Dharma Sangrah

वह बारिश है, अनंत बारिश

संगत में कुमार अंबुज की कहानी का अंश और प्रेरित कलाकृति

रवींद्र व्यास
Ravindra VyasWD
बारिश मेरे चेहरे पर गिरती है
बारिश गिरती है मेरे अगोचर में
बारिश छूती है मेरी इंद्रियों को
बारिश छूती है मेरी अतींद्रियों को
धरती में जितने लवण और खनिज हैं
और धातुएँ और अयस्क जितन े
वे जो मेरे रक्त की बूँद में आकर सांद्र हैं
उन रक्त समुद्रों में होती है बारिश
नसों-शिराओं के अक्षांशों-देशांतरों में झूमती
मेरी अपनी ही बारिश की तरह !

जानता हूँ कि बारिश को ठीक -ठीक, पूरा -पूरा किसी कविता में भी नहीं लिखा जा सकता। कहानी में तो कतई नहीं। वह गद्य के स्पर्श भर से स्थूल हो जाएगी। या हो सकता है वह विवरण के किसी रेगिस्तान में ही विलीन हो जाए। जबकि उसके हर अंग से बारिश होती है।

उन अंगों से भी जो मृत कोशिकाओं से बने हैं। उसके नाखूनों से । उसके रोओं से। और पलकों से। सबसे ज्यादा उसके केशों से। जहाँ घने बादल रहते हैं, जहाँ घटाएँ उठती हैं और जल धूलकणों से लिपट जाता है। और वहाँ से जहाँ शहदभरे छत्ते हैं, लताएँ हैं, पत्ते हैं और जहाँ फुलवारी है, फल पल्लवित हैं और जहाँ से बौछारें आती हैं।

और वे जगहें जहाँ लगातार रिमझिम होती रहती है और उसके भीतर के वे बरामदे जो हैं ही इसलिए कि वहाँ बैठकर भीगा जा सके और वे दिशाएँ जहाँ से हहराकर पानी उठता है। और वहाँ जहाँ लालिमा फैल गई है। ऐसी तमाम जगहें जो किसी वर्णन में मुमकिन नहीं। उसके भीतर अन्तर्धाराएँ हैं। ऐसे स्रोत, जो कभी सूखते नहीं।

अनगिन अमर झरने हैं जो जरा से स्पर्श से ही प्रकट हो जाते हैं। उसके गोपनीय जलप्रपात भी कितने पारदर्शी हैं कितने उजागर। वह बारिश है। अनंत बारिश।

( समकालीन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण कवि-कहानीकार कुमार अंबुज की कहानी बारिश का एक अंश। इसका इस्तेमाल करने की अनुमति देने के लिए कुमार अंबुज के प्रति आभार)

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