होली पर कविता : किंतु हमें अवकाश कहां

सीमा पांडे
आई फागुन की बयार है, किंतु हमें अवकाश कहां
छाई वासंती बहार है, किंतु हमें अवकाश कहां
 
मंजरियों के झुमके पहने, भीनी-भीनी महक रही
आम्र बौर से लचके शाखा, कोयलिया भी चहक रही
दान करती प्रकृति उदार है किंतु हमें अवकाश कहां


 
 
किंशुक केसरिया उल्लासित, दो नयनों को तरस रहा
झूम पवन के झोंकों से ज्यों, फाग धरा पर बरस रहा
पंखुरी की सौ मनुहार है किंतु हमें अवकाश कहां
 
सहजन साज सजीले झूमे, धवल पुष्प दल सोह रहे  
सेमल फूले डाली डाली, रंग भ्रमर को मोह रहे
मंद मधुर गुनगुन पुकार है किंतु हमें अवकाश कहां
 
रंग बिखेरे कितने चहुंदिश, फागुन जबसे आया है
करने होली की तैयारी, मदन बड़ा मदमाया है
न्यौता देता बार-बार है, किंतु हमें अवकाश कहां
Show comments

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के साथ जा रहे हैं घूमने तो इन 6 बातों का रखें ध्यान

कार्ल मार्क्स: सर्वहारा वर्ग के मसीहा या 'दीया तले अंधेरा'

राजनीति महज वोटों का जुगाड़ नहीं है

जल्दी निकल जाता है बालों का रंग तो आजमाएं ये 6 बेहतरीन टिप्स

मॉरिशस में भोजपुरी सिनेमा पर व्‍याख्‍यान देंगे मनोज भावुक

गर्मी के मौसम में कितनी बार सनस्क्रीन लगाना चाहिए, जानिए सही समय

अगला लेख