नाम था निर्भया

महिला दिवस विशेष कविता

वर्तिका नंदा
औरत होना मुश्किल है या चुप रहना
जीना या किसी तरह बस, जी लेना
शब्दों के टीलों के नीचे
छिपा देना उस बस पर चिपकी चीखें, कराहें, बेबसी, क्र ूरता, छीलता अट्टाहास
उन पोस्टरों को भींच लेना मुट्ठी में
जिन पर लिखा था-हम सब बराबर हैं
पानी के उफान में
छिपा लेना आंसू
फिर भरपूर मुस्कुरा लेना
और सूरज से कह देना-
मेरे उजास से कम है वो
कैलास की यात्रा में
कुरान की आयतें पढ़ लेना
इतने सामान के साथ
साल दर साल कैलेंडर के पन्ने बदलते रहना
कागजों के पुलिंदे में
भावनाओं की रद्दी
थैले में भरी तमाम भद्दी गालियां
और सीने पर चिपकी वो लाल बिंदी
और सामने खड़ा-मीडिया
इस सारी बेरंगी में
दीवार में चिनवाई पिघली मेहंदी
रिसता हुआ पुराना मानचित्र
बस के पहिए के नीचे दबे मन के मनके और उसके मंजीरे
ये सब दुबक कर खुद को लगते हैं देखने...
इतना सब होता रहे
और तब भी कह ही देना कि
वो एक खुशी थी
किसी का काजल, गजरा और खुशबू
नाम था - निर्भया
Show comments

इस चाइनीज सब्जी के आगे पालक भी है फैल! जानें सेहत से जुड़े 5 गजब के फायदे

आइसक्रीम खाने के बाद भूलकर भी न खाएं ये 4 चीज़ें, सेहत को हो सकता है नुकसान

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

लू लगने से आ सकता है हार्ट अटैक, जानें दिल की सेहत का कैसे रखें खयाल

जल्दी निकल जाता है बालों का रंग तो आजमाएं ये 6 बेहतरीन टिप्स

AC का मजा बन जाएगी सजा! ये टेंपरेचर दिमाग और आंखों को कर देगा डैमेज, डॉक्टरों की ये सलाह मान लीजिए

गर्मी में फलों की कूल-कूल ठंडाई बनाने के 7 सरल टिप्स

घर में नहीं घुसेगा एक भी मच्छर, पोंछे के पानी में मिला लें 5 में से कोई एक चीज

क्या कभी खाया है केले का रायता? जानें विधि

जीने की नई राह दिखाएंगे रवींद्रनाथ टैगोर के 15 अनमोल कथन