मूर्ति है तू कोई 'अजन्ता' की

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- प्रो. उदयभानु हंस
NDND
तू तो सौंदर्य का विकास लगे
काम-रति का निजी निवास लगे

संगमरमर-सा रंग देख तेरा
चाँद पूनम का भी उदास लगे

रात के समय जब कभी निकले
घुप अँधेरे में भी उजास लगे

है खिला बसंत-सा यौवन
तन में कस्तुरी की सुवास लगे

तेरे होठों से रसकलश छलके
तेरी झिड़की में भी मिठास लगे

मूर्ति है तू कोई 'अजन्ता' की
कभी खजुराहो का इतिहास लगे

दृष्टि से मेरी दूर रहकर भी
मेरे मन के तू आसपास लगे

तू भले हो इक आम लड़की-सी
पर मुझे तो हमेशा खास लगे

NDND
भूख मन की भले छुपा ले तू
तेरी आँखों में एक प्यास लगे

यूँ न भरमा मुझे अदाओं से
तेरी मुस्कान इक प्रयास लगे

रूप में तू विराट है लेकिन
लाज से सिमिट कर 'समास' लगे

साभार:प्रयास
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