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मैं फिर लौटूँगी

काव्य-संसार

Webdunia
उषा प्रारब्ध
ND
इस खूबसूरत दुनिया में
अंततः विदा होने का दिन
नहीं मालूम किसी को भी
कि कौन सा होगा समय
तिथि घड़ी वार मौसम
हो सकता है
गुलाबी ठंड हो
या मावठा बरस रहा हो
और मरघट की तमाम लकड़ियाँ
मना कर दें सुलगने से
हो सकता है
यह भी कि गर्मी तेज हो
तपतपाती धूप में
सिवा मेरे
सब ढूँढें जरा-सी छाँह
मुस्कराते हुए
अपनी ठंडक में
सहेज लें कोई पेड़
वैसे मुझे तो वसंत बेहद पसंद है
झरा पत्ता ही सही
मैं फिर लहलहाने किसी टहनी पर
लौटूँगी पूरे हरेपन के साथ।
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