Festival Posters

विलक्षण प्रतिभा के धनी भारतेन्दु

स्मृति आदित्य
ND
भारतेन्दु हरिश्चंद्र विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनके नाम से पत्रकारिता का एक पूरा युग पहचाना जाता है। इस युग में ना सिर्फ उनकी ओजस्वी रचनाओं का सृजन हुआ बल्कि उनसे प्रेरणा और प्रोत्साहन पाकर कई स्वनामधन्य पत्रकारों-साहित्यकारों की श्रंखला तैयार हुई।

भारतेन्दु स्वयं लेखक, कवि, पत्रकार, संपादक, निबंधकार, नाटककार, व्यंग्यकार एवं कुशल वक्ता थे। उनकी इस प्रतिभा से रूबरू संपूर्ण युग पत्रकारिता का स्वर्णिम युग कहलाया। इस युग में नए प्रयोग, नए लेखन और नई शैली को भरपूर बढ़ावा मिला।

शायद ही कोई विश्वास करे कि अत्यंत प्रतिभाशाली भारतेन्दु मात्र 35 वर्ष में चल बसे। किंतु अल्पायु में रचे उनके सृजन की चमक आज भी बरकरार है।

9 सितंबर 1850 को व्यापारी गोपालचंद के यहाँ जन्मे हरिश्चंद्र का बचपन संघर्षमयी रहा। पाँच वर्ष की आयु में माँ का देहावसान हो गया। विवाहोपरांत पत्नी भी अस्वस्थ रही। अपार दौलत भी उन्हें मन का रचनात्मक संतोष और सुख नहीं दे सकी। फलस्वरूप प्रेम की कमी को उन्होंने अपनी जायदाद को लुटा कर पूरा किया।
  भारतेन्दु स्वयं लेखक, कवि, पत्रकार, संपादक, निबंधकार, नाटककार, व्यंग्यकार एवं कुशल वक्ता थे। उनकी इस प्रतिभा से रूबरू संपूर्ण युग पत्रकारिता का स्वर्णिम युग कहलाया। इस युग में नए प्रयोग, नए लेखन और नई शैली को भरपूर बढ़ावा मिला।      


सृजन और प्रखरता जिसके साथी हों वह भला ऐशो-आराम के जीवन को कैसे सहजता से लेता? उनका कहना था-

' इस जायदाद-धन-दौलत ने मेरे पूर्वजों को खाया अब मैं इसे खाऊँगा।'

दानवीर तो वे इस कदर थे कि अपनी संपत्ति दोनों हाथों से लुटा दी। जब कुछ नहीं बचा तब भी किसी उधार माँगने वाले को निराश नहीं किया।

उनके द्वारा प्रकाशित-संचालित पत्र-पत्रिकाओं में भीतर बैठा व्यंग्यकार बड़ी कुशलता से मुखरित होता है। हरिश्चंद्र चंद्रिका, कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र मैग्जीन, स्त्री बाला बोधिनी जैसे प्रकाशन उनके विचारशील और प्रगतिशील संपादकीय दृष्टिकोण का परिचय देते हैं।

चाहे मातृभाषा के प्रति स्नेह की बात हो चाहे विदेशी वस्त्रों की होली। आधुनिक युग के नेताओं से कई वर्ष पूर्व भारतेन्दु इसका बिगुल बजा चुके थे। एक बानगी देखिए-
' निज भाषा उन्नति अहै
निज उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के
मिटत न हिय को शूल'

उनकी प्रगतिशील सोच का उदाहरण देखिए कि उन दिनों महिलाओं के लिए उन्होंने 'स्त्री बाला बोधिनी' पत्रिका निकाली और अँग्रेजी पढ़ने वाली महिलाओं को पत्रिका की तरफ से साड़ी भेंट की जाती थी। यह पत्रिका उन दिनों महिलाओं की सखी के रूप में प्रस्तुत की गई थी। प्रथम अंक की एक बानगी देखें-

मैं तुम लोगों से हाथ जोड़कर और आँचल खोलकर यही माँगती हूँ कि जो कभी कोई भली-बुरी, कड़ी-नरम, कहनी-अनकहनी कहूँ उसे मुझे अपनी समझकर क्षमा करना क्योंकि मैं जो कुछ कहूँगी सो तुम्हारे हित की कहूँगी।'

जाहिर सी बात है हरिश्चंद्र पत्रिका के माध्यम से भारत की महिलाओं को जागरूक बनाना चाहते थे। उनके निबंध और नाटकों में भारतेन्दु का राष्ट्रप्रेम छलकता दिखाई पड़ता है।

यह विडंबना देखिए कि जिस कवि वचन सुधा को आठ वर्ष तक अपने रक्त से भारतेन्दु ने सींचा, 1885 में जब भारतेन्दु का निधन हुआ तब उनमें ना तो उनका शोक समाचार छपा और न ही श्रद्धां‍जलि दी गई।

भारतेन्दु को अपनों ने ही छला लेकिन एक अबोध शिशु की तरह उन्होंने कभी विश्वास करना नहीं छोड़ा। अगर उन्हें हिन्दी नवजागरण का अग्रदूत कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यात्रा प्रेमी-शिक्षा प्रेमी और लेखन प्रेमी इस अद्‍भुत शख्सियत को साहित्य संसार प्रेम से याद करता है।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Traditional Punjabi Recipe: कैसे बनाएं पारंपरिक पंजाबी भोजन सरसों का साग और मक्के की रोटी

मेंटल हेल्थ स्ट्रांग रखने के लिए रोजाना घर में ही करें ये 5 काम

Health Benefits of Roasted Potatoes : भुने आलू खाने से हेल्थ को मिलते हैं ये 6 सेहतमंद फायदे

एक दिन में कितने बादाम खाना चाहिए?

एक आकाशीय गोला, जो संस्कृत मंत्र सुनते ही जाग जाता है

सभी देखें

नवीनतम

रहस्य से पर्दा उठा, आकाशीय बूगा गोला कुंजी है क्वांटम विज्ञान की

हर्निया सर्जरी का मतलब व्यायाम पर रोक नहीं: डॉ. अचल अग्रवाल

ध्यान की कला: स्वयं की खोज की ओर एक यात्रा

World Meditation Day: ध्यान साधना क्या है, कैसे करें शुरू? जानें महत्व

Solstice 2025: 21 दिसंबर साल का सबसे छोटा दिन, जनिए 5 दिलचस्प बातें