अनूठे रचनाकर विजयदान देथा उर्फ 'बिज्जी'

- ऋषि गौतम

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भारतीय मेधा का उत्कृष्ट रूप अगर आपको देखना हो तो आपको राजस्थानी भाषा के बहुचर्चित लेखक और साहित्यकार विजयदान देथा उर्फ बिज्जी की कहानियों से एक बार रूबरू होना ही पडे़गा। उनकी कहानियों में एक तरफ लोक का जादुई आलोक है तो दूसरी तरफ सहज चिंतन और गहरे सामाजिक सरोकारों से ओतप्रोत एक सजग रचनाकार का कलात्मक एवं वैचारिक स्पर्श।

भारतीय साहित्य और राजस्थानी भाषा के गौरवशाली रचनाकार विजयदान देथा उर्फ बिज्जी लोककथा के जादूगर कहलाते थे। लोककथा के जादू का बक्सा अगर किसी के पास था तो वह था 'बिज्जी'के पास। उन्होंने राजस्थानी भाषा की 'दुविधा' नामक लोककथा से लेखक के रूप में खुद को स्थापित किया था। बिज्जी की कहानियां जब पहली बार पाठकों के सामने आईं थी तो एक हलचल सी मच गई थी। आधुनिक भारतीय साहित्य में लोकतत्व इस तरह से प्रासंगिक होकर पहली बार दिखा था।

बिज्जी के नाम से मशहूर विजयदान देथा अपनी कहानियों के लिए देश-विदेश में मशहूर थे। उनकी कहानियों पर पहेली,परिणति और दुविधा जैसी फिल्में बन चुकी हैं और हबीब तनवीर विश्विख्यात नाटक ‘चरणदास चो र ’दुनिया भर में प्रदर्शित कर चुके हैं। उन्हें साहित्य अकादमी और पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। साथ ही उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित किया जा चुका है।

1 सितंबर 1926 को राजस्थान के पाली जिले में पैदा होने वाले विजयदान देथा ने राजस्थानी में करीब 800 छोटी-बड़ी कहानियां लिखीं। जिनका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उनकी कहानियों में राजस्थानी लोक संस्कृति,आम जीवन की झलक मिलती है। जोधपुर से तकरीबन 100 किमी दूर एक कस्बेनुमा छोटे-से गांव बोरूंदा में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी। उन्हें लोग प्यार से 'बिज्जी' कहते थे।

चार साल की उम्र में पिता को खो देने वाले बिज्जी ने न कभी अपना गांव छोड़ा,न अपनी भाषा। ताउम्र राजस्थानी में लिखते रहे और लिखने के सिवा कोई और काम नहीं किया। हमेशा दो जोड़ी कपड़ों में संतोषी जीवन जिया।

बने बनाए सांचों को तोड़ने वाले देथा ने कहानी सुनाने की राजस्थान की समृद्ध परंपरा से अपनी शैली का तालमेल किया। चतुर गड़ेरियों,मूर्ख राजाओं,चालाक भूतों और समझदार राजकुमारियों की जुबानी देथा ने जो कहानियां बुनीं उन्होंने उनके शब्दों को जीवंत कर दिया।

राजस्थान की लोककथाओं को मौजूदा समाज,राजनीति और बदलाव के औजारों से लैस कर उन्होंने कथाओं की ऐसी फुलवारी रची है कि जिसकी सुगंध दूर-दूर तक महसूस की जा सकती है।

एक बार बिज्जी की कहानियों से गुजरिए और फिर उनके व्यक्तित्व से,दोनों में मामूली-सी फांस भी आपको नहीं दिखेगी। राजा-रानी,राजकुमार,घोड़ा,चिडिय़ा,पेड़ उनकी कहानियों के पात्र हैं। उन्होंने 14 भागों में राजस्थानी लोककथाओं को संकलित किया था।

बच्चे की तरह सरल और निश्छल विजयदान देथा ने मृत्यु के बारे में एक बार कहा था 'मृत्यु तो जीवन का श्रृंगार है। यह न हो तो कैसे काम चले? सोचो,मेरे सारे पुरखे आज जिंदा होते तो क्या होता? मेरे बारे में भी जो लिखना पढ़ना है पहले ही लिख के मुझे पढ़ा दो। अपने मरने के बाद मैं कैसे पढ़ पाउंगा?' तो ऐसे थे 'बिज्जी'जो अपनी बातों की फुलवारी में हमेशा जिंदा रहेंगे। अब जब वह नहीं होंगे तब भी हम उन्हें पढ़ेंगे। सारी दुनिया उन्हें पढ़ेगी।

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