रजनीगंधा, तुम पागल हो

फाल्गुनी

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रजनीगंधा!
तुम पागल हो,
तुमने फिर
प्यार करने की भूल कर डाली,
' रजनीगंधा' नाम से पुकारने का
यह मतलब तो नहीं कि
तुम बिन मौसम महकने लग जाओ
बिना तसल्ली किए बहकने लग जाओ
ओह, रजनीगंधा तुम पागल हो,
तुमने नहीं देखा
पुकारने वाले का मन
तुमने देखा
उसके शब्दों का विशाल गगन
जिसमें
ग्रह, नक्षत्र, सूर्य, चंद्र, तारे
और आकाशगंगाएँ सब थीं
बस एक तुम नहीं थी।

रजनीगंधा,
तुम चुप हो
पर तुम्हारे भीतर कोई है
जो यह जानता है कि
तुम आज उसी के शब्दों से
लहूलुहान और घायल हो,
रजनीगंधा तुम पागल हो।
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