टैगोर जयंती : काव्य, दर्शन, चित्रकला और संगीत जैसी कई विधाओं का संगम थे गुरुदेव रवींद्रनाथ

Webdunia
प्रथमेश व्यास 
इस संसार में कुछ ऐसे मनुष्य भी जन्म लेते हैं, जिनकी जीवन गाथा का वर्णन किसी एक क्षेत्र में उनके योगदान को केंद्र में रखकर नहीं किया जा सकता। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व वाले लोगों को उनकी मृत्यु के बाद भी सदियों तक याद किया जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है - गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी की। उन्हें जानने वाले ज्यादातर लोग उन्हें सिर्फ इसलिए जानते हैं क्योंकि उन्होंने भारत के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' की रचना की। लेकिन, इसी के साथ वे दुनिया के पहले एशियाई लेखक थे, जिन्होंने नोबेल पुरस्कार जीता था। इतना ही नहीं, टैगोर ने कई काव्य संग्रहों की रचना की, करीब 2 हजार से अधिक गीत लिखे, कई पेंटिंग्स बनाई, 30 से ज्यादा देशों की यात्रा की और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अहम भूमिका भी निभाई। आइए जानते हैं रवींद्रनाथ टैगोर जी के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में। 

रवींद्रनाथ टैगोर का प्रारंभिक जीवन: 
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता में हुआ। अपने 13 भाई-बहनों के बीच रवींद्रनाथ सबसे छोटे थे। उन्होंने अपनी मां को बहुत ही छोटी उम्र में खो दिया था और उनके पिता अपने काम के सिलसिले में अक्सर विदेश यात्राओं पर रहा करते थे। इस वजह से उनका पालन-पोषण घर के नौकरों द्वारा ही किया गया। 
 
टैगोर बचपन से ही स्कूली शिक्षा से बचते थे और आस-पास के गांवों में घूमना पसंद करते थे। उन्हें गलत दिशा में जाते देख उनके उनके भाई हेमेन्द्रनाथ ने उन्हें पढ़ाने का निश्चय किया और उन्हें शारीरिक गतिविधयों जैसे जिमनास्टिक, जुडो-कराटे, तैराकी आदि के माध्यम से प्रशिक्षित करना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने इतिहास, भूगोल, गणित, एनाटॉमी, अंग्रेजी जैसे कई विषयों की शिक्षा ली। 

टैगोर की आध्यात्मिक यात्रा: 
12 वर्ष की आयु में रवींद्रनाथ के पिता उन्हें आत्मज्ञान का बोध कराने के लिए एक विशेष यात्रा पर ले गए। सबसे पहले शांतिनिकेतन गए, फिर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गए, जहां रवींद्रनाथ टैगोर घंटों बैठकर गुरुबानी सुना करते थे। स्वर्ण मंदिर में कुछ वर्ष व्यतीत करने के बाद वे हिमालय की पहाड़ियों में गए, जहां उनके पिता ने उन्हें ज्योतिषशास्त्र, इतिहास और आधुनिक विज्ञान की शिक्षा दी।साथ ही साथ उनके पिता ने उन्हें रामायण और उपनिषदों का भी पाठ पढ़ाया। रवींद्रनाथ ने अपनी आगे की पढ़ाई लंदन में रहकर की। उनके पिता चाहते थे कि रवींद्रनाथ एक वकील बने, लेकिन रवींद्रनाथ की व्यक्तिगत रूचि इसमें बिलकुल भी नहीं थी। इसलिए उन्होंने कॉलेज जाना बंद कर दिया। 

कैसे की 2 हजार गीतों की रचना:
कॉलेज से दूर रहते हुए भी उनका अध्ययन नहीं रुका। उन्होंने शेक्सपीयर जैसे कई लेखकों को पढ़ना शुरू किया। इसके अलावा उन्होंने स्कॉटलैंड, आयरलैंड और ब्रिटैन के संगीत को सुनना और समझना शुरू किया, जिसकी वजह से संगीत में उनकी रूचि जागृत हुई। इसके बाद उन्होंने गानों को लिखना और उनकी धुन बनाना शुरू किया। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद को रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए गीत बहुत पसंद आते थे। अपने किसी परिचित के विवाह समारोह में उन्होंने टैगोर जी के द्वारा लिखे गए एक गीत की प्रस्तुति भी दी थी। रवींद्रनाथ जी के गानों में भारत की शास्त्रीय संगीत, कर्नाटक संगीत और गुरबानी आदि विधाओं का मिश्रण था। अपने पुरे जीवनकाल में उन्होंने करीब 2 हजार गीतों की रचना की। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि किशोर कुमार के द्वारा गाया गया गीत 'छू कर मेरे मन को' रवींद्रनाथ जी की रचनाओं से ही प्रेरित है। 
रवींद्रनाथ टैगोर का साहित्य: 
इतने विषयों में शिक्षा हासिल कर लेने के बाद रवींद्रनाथ जी के पास ज्ञान का भंडार एकत्रित हो गया था। उनकी भाषा-शैली पर भी काफी अच्छी पकड़ थी। इसलिए उन्होंने साहित्य सृजन आरम्भ किया। उन्होंने उपन्यासों के साथ-साथ कई लघु कथाओं की रचना की, जिनमें से 'काबुलीवाला' ऐसी रचना है जिसे हम सबने स्कूल की पाठ्यपुस्तक में पढ़ा है। इसके अलावा उन्होंने 'गीतांजलि नामक काव्यसंग्रह की रचना की, जिसके अंग्रेजी अनुवाद ने पूरी दुनिया में प्रसिद्धि प्राप्त की। इनके द्वारा लिखी गई ज्यादातर कविताएं स्वतंत्रता आंदोलन और देशभक्ति जैसे विषयों पर आधारित होती थी। 
 
साहित्य के क्षेत्र में टैगोर जी योगदानों को देखते हुए वर्ष 1913 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से प्रदान किया गया, जिसके बाद वे नोबेल पुरस्कार पहले एशियाई बने।  
 
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी द्वारा साहित्य, संगीत, आध्यात्म और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए योगदान और उनके विचार आज भी लाखों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। 

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