rashifal-2026

बारिश गिरो ना,बिना प्यार की गई स्त्री पर

कवि शुंतारो तानीकावा की कविता और प्रेरित कलाकृति

रवींद्र व्यास
Ravindra VyasWD
एक बहुत ही साधारण सी बात के बारे में एक कवि इतने अनूठे ढंग से सोचता है कि वह एक असाधारण अर्थ हासिल कर लेती है। यह कवि के बूते की ही बात है। यह महसूस करने की बात है। कोई दावा नहीं, कोई खम ठोंकने की बात नहीं बल्कि बहुत ही गहरे महसूस करने की बात है यह कि एक साधारण सी बात महसूस करते हुए कोई कवि उसके कितने अर्थों को हमारे लिए खोल देता है।

एक बार हम भी यह महसूस कर पाते हैं कि हमारे आसपास का जीवन कितना स्पंदित है। एक जापानी कवि है शुंतारो तानीकावा। वे जापान में खासे पढ़े जाते हैं। विश्व कविता में उनका एक सम्मानजक स्थान है। वे कहते हैं कि कवि बनने की मुझे कोई इच्छा नहीं थी। मैंने यह जानने की कोशिश ही नहीं कि कविता होती क्या है। मैं तो बस उसको लिख देता था जो मुझे महसूस होता था।

संगत में इस बार उनकी जो कविता चुनी गई है वह इस बात कि गवाह है कि सचमुच यह कवि सच्चा-खरा कहता है कि मैं तो बस उसको लिख देता हूँ जो मुझे महसूस होता है। सचमुच वे महसूस कर ही लिखते हैं। यह कविता बारिश को लेकर है बल्कि बारिश के बहाने ज्यादा बड़े फलक को छूती हुई जीवने के बारे में है। यह जीवन का गान है। जीवन का छंद है। इसमें दुःख है, इसमें विलाप है, इसमें प्रार्थना है, इसमें गीत है, इसमें उम्मीद है। ये सब मिलकर इस कविता को एक बड़ी कविता बनाते हैं।

बारिश, गिरो ना बारिश
गिरो ना उस बिना प्यार की गई स्त्री पर
गिरो ना बारिश
अनबहे आँसुओं के बदले
गिरो ना बारिश गुपचुप।

यह बारिश का इंतजार है लेकिन इंतजार के साथ ही एक पुकार है कि बारिश गिरो ना। यह एक कवि की पुकार है। इसमें कवि का दुःख दूसरों के दुःखों से मिलकर बना है। बल्कि दूसरों का दुःख ही उसका दुःख है। इसलिए बारिश के लिए इसमें जो पुकार है, जो प्रार्थना है वह एक ऐसी स्त्री के लिए जिसे प्यार नहीं मिला। और यह दुःख वह कितनी खूबी से पाँचवी पंक्ति में अभिव्यक्त करता है कि -

अनबहे आँसुओं के बदले गिरो ना बारिश।
गिरो ना बारिश दरके हुए खेतों पर
गिरो ना बारिश सूखे कुँओं पर
गिरो ना बारिश जल्दी

वह बारिश से प्रार्थना करते हुए अपने आसपास को नहीं भूलता। अपने गाँव को नहीं भूलता। गाँव के खेतों और कुँओं को नहीं भूलता। दरके हुए खेत और सुखे कुँओं के जरिए वह हमारे सामने वह हाहाकारी यथार्थ सामने लाता जिसमें किसान की आँखें टकटकी लगाए बादलों को देख रही है और तमाम प्यासे कंठ उसकी एक बूँद का इंतजार कर रहे हैं।

गिरो ना बारिश
नापाम की लपटों पर
गिरो ना बारिश जलते गाँवों पर
गिरो ना बारिश भयंकर तरीके से ...

ऊपर की इन पंक्तियों में एक जापानी का दुःख, पीड़ा, संत्रास है जिसे एक जापानी ही समझ सकता है, महसूस कर सकता है। इतिहास की एक घटना को वे कितने साधारण ढंग से कहते हैं कि उसमें छिपी चीख हम तक अपनी पूरी तीव्रता से आती है, दुःख में लिपटी हुई, भयानकतम स्मृतियों से लिपटी हुई, अपनी गंध के साथ, अपनी लपट के साथ। और आखिरी पंक्ति पर गौर करिए जिसमें कहा जा रहा है कि गिरो ना बारिश भयंकर तरीके से।

कहने की जरूरत नहीं कि वह अनुभव इतना भयानक और त्रासदायक है कि किसी भी तरह की शीतलता या छोटी-मोटी बारिश उसकी तपन को और उसकी आँच को कम नहीं कर सकती। यह एक चीत्कार है। आसमान को भेदती हुई। हमारे मन को भी भेदती हुई। पूरी मनुष्यता की चीत्कार में बदलती हुई।

गिरो, ना बारिश अनंत रेगिस्तान के ऊपर
गिरो ना बारिश छिपे हुए बीजों पर
गिरो ना बारिश हौले हौले

  यह बारिश का इंतजार है लेकिन इंतजार के साथ ही एक पुकार है कि बारिश गिरो ना। यह एक कवि की पुकार है। इसमें कवि का दुःख दूसरों के दुःखों से मिलकर बना है। बल्कि दूसरों का दुःख ही उसका दुःख है। इसलिए बारिश के लिए इसमें जो पुकार है, जो प्रार्थना है ...      
लेकिन यह कवि है जो तमाम चीखों और चीत्कारों के बीच, तमाम अत्याचारों और अनाचारों के बीच और इस तरह सब कुछ खत्म हो जाने के बीच उम्मीद नहीं छोड़ता क्योंकि उम्मीद का कोई विकल्प नहीं है। इसीलिए बारिश से कहा जा रहा है कि -

गिरो रेगिस्तान पर,
गिरो छिपे हुए बीजों पर
ताकि वह अनंत रेगिस्तान
फिर से हरे-भरेपन में
लहलहा उठे।
गिरो ना बारिश
फिर से जीवित होते हरे पर
गिनो ना बारिश चमकते हुए कल की खातिर
गिरो ना बारिश आज।

बारिश गिनो ना जीवित होते हरे पर। कितनी जबरदस्त उम्मीद । यही शायद किसी कवि की और इस तरह से मनुष्य की जिजीविषा ही है कि वह कल खातिर नाउम्मीद नहीं होता, निराश नहीं होता। हर हाल में उम्मीद का बीज अपने में छिपाए रखता है। वह चाहता है कि बारिश गिरे चमकते कल के लिए, लेकिन बारिश गिरे आज ही। यह कविता सचमुच महसूस करने की कविता है। उजाड़ के बीच हरेपन की कविता है। निराशा के खिलाफ आशा की कविता है। यह दुःख को भुलाती नहीं, यह भयंकर दुःस्वप्नों को भी नहीं भुलाती लेकिन इसके बावजूद यह जीवन को पास बुलाती है।

जीवन की गोद में बैठकर जीवन के खिलखिलते गीत की कविता है। यह रेगिस्तान के खिलाफ हरेपन के गान की कविता है। आइए इसे महसूस करें और कहें कि गिरो ना बारिश, अनबहे आँसुओं के बदले।

( यह कविता इस जापानी कवि की कविताओं के अनुवादों की किताब एकाकीपन के बीस अरब प्रकाशवर्ष से ली गई है। इसके अनुवादक हैं युवा कवि अशोक पांडे)

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

डायबिटीज के मरीजों में अक्सर पाई जाती है इन 5 विटामिन्स की कमी, जानिए क्यों है खतरनाक

Toilet Vastu Remedies: शौचालय में यदि है वास्तु दोष तो करें ये 9 उपाय

Negative thinking: इन 10 नकारात्मक विचारों से होते हैं 10 भयंकर रोग

Winter Health: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो अपने खाने में शामिल करें ये 17 चीजें और पाएं अनेक सेहत फायदे

Kids Winter Care: सर्दी में कैसे रखें छोटे बच्चों का खयाल, जानें विंटर हेल्थ टिप्स

सभी देखें

नवीनतम

स्मिता पाटिल : कलात्मक फिल्मों की जान

World Energy Conservation Day: विश्व ऊर्जा संरक्षण दिवस क्यों मनाया जाता है, जानें इतिहास, महत्व और उद्देश्य

एसआईआर पर बंगाल का दृश्य डरावना

Christmas Essay: क्रिसमस की धूम, पढ़ें बड़े दिन पर रोचक हिन्दी निबंध

कविता: ओशो का अवतरण, अंतरात्मा का पर्व