फूल को कुतरती है चिड़िया

कवि अशोक वाजपेयी के गद्य का टुकड़ा और आधारित पेंटिंग

रवींद्र व्यास
Ravindra VyasWD
यूँ तो ख्यात और विवादास्पद कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं लेकिन उनका गद्य भी अपने ताजापन में खासा ध्यानाकर्षी है। उसमें कल्पना, कोमल भाव, विचार और अनूठी संवेदनशीलता का ऐसा रसायन है जिससे हमें नया आस्वाद मिलता है। वे दक्षिण फ्रांस के एक गाँव वेलेनूव ल आविन्यों में कुछ दिन आवासी रचनाकार के रूप में रहे। यहीं रहकर उन्होंने कुछ गद्य और कविता लिखी थीं। इस बार संगत में उनके एक गद्य का टुकड़ा और उस पर आधारित पेंटिंग प्रस्तुत कर रहा हूँ।

फूल सुंदर और मनोरम होते हैं। उनके होने से अच्छा लगता है। वे दृश्य को रंगदीप्त कर देते हैं। उनके होने से अपना आसपास खुशनुमा लगता है-यों कभी वे उदासी और अकेले होने को भी एक तरह की रंग-तीक्ष्णता दे देते हैं। उनके असंख्य नाम हैं जैसे कि वे हैं भी असंख्य। जैसे हम तारे नहीं गिनते वैसे ही शायद फूल गिनने की भी हिमाकत नहीं करते। नाम भी ज्यादातर हमें याद नहीं रहते-फूलों को हम उनके नाम से नहीं, रंगछटाओं से पहचानते हैं।


बगीचे में फूल-पौधे, रंग और हरियाली की सुषमा तो होती ही है : मनोरम कीड़ों और चिड़ियों की सक्रियता भी। बहुत बाद में मैंने यह बात पहचानी कि चिड़िया बगीचे में फूलों या रंगों का आनंद लेने नहीं, अपने खाद्य की खोज में आती हैं। वे यहाँ-वहाँ बैठती-फुदकती सुंदर और आत्मीय लगती हैं पर वे अक्सर हमारे अनदेखे अपने भोजन की किंचित् हिंसक तलाश में लगी होती हैं।


मुझे याद आता है कि पिछले दिनों हमारे बगीचे में एक बेहद आकर्षक और दुर्लभ-सी पीले रंग की चिड़िया आई। उसने आकर सारी हरीतिमा और रंगों के सिलसिले में एक पीली सी लौ लगा दी : सब कुछ मानों उसकी पीत-आभा से भर उठा। दुर्घटना ठीक सुंदरता के इस सघन क्षण के बाद घटी। वह लाल फूलों के एक पौधे पर एक पल के लिए बैठी और फिर पूरी तन्मयता और तैयारी के साथ उसने एक बेहद प्रसन्न दीखते अरूणपुष्प को कुतरना शुरू कर दिया। सुंदरता हमारी आँखों के सामने, दिन दहाड़े सुंदरता को कुतर रही थी : जैसे एक पीताभ क्षण में कोमल लगती क्रूरता से रक्ताभ बल्कि रक्तरंजित-सा हो रहा था।


यों प्रकृति में यह होता ही है-यह, जैसा कि कहा जाता है, उसका नियम है। जो अपने आप में भरा-पूरा और सुंदर है उसे हम काट-पीटकर, उबाल-झोंककर खा जाते हैं। यह सोचना अजब और सुखद है कि इतनी सारी सुंदरता तो मनुष्य ही हर रोज कुतरता, नष्ट करता और लीलता रहता है।


NDND
सुंदरता शुद्ध मानवीय अवधारणा है : प्रकृति, ईश्वर या पक्षियों के लिए कुछ भी सुंदर नहीं है। शायद सुंदरता की बात हमने जो प्राकृतिक है उसके विपरीत जाने के क्रम में सोची है। सुंदरता मौलिक गुण नहीं, उसकी कोई आत्यंतिकता नहीं है वह आरोपण है। न फूल सुंदर है, न पीली चिड़िया : न कुतरना क्रूर है। यह सिर्फ होता है, बिना किसी विशेषण के।


पर मैं जो मनुष्य हूँ, मुझे जो विशेषण मिले हैं, मुझे जो सुंदरता और क्रूरता का आभार होता है उन्हें घूरे पर क्यों फेंक दूँ ? मुझे अरूणपुष्प को निहारती चिड़िया और सुंदरता का वह पीताभ क्षण चाहिए : हो सके तो कुतरती चिड़िया नहीं, भले ही उसका पीला और सुंदर होना इस क्रूर कर्म पर ही आश्रित क्यों न हो।

Show comments

धनतेरस सजावट : ऐसे करें घर को इन खूबसूरत चीजों से डेकोरेट, आयेगी फेस्टिवल वाली फीलिंग

दीपावली पार्टी में दमकेंगी आपकी आंखें, इस फेस्टिव सीजन ट्राई करें ये आई मेकअप टिप्स

दीपावली पर 10 लाइन कैसे लिखें? Essay on Diwali in Hindi

फेस्टिव दीपावली साड़ी लुक : इस दिवाली कैसे पाएं एथनिक और एलिगेंट लुक

दिवाली के शुभ अवसर पर कैसे बनाएं नमकीन हेल्दी पोहा चिवड़ा, नोट करें रेसिपी

दीपावली पर ऐसे बढ़ाएं चेहरे की चमक : कॉन्टूरिंग से पाएं परफेक्ट फेस लुक

दीपावली पर अस्थमा को कहें अलविदा : अपनाएं ये खास योग टिप्स

US Elections: ऑनलाइन सर्वे में 61 प्रतिशत NRI मतदाता हैरिस और 32 प्रतिशत ट्रंप समर्थक

रूप चतुर्दशी पर ये उपाय करने से मिलेगा सुंदरता, स्वास्थ्य और अच्छे रूप का वरदान

रूप चौदस के दिन इस खास उबटन से निखरेगा आपका चेहरा, दिवाली की रात तक मिलेगा प्राकृतिक Glow