अनोखी कहानी 'आशा' की

Webdunia
- दिव्यज्योति नंद न
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भारत के एक गाँव की उस गरीब बच्ची के सिर से माँ का साया 3 माह की उम्र में ही उठ गया। पिता उसे पालने में अक्षम थ े, सो बच्ची अनाथालय पहुँचा दी गई। एक योरपीय दंपति ने उसे गोद लिया और भरपूर प्यार दिय ा, लेकिन बड़ी होने पर अपनी जड़ों की तलाश उसे वापस भारत खींच लाई। अंततः वह अपने पिता और सौतेली बहन को ढूँढने में कामयाब हुई। फिल्मी-सी लगने वाली यह कहानी असली है... ।

प्रसिद्ध फिल्मकार अल्फ्रेड हिचकॉक ने एक बार कहा थ ा, ' नाटकीयता से भरी कहानियाँ सिर्फ रजतपट पर ही जीवंत नहीं होतीं। उनका हकीकत में भी वजूद होता है ।' जी हा ँ, सचमुच ऐसा होता है। आशा मायरो इसकी जीवंत मिसाल हैं।

एक गरीब भारतीय किसान की इस स्पेनिश बेटी ने 'द अदर फेस ऑफ द मूनः फाइंडिंग माई इंडियन फेमिल ी' के रूप में अपनी जीवनी को इस कदर आकर्षक औपन्यासिक विधा में प्रस्तुत किया है कि उनकी किताब स्पेन में देखते ही देखते महज कुछ महीनों के भीतर बेस्ट सेलरबन गई ।

इसका अँगरेजी तथा दूसरी भाषाओं में हुआ अनुवाद अब योर प, अमेरिक ा, कनाडा तथा दक्षिण अमेरिका में अपनी कामयाबी का परचम लहरा रहा है। कम समय में जिस तरह इस भारतीय मूल की स्पेनिश महिला को जगप्रसिद्धि हासिल हुई ह ै, उससे यह अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है कि आशा को कहानी कहना आता है। यही कारण है कि दुनिया भर के बड़े-बड़े प्रकाशक उनसे उनकी अगली रचनाओं के लिए संपर्क कर रहे हैं।

मार्क ट्वेन ने एक बार कहा था कि अद्भुत लेखक प्रशिक्षित होकर लेखक नहीं बनते। गौरतलब है कि मार्क ट्वेन खुद भी जीवन के अनुभवों से लेखक बने थे जैसे मैक्सिम गोर्की सहित रूसी क्रांति के दौर में कई दूसरे क्रांतिकारी लेखक बने थे।

आशा मायरो ने भी अपने जीवन के शुरुआती 30 वर्षों तक लेखक बनने के बारे में शायद ही कभी सोचा हो। लेकिन उनका निजी जीवन इतने विचित्र संयोगो ं, घटनाओं और दुर्घटनाओं से भरा था कि उन्हें अपनी कहानी लिखने की प्रेरणा मिली और आशा ने अपनी जिंदगी को पन्नों पर उतार दिया।

यह इस कदर जीवंत ढंग से उतारी गई कि जैसे ही पुस्तक आकार हो सामने आ ई, रातोंरात लाखों लोगों की पसंदीदा पुस्तक बन गई। 'न्यूयॉर्क टाइम् स' से लेकर 'गार्जिय न' तक में उनकी किताब की छपी समीक्षाओं में समीक्षकों ने माना कि लगता ही नहीं कि यह किसी लेखक की पहली रचना है ।
  बड़ी होने पर अपनी जड़ों की तलाश उसे वापस भारत खींच लाई। अंततः वह अपने पिता और सौतेली बहन को ढूँढने में कामयाब हुई। फिल्मी-सी लगने वाली यह कहानी असली है...।      

उनकी यह किताब सबसे पहले स्पेनिश में छपी थ ी, लेकिन स्पेनिश में जैसे ही किताब सुपरहिट हु ई, देखते ही देखते यह अँगरेजी सहित दुनिया की कई भाषाओं में छप गई। उनकी किताब को दूसरी भाषाओं में सफलता 2006 और 2007 में मिल ी, जब उन भाषाओं मेंउनकी किताब आ ई, लेकिन स्पेनिश में तो यह 2004 में ही छप चुकी थी और अपनी इस धमाकेदार उपन्यास की शक्ल में लिखी गई बायोग्राफी की बदौलत आशा मायरो ने 2004 में स्पेनिश पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर का सम्मान हासिल किया। स्पेनिश में अब तक आशा की किताब के सात संस्करण आ चुके हैं।

' द अदर फेस ऑफ द मू न' एक ऐसी भारतीय लड़की की कहानी है जो महाराष्ट्र के नासिक जिले के एक पिछड़े गाँव में पैदा हुई थी। अभी वह महज 3 माह की ही
  आशा मायरो ने भी अपने जीवन के शुरुआती 30 वर्षों तक लेखक बनने के बारे में शायद ही कभी सोचा हो। लेकिन उनका निजी जीवन इतने विचित्र संयोगों, घटनाओं और दुर्घटनाओं से भरा था कि उन्हें अपनी कहानी लिखने की प्रेरणा मिली और आशा ने जिंदगी को पन्नों पर उतार दी।      
थी कि सिर से माँ का साया उठ गया। वह अपने पिता की दूसरी पत्नी की अंतिम संतान थी। जिस समय आशा की माँ का निधन हु आ, लगभग उसी समय उसकी सौतेली बड़ी बहन की शादी हुई।

सौतेली बहन ने अपनी तीन माह की इस बहन को अपने साथ रखकर पालना चाह ा, लेकिन उसके ससुर ने साफ-साफ कह दिया कि यह साथ में नहीं रह सकती। वजहें दो थीं लोगों को लगता कि कहीं यह उसकी ही अवैध संतान तो नहीं है। साथ ही यह भी डर था कि जब सौतेली बहन का अपना बच्चा होगा तो उसे इस छोटी लड़की की मौजूदगी में अच्छी परवरिश नहीं मिल पाएगी। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए आशा को नासिक के 'बालाश्र म' को सौंप दिया गया।

यहीं से राधू घोड़ेराव और सीताबाई की इस अंतिम संतान की कहानी को तिलस्मी मोड़ मिलता है। सखाराम वाघमारे की सलाह से अनाथालय को सौंपी गई आशा अंततः निर्मला डायस नाम की एक नन के पास पहुँच जाती है। यह 1968 की बात है। नासिक से वह मुंबई के एक आश्रम में भेजी जाती है। यहाँ पलते हुए आशा बढ़ती है। अनाथालय के बाग-बगीचों में तितलियों के पीछे दौड़ती-भागती ह ै, किसी खूबसूरत तितली की ही तरह।

उसकी कहानी में एक बार फिर ट्विस्ट आता है 1974 में त ब, जब एक स्पेनिश दंपति जोसेफ मायरो और इलेक्ट्रा वेग उस आश्रम में एक बच्चा गोद लेने पहुँचते हैं। लेकिन कोई सफल कहानी कई मोड़ों से न गुजर े, ऐसा भला कैसे संभव ह ै? स्पेनिश दंपति फातिमा और मैरी नाम की दो जुड़वाँ बहनों को गोद ले रहा था ।

ये दोनों बहनें गुजरात के एक ऐसे ही अनाथालय में पल रही थीं। लेकिन स्पेनिश दंपति उन जुड़वाँ बहनों को मुंबई के रास्ते बार्सिलोना ले जात ा, इसके पहले ही उन दो बहनों में से एक मैरी अचानक बीमार हो जाती है और उपचार के बावजूद बच नहीं पाती। मैरी उसी आश्रम में दम तोड़ देती है जहाँ आशा रह रही होती है। क्योंकि बार्सिलोना जाने से पहले उन दोनों बहनों को यहाँ भेजा गया होता है ताकि यहाँ से वे आगे का सफर कर सकें। मैरी के इस तरह अचानक चल बसने से स्पेनिश दंपति मैरी की जगह आशा घोड़ेराव को अपने साथ ले जाता है और बार्सिलोना पहुँचकर आशा घोड़ेराव आशा मायरो बन जाती है।

आशा को गोद लेने वाले मायरो दंपति बेहद सहज और संवेदनशील हैं। उन्होंने आशा को पढ़ाया-लिखाया और कम्प्यूटर प्रोफेशनल बनाया। आशा भी उनसे बेपनाह मोहब्बत करती ह ै, यह जानने के बावजूद कि उन्होंने उसे जन्म नहीं दिया। लेकिन अपनी जड़ों को जानने का मोहभी आशा का पीछा नहीं छोड़ता। आशा बावजूद इसके कि अपने स्पेनिश माँ-बाप को बहुत प्यार करती ह ै, यह जानने को बेचैन रहती थी कि उसके बायोलॉजिकल माता-पिता कौन थे।

आशा अपने स्पेनिश माता-पिता से यह सवाल करती है तो वे उसे बिल्कुल अन्यथा नहीं लेते। वे खुद उसे अपने माता-पिता को ढूँढने और उनसे मिलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस सिलसिले में आशा एक नही ं, दो-दो बार भारत आती है। पहली बार एक एनजीओ की मदद से 1995 में और दूसरी बार 2003 में ।
  वास्तव में आशा मायरो की किताब, उसका यही यात्रा वृतांत है, लेकिन अद्भुत शैली में लिखा हुआ। यह उसकी शैली ही है, जिसने रातों-रात उसे बेस्ट सेलर बना दिया और आज वह करोड़ों डॉलर की मालिक बन चुकी है।      

इन दोनों यात्राओं में वह अपने अतीत के तमाम अनसुलझे पहलुओं से रूबरू होती है। अपने पिता से लेकर बड़ी बहन तक से मिलती है और बहुत कुछ जानती है। तभी उसे पता चलता है कि उसका असली नाम आशा नही ं, उषा था। आशा तो उसकी बड़ी बहन थी। उसकी सौतेली बहन सकूबाई थ ी, जो उसे अपने साथ रखना चाहती थी। इन तमाम तथ्यों को बटोरकर आशा अपनी जिंदगी का रोजनामचा तैयार करती है। वास्तव में आशा मायरो की किता ब, उसका यही यात्रा वृतांत ह ै, लेकिन अद्भुत शैली में लिखा हुआ। यह उसकी शैली ही है, जिसने रातों-रात उसे बेस्ट सेलर बना दिया और आज वह करोड़ों डॉलर की मालिक बन चुकी है।
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