राजेन्द्र अवस्थी : एक कुशल संपादक

साहित्य का एक और सितारा अस्त

स्मृति आदित्य
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साल के अंत में राजेन्द्र अवस्थी का जाना सामान्य खबर नहीं है। यह खबर हर उस बु‍द्ध‍िजीवी पाठक के लिए निराश कर देने वाली है जो श्रेष्ठ लेखन का प‍िपासु रहा है। जिसने कादंबिनी के हर अंक का बेताबी से इंतजार किया है वही जानता है कि राजेन्द्र अवस्थी जैसे प्रगतिशील साहित्यकार का जाना लेखन की दुनिया की कितनी बड़‍ी रिक्तता है। राजेन्द्र अवस्थी ने कादंबिनी के 'कालचिंतन' कॉलम के माध्यम से अपना एक खास पाठक वर्ग तैयार किया था।

यह 'कालचिंतन' की असीम लोकप्रियता ही थी कि कादंबिनी ने किसी समय में बिक्री के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। यह भी राजेन्द्र अवस्थी की लेखनी का ही करिश्मा था कि मृतप्राय पत्रिकाओं के दौर में भी उनकी कादंबिनी साँस लेती रही। उनके कुशल संपादन और दूरदर्शिता का ही उदाहरण था कि रहस्य, रोमांच, भूत-प्रेत, आत्माओं, रत्न-जवाहरात, तंत्र-मंत्र-यंत्र व कापालिक सिद्ध‍ियाँ जैसे विषय को भी गहरी पड़ताल, अनूठे विश्लेषण और अदभुत तार्किकता के साथ वे पेश कर सके।

कादंबिनी के नियमित पाठक जानते हैं कि कॉलम 'कालचिंतन' ने कितनी ही बार उनके मन की दार्शनिक उलझनों को सहजता से सुलझा कर रख दिया। उनका एक-एक शब्द नपा-तुला, जाँचा-परखा और अनुभवों की गहनता से उपजा हुआ लगता था।

उन्होंने कांदबिनी के ऐसे अनूठे और अदभुत विशेषांक निकाले जो आज भी सुधी पाठकों के पुस्तक-संग्रह में आसानी से मिल जाएँगे। रिडर्स डाइजेस्ट की 'सर्वोत्तम' जैसी पत्रिका की बराबरी अगर कोई कर सकती थी तो वह सिर्फ कादंबिनी ही थी। 'नवनीत' इस कड़ी में दूसरे स्थान पर रखी जा सकती है। हालाँकि समय बदलने के साथ कादंबिनी की विषयवस्तु सिमटने लगी थी मगर गुणवत्ता के स्तर पर वह हमेशा शीर्ष पर रहीं।

उनके संपादकीय व्यक्तित्व का प्रभाव काद‍ंबिनी के अलावा साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सरिता और नंदन जैसी स्तरीय पत्रिकाओं में बखूबी नजर आया।

उनका जन्म जबलपुर के उपनगरीय क्षेत्र गढा के ज्योतिनगर मोहल्ले में हुआ था। उन्होंने मंडला में प्रारंभिक शिक्षा व जबलपुर में उच्च शिक्षा अर्जित की। शिक्षा के दौरान ही साहित्य व पत्रकारिता संसार से इतना गहरा जुड़ाव हुआ कि अंतत: इसी क्षेत्र की ऊँच ाइयों को उन्होंने स्पर्श किया। पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में पत्रकारिता की शुरूआत की। वे नवभारत में सहायक संपादक भी रहे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच और चमत्कारिक लेखनी से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति हासिल की। प्रभाष जोशी के बाद उनके जाने से कर्मठ संपा दकों के आकाश का एक और भव्य सितारा अस्त हो गया।

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