सूखता-झरता बेनाम पौधा

फाल्गुनी

Webdunia
कल तक दुलारता रहा
तुम्हारी
आवाज का मयूरपंख
मेरे शर्माते कानों को,
आज चुभ रहे हैं
उसमें छुपे काँटे
और रिस रहा है
मेरे मन की कच्ची धरा से
बेबसी का लहू,
कितनी बार मैंने चाहा था
कि तुमसे बने
इस बेनाम से रिश्ते को
थोड़ा वक्त दूँ
और सोचूँ कि
रिवाजों के दायरे में
क्या सही है और क्या गलत,
मगर हर बार
चंपई हवा के संग
बेसाख्ता बहकर आया
तुम्हारा भीगा प्यार
और आवाज का
सुकोमल मयूरपंख,

एक मखमली अहसास के तले
खिलती मेरी मुस्कान
फिर कुछ सोच ही नहीं सकी
तुम्हारे सिवा।

आज जब दूरियों के भँवर में लिपटा
मेरा मन
याद करना चाहता है तुम्हें
तो जाने क्यों
मेरे हर अहसास शिथिल हो गए हैं
और मेरे कानों का
गुलाबी रंग उड़ गया है।

आँखों से बहती
खारी और पारदर्शी नमी से
कब तक सिंच पाऊँगी
हमारे संबंधों का
सूखता-झरता बेनाम पौधा?

आओ, आज इसे उखाड़ ही दें।
वक्त की कब्र में
ऐसे कितने ही पौधे दफन हैं
जो जमीन के भीतर लहलहा रहे हैं
मगर मुरझाए से खड़े हैं।
Show comments

घर का खाना भी बना सकता है आपको बीमार, न करें ये 5 गलतियां

आखिर क्या है मीठा खाने का सही समय? जानें क्या सावधानियां रखना है ज़रूरी

रोज करें गोमुखासन का अभ्यास, शरीर को मिलेंगे ये 10 गजब के फायदे

जमीन पर बैठने का ये है सही तरीका, न करें ये 3 गलतियां वरना फायदे की जगह होगा नुकसान

वेक-अप स्ट्रोक क्या है? जानें किन लोगों में रहता है इसका खतरा और बचाव के उपाय

अगर अभी बेबी के लिए नहीं हैं तैयार तो इन 3 नेचुरल तरीकों से रोकें प्रेगनेंसी

तपती गर्मी में बढ़ रहा Eye Stroke का खतरा, जानें कैसे करें आंखों का बचाव

Weight Loss के लिए न करें बोरिंग डाइट फॉलो, घर पर झटपट बनाएं ये टिक्की

टॉयलेट में घंटो बैठे रहते हैं तो दही में मिलाकर खाएं ये 5 चीज़ें

इन 5 आसान तरीकों से छोड़ें सिगरेट पीना, नहीं लगेगी कभी तलब