आतंक के खिलाफ

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अनिरुद्ध नीर व
WDWD

जंगल में रात
और धाँय धाँय गोलियाँ

कौन सुनें
चीख भरी चिड़ियों की बोलियाँ।

जंगल जो था
झँगुर गान से पगा हुआ।

रह गया अचानक
ठिठका ठगा ठगा हुआ।

एक परत भय की
ऊपर जमी फुनगियों पर
नीचे कुछ रक्त की रंगोलियाँ।

नन्हे वन-ग्राम चकित
सूखे पत्तों जैसे काँपते।

साँस टँगी है, लेकिन कान खड़े
खून भरी आँधी को नापते।

ढिबरी गुल द्वार बंद
माताएँ अड़ा रहीं
बच्चों के मुख पर हथेलियाँ।

पहले तो पशु
आदमखोर हुआ करता था।

बस्ती में घुसते ही
शोर हुआ करता था।

WDWD
अब तो कुछ आदम ही
यूँ आदमखोर हुए
हतप्रभ हैं पशुओं की टोलियाँ।

जंगल में रात
और धाँय धाँय गोलियाँ।

साभार : अक्षरा
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