बदरवा बरसे हो कारे-कारे....

अजातशत्रु
सलिल दा को वर्षा-गीत कंपोज करने का बेहद शौक था। उनकी यह बेचैनी होती है कि साउंड-ट्रेक पर वर्षा की झड़ी और ठंडक को पेश कर दें। लता कारे-कारे शब्दों को इस फील से गाती हैं कि लगता है बादल हमारी खिड़की तक आ गए हों।

सन्‌ 1956 में एक फिल्म आई थी 'परिवार'। इसे बिमलराय ने प्रस्तुत किया था। फिल्म के निर्देशक बिमलराय के बजाय असित सेन थे। स्वस्थ मनोरंजन और पारिवारिक माहौल से भरपूर यह फिल्म, जहां तक मुझे याद है, बिमलराय जैसे धुरंधर, यशस्वी निर्माता-निर्देशक की अन्य फिल्मों की तरह, सफल साबित नहीं हुई थी।

उन दिनों इस फिल्म से हास्य अभिनेता आगा का एक डायलॉग प्रसिद्ध हुआ था। फिल्म में कोई पूछता है- बड़े घर की औरतें सुबह-सुबह क्या करती हैं? आगा का जवाब था- 'बासी पूड़ी आम के अचार के साथ खाती हैं।' इसी फिल्म का एक कॉमेडी गीत मशहूर हुआ था, जिसे किशोर कुमार ने परदे पर स्वयं गाया था- 'कुएं में कूदकर मर जाना, यार तुम शादी मत करना।'

अलावा इसके वह गीत जो स्कूल-कॉलेजों में क्लासिकल सीखने वालों के बीच काफी मकबूल हुआ, लता और मन्नाडे का गाया हुआ सेमी क्लासिकल था- 'जा जा तोसे नाही बोलूं कन्हैया, राह चलत पकड़ी मोरी बहियां।' गीत कर्णप्रिय था और आज भी सुनाई पड़े, तो मन को धो-पोंछकर जेवर के मखमली डिब्बे में रख देता है!

' परिवार' के संगीतकार सलिल चौधरी थे। अगर सलिल दा के बाबद् आपने गौर किया होगा, तो देखेंगे कि वर्षा-गीत कंपोज करने का उन्हें बहुत शौक था। बनते कोशिश उन्होंने अपने कांट्रेक्ट की फिल्म में वर्षा-मेलडी देना कभी नहीं भूला। याद कीजिए- ओ सजना बरखा बहार आई (परख)/बोले पीहू-पीहू पी पपिहरा (एक गांव की कहानी)/झिर-झिर बदरवा बरसे/नैना मोरे तरसें (तांगावाली)/आहा रिमझिम के ये प्यारे-प्यारे गीत लिए (उनसे कहा था)/सावन की रातों में ऐसा भी होता है (प्रेमपत्र)/इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा (छाया)/व फिल्म 'दो बीघा जमीन' के वे दो अमर कोरस गीत- 'धरती कहे पुकार के, बीज बिछाले प्यार के' व 'हरियाला सावन ढोल बजाता आया।'

इन गीतों की धुनें तो खैर मन को मोहने वाली हैं। पर उनके भीतर साजों का जो अंतर्भूत संगुफन (इन्ट्रीकेट यूज) है, वह सूक्ष्म और आण्विक है। लता कहती भी थीं कि सलिलजी की बंदिशों में संगीत के इतने छोटे-छोटे टुकड़े और औचक ट्रांजीशन (बदलाव) होते थे कि उन्हें बेहद सजग होकर गायन करना पड़ता था। सलिल चौधरी यानी संगीत का वह कम्प्यूटरी दिमाग, जिसमें ऐक क्षण के भीतर अनेक साज बजते हैं और सबके सब सिंफनी में।

अलावा इसके, सलिल दा का संगीत संवेदनशील है। वह प्रकृति को और वातावरण को पूर्ण जीवंतता के साथ पकड़ना चाहता है। वर्षा हो रही है, तो सलिल दा की बेचैनी होती है कि कैसे वे झड़ी और ठंडक को साउंड ट्रेक पर पैदा कर दें। 'परिवार' का यह गीत सुनिए। और जरा गौर से सुनिए। आपको महसूस होगा कि कान के परदे भीग रहे हैं और रग-रग में शीतलता उतर आई है।

हेमंत कूमा र और लता का गाया यह गीत इतना प्यारा है, इसकी धुन इतनी मीठी है, इसके रिदम इतने दिलकश हैं और वाद्य संगीत इतना मौजूं है... कि लगता है इसे सुनते चले जाएं और परेशान होकर सर धुनते रहें कि हाय, यह इतना प्यारा क्यों है? मेलडी क्या है? सौंदर्य क्या है? परमात्मा का आभास यहां नहीं है, तो और कहां है? वगैरह-वगैरह! पढ़िए गीत जिसे शैलेंद्र ने लिखा था-

लता : झिर-झिर-झिर-झिर बदरवा बरसे,हो कारे-कारे (2)
सोए अरमान जागे, कई तूफान जागे (2)
माने न मन मोरा सजना-बिना। (2)
झिर-झिर..... हो कारे-कारे/झिर-झिर-झिर-झिर!
लता : आजा कि तोहे मेरी प्रीत पुकारे,रह-रहके याद तेरा गीत पुकारे- (2)
याद आए दिल की बातें,तुमसे मिलन की रातें (2)
काहे को ढूंढे मोहे, अपना बना- झिर-झिर-झिर-झिर बदरवा बरसेहो कारे-कारे।
( इसी बीच हेमंत ज्वाइन कर चुके होते हैं और इस पंक्ति के साथ आगे गाते हैं)।

सोए अरमान जागे, कई तूफान जागे-(2)/
बरखा न भाए गोरी तेरे बिना। (2)
लता : होऽऽऽ/ हेमंत : होऽऽऽ/
हेमंत : मेरे घुंघुराले काले बालों की जाली,
रात में आज मेरी नींद चुरा ली- (2)
लता : कैसे मैं प्यार करूं/
हेमंत : तेरा इंतजार करूं
( दोनों पंक्तियां, फिर से)

हेमंत : तेरे बिन झूठा मेरा हर सपना-
झिर-झिर-झिर बदरवा बरसे,
हो कारे-कारे/झिर-झिर-झिर-झिरबदरवा बरसे।

हेमंत की आवाज पर यह गीत समाप्त। 'झिर-झिर-झिर-झिर' शब्दों का प्रयोग और उसके अनुरूप ताल व संगीत इस गीत की जान हैं। साफ लगता है, झिर-झिर-झिर-झिर पानी गिर रहा है। लता 'कारे-कारे' शब्दों को इस फील से गाती हैं कि प्रतीत होता है, बादल हमारी खिड़की तक आ गए और हमारे रोमों पर सिहरन उतर आई।

यहां से वहां तक कंपन और फुरफुरी। जिस्म सूखा रह जाता है और रूह दूर-दूर तक भीग जाती है...। ऐसा लगता है जैसे कोई प्यार बरसा गया और बिना छुए निकल गया। ना खोल अभी नीमबाज (अधखुली) आंखों को तेरे निसार ये जादू अभी जगाए जा।

Show comments

बॉलीवुड हलचल

रवि दुबे-सरगुन मेहता की नई वेब सीरीज 'रफू' में मुख्य भूमिका में नजर आएंगी आयशा खान

सलमान खान की वजह से आमिर खान को मिला दंगल का टाइटल

सिनेमा लवर्स के लिए खास ऑफर, 29 नवंबर को महज इतने रुपए में देखें द साबरमती रिपोर्ट

सन ऑफ सरदार के निर्देशक अश्विनी धीर पर टूटा दुखों का पहाड़, सड़क हादसे में 18 साल के बेटे का निधन

स्टार प्लस पर वापसी करने जा रहे नकुल मेहता, सुपरस्टार बहू कॉम्पिटिशन को लेकर खोले राज

सभी देखें

जरूर पढ़ें

भूल भुलैया 3 मूवी रिव्यू: हॉरर और कॉमेडी का तड़का, मनोरंजन से दूर भटका

सिंघम अगेन फिल्म समीक्षा: क्या अजय देवगन और रोहित शेट्टी की यह मूवी देखने लायक है?

विक्की विद्या का वो वाला वीडियो फिल्म समीक्षा: टाइटल जितनी नॉटी और फनी नहीं

जिगरा फिल्म समीक्षा: हजारों में एक वाली बहना

Devara part 1 review: जूनियर एनटीआर की फिल्म पर बाहुबली का प्रभाव