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विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : जयंती विशेष

7 मई : जन्मदिवस

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नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय दिय ा । अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण वह सही मायनों में विश्वकवि थे।

टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्रनाथ ने देश और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था और वह मानवता को विशेष महत्व देते थे। इसकी झलक उनकी रचनाओं में भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है।

साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपूर्व योगदान दिया और उनकी रचना गीतांजलि के लिए उन्हें साहित्य के नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

गुरुदेव सही मायनों में विश्वकवि होने की पूरी योग्यता रखते हैं। उनके काव्य के मानवतावाद ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई। दुनिया की तमाम भाषाओं में आज भी टैगोर की रचनाओं को पसंद किया जाता है।

टैगोर की रचनाएँ बांग्ला साहित्य में एक नयी बहार लेकर आई। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इन रचनाओं में चोखेर बाली, घरे बाहिरे, गोरा आदि शामिल हैं। उनके उपन्यासों में मध्यमवर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया है।

टैगोर का कथा साहित्य एवं उपन्यास भले ही बंकिमचन्द्र और शरतचन्द्र की तरह लोकप्रिय नहीं हो लेकिन साहित्य के मापदंडों पर उनका कथा साहित्य बहुत उच्च स्थान रखता है। उन्होंने भारतीय साहित्य में नये मानक रचे। समीक्षकों के अनुसार उनकी कृति 'गोरा' कई मायनों में अलग रचना है।

इस उपन्यास में ब्रिटिश कालीन भारत का जिक्र है। राष्ट्रीयता और मानवता की चर्चा के साथ पारंपरिक हिन्दू समाज और ब्रह्म समाज पर बहस के साथ विभिन्न प्रचलित समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ ही उसमें स्वतंत्रता संग्राम का भी जिक्र आया है। इतना समय बीत जाने के बाद भी बहुत हद तक उसकी प्रासंगिकता कायम है।

रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं में उनकी रचनात्मक प्रतिभा सबसे मुखर हुई है। उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर आध्यात्मवाद तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है। इसके साथ ही उनकी कविताओं में उपनिषद जैसी भावनाएँ महसूस होती हैं।

साहित्य की शायद ही कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचनाएँ नहीं हों। उन्होंने कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं में रचना की। उनकी कई कृतियों का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया है। अंग्रेजी अनुवाद के बाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ।

सात मई 1861 को जोड़ासाँको में पैदा हुए रवींद्रनाथ के नाटक भी अनोखे हैं। वे नाटक सांकेतिक हैं। उनके नाटकों में डाकघर, राजा, विसर्जन आदि शामिल हैं। बचपन से ही रवींद्रनाथ की विलक्षण प्रतिभा का आभास लोगों को होने लगा था। उन्होंने पहली कविता सिर्फ आठ साल में लिखी और केवल 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी।

रवींद्रनाथ की रचनाओं में मानव और ईश्वर के बीच का स्थायी संपर्क कई रूपों में उभरता है। इसके अलावा उन्हें बचपन से ही प्रकृति का साथ काफी पसंद था। रवींद्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थियों को प्रकृति के सानिध्य में अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने इसी सोच को मूर्त रूप देने के लिए शांतिनिकेतन की स्थापना की।

उन्होंने दो हजार से अधिक गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं। गुरूदेव बाद के दिनों में चित्र भी बनाने लगे थे।

रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएँ की थी। 7 अगस्त 1941 को देश की इस महान विभूति का देहावसान हो गया।

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