसूस हो रही है। रोशनी है लेकिन कम है, बारिश है लेकिन कम भीगी है। यह मौसम की उपस्थिति में किसी की अनुपस्थिति का अहसास है। और फिर वक्त के रूकने का अहसास है।

किसी के साथ होने से हमें समय का भान नहीं होता। वह इतना हल्का और महीन हो जाता है कि लगता है समय किसी नरम-मुलायम सफेद बादल की तरह उड़ता हुआ चुपचाप निकल गया है। समय के बीतने का अहसास नहीं होता। यहाँ किसी के न होने से समय के रूकने का अहसास है लेकिन इस अहसास में एक नई बात है कि यह समय का रूकना तुम्हारे लिए है।

तुम नहीं हो इसलिए यह समय थम सा गया है। तुम्हारे लिए ठहरा है। जिंदगी में कोई होता तो यह समय शायद बर्फ की तरह पिघलकर किसी नदी की तरह मचलकर बह निकलता।

क्यूँ मेरी साँस भी कुछ भीगी सी है
दूरियों से हुई नजदीकी सी है
जाने क्या ये बात है,
हर सुबह अब रात ह ै

फूल महके नहीं, कुछ गुमसुम से हैं
जैसे रूठे हुए कुछ ये तुमसे हैं
खुशबुएँ ढल गईं
साथ तुम अब जो नही ं

अब किसी के न होने का यह अहसास एक उदास समाँ बाँधता है। क्योंकि फूल खिले तो हुए हैं लेकिन उनमें महक नहीं है जैसे फूलों को महक भी किसी के होने से मिलती है। कोई है इसलिए फूलों में महक होती है लेकिन वह यहाँ नहीं है लिहाजा फूल महके नहीं हैं। फूल तो गुमसुम हैं, उदास हैं। और इस तरह किसी के न होने से अपने मन की उदासी फूलों के न महकने में, फूलों के गुमसुम होने में बयाँ हो रही है।

जाहिर है न होना कहाँ कहाँ प्रकट हो रहा है। रोशनी से लेकर बारिशों में। जिंदगी में वह नहीं है जिसके होने से बारिशें ज्यादा गीली होतीं रोशनी ज्यादा रोशन होती। लेकिन फिलवक्त वह नहीं इसलिए-

कुछ कम रोशन है रोशनी
कुछ कम गीली हैं बारिशे ं।

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